डेयरी टुडे नेटवर्क
शाहजहांपुर(यूपी),
सिर्फ मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी करने या फिर कोई बड़ा बिजनेस करके ही लाखों की कमाई नहीं होती, बल्कि व्यवसायिक डेयरी फार्मिंग से भी हर महीने लाखों रुपये कमाए जा सकते हैं। जीहां ऐसा कर दिखाया है उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के प्रगतिशील किसान ज्ञानेश तिवारी ने। आज हम डेयरी के सुल्तान में ज्ञानेश की सफलता की कहानी बता रहे हैं। एमए, बीएड की शिक्षा प्राप्त करने वाले ज्ञानेश डेयरी व्यवसाय में किस्मत आजमाने की सोचने वाले युवाओं के सामने मिसाल हैं। आगे हम बताएंगे किस तरह ज्ञानेश ने छोटे स्तर से शुरू कर अपने डेयरी फार्म को धीरे-धीरे बढ़ाया और वो आज हर महीने इससे दो से ढाई लाख रुपये कमाते हैं।
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में निगोही रोड इलाके के नबीपुर गांव के रहने वाले ज्ञानेश तिवारी के पिता एक स्कूल में प्रधानाचार्य थे और वो अपनी तरह बेटे को शिक्षक बनाना चाहते थे। उन्होंने ज्ञानेश की पढ़ाई में कोई कमी नहीं की और ज्ञानेश ने भी पिताजी का आदेश मान कर मन लगाकर पढ़ाई की और एमए, बीएड कर लिया। लेकिन ज्ञानेश का मन टीचर बनने का नहीं बल्कि अपने गांव में ही कुछ काम करने का था। ज्ञानेश के परिवार में कृषि मुख्य व्यवसाय था और वो भी इसे जुड़ा कुछ काम करना चाहते थे। पढ़ाई खत्म होने के बाद जब उनपर नौकरी करने का दबाव था, तभी 2014 में उत्तर प्रदेश सरकार ने कामधेनु डेयरी योजना लांच की। प्रदेश में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई इस योजना ने ज्ञानेश तिवारी को आकर्षित किया और उन्होंने अपने गांव में ही डेयरी खोलने की ठानी।
ज्ञानेश ने यूपी सरकार की कामधेनु डेयरी योजना के लिए फार्म भरा और इसके तहत ज्ञानेश का चयन हो गया। 2014 की शुरुआत में उन्हें प्रदेश के शुरुआती 56 लोगों के साथ शाहजहांपुर में कामधेनु डेयरी खोलने के लिए चुन लिया गया। ज्ञानेश ने 100 पशुओं की बड़ी कामधेनु डेयरी खोलने के लिए करीब 90 लाख रुपये का लोन लिया। उस वक्त डेयरी स्थापित करने में करीब एक करोड़ तीस लाख रुपये की लागत आई। ज्ञानेश ने करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) से डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग ली और फिर जुट गए डेयरी के काम में। ज्ञानेश ने शुरुआत में 10 एचएफ गायों और 10 मुर्रा भैंसों से डेयरी की शुरुआत की और जल्द ही भैंसों की संख्या बढ़ा कर 90 कर ली।
ज्ञानेश तिवारी के पास गांव में ही 400 बीघा से ज्यादा की खेती है, इन्हीं खेतों के बीच उन्होंने करीब डेढ़ एकड़ यानी 9 बीघा में आधुनिक डेयरी फार्म खोला है। जानवरों के लिए साढ़े सात हजार वर्ग फीट का शेड बनवाया है। ज्ञानेश के सफल होने के पीछे जानवरों के लिए भरपूर हरे चारे का इंतजाम है। चारे के लिए वो 40 बीघा से ज्यादा खेत में बरसीम और दूसरी फसलों को उगाते हैं। इससे उन्हें वर्ष भर हरे चारे की कमी नहीं होती और इसके लिए उन्हें बाजार या दूसरों पर निर्भर भी नहीं रहना पड़ता। उन्होंने अपनी जमीन पर एक-एक एकड़ के दो तालाब भी बनवाए हैं, जहां पर वो मछली पालन करते हैं साथ ही पशुओं के लिए पानी का भी इंतजाम हो जाता है।
ज्ञानेश ने अपनी डेयरी में पशुओँ की देखभाल और दूध दुहने के लिए सात लोगों का स्टॉफ रखा है। इतना ही नहीं ज्ञानेश खुद भी ज्यादातर वक्त डेयरी पर बिताते हैं। आज इनकी डेयरी में 80 मुर्रा भैंस और 10 हॉलिस्टीन फ्रीशियन गायें हैं। पशुओं के बीमार होने पर तत्काल पशु चिकित्सक को बुलाया जाता है और उनका पूरा उपचार कराया जाता है। इसके साथ ही ज्ञानेश गाय और भैंस की नस्ल सुधारने के काम में भी लगे हैं। इसके लिए डेयरी पर ही दो बुल पाले हुए हैं, इतना ही नहीं भैंसों के लिए पंजाब और हरियाणा से अच्छी नस्ल के बुल का सीमन भी मंगाया जाता है।
डेयरी में भैंसें रोजाना औसतन 10 से 18 लीटर दूध देती हैं, ज्ञानेश के मुताबिक उनकी डेयरी में रोजाना 350 से 400 लीटर के बीच दूध का उत्पादन होता है। पहले ज्ञानेश इस दूध को शाहजहांपुर की पॉश कॉलोनियों में लोगों तक पहुंचाते थे लेकिन अब वो सारा दूध शहर के बड़े होटलों में सप्लाई कर देते हैं। उन्हें भैंस के दूध का 45 रुपये प्रति लीटर और गाय के दूध का 30 से 35 रुपये प्रति लीटर दाम मिल जाता है। यानी महीने भर में करीब पांच लाख रुपये का दूध बिक जाता है और उन्हें सारा खर्चा निकाल कर हर महीने 2 लाख रुपये के आसपास बच जाता है। इतना ही नहीं ज्ञानेश डेयरी से निकले वाले गोबर की ऑर्गेनिक खाद बनाकर अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं, साथ ही बड़ी मात्रा में इसे बेच भी देते हैं, एक ट्रॉली गोबर का करीब दो हजार रुपये मिल जाता है यानी महीने में बीस ट्रॉली गोबर बेचकर वो 40 हजार रुपये अलग से कमा लेते हैं।
करीब चार वर्षों से सफल डेयरी का संचालन कर रहे प्रगतिशील डेयरी किसान ज्ञानेश तिवारी का साफ कहना है कि जो व्यक्ति काम करने से नहीं थकता है उसी को डेयरी खोलनी चाहिए। ज्ञानेश के मुताबिक डेयरी फार्मिंग में मेहनत तो बहुत है लेकिन इसे करने से आत्मसंतुष्टि भी मिलती है। उन्होंने डेयरी फार्मिंग का पेशा अपनाने की सोचने वाले युवाओं को कहा कि धैर्य और जी तोड़ मेहनत के बल पर सफल डेयरी फार्मर बना जा सकता है।
ज्ञानेश तिवारी ने बताया कि अब उनका ध्यान डेयरी के विस्तार पर है। और वो इसके लिए पशुओं की संख्या बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कि बाजार में शुद्ध डेयरी उत्पादों की काफी डिमांड है और इसे पूरा करने के लिए वो जल्द ही अपनी डेयरी पर छाछ, दही, पनीर, लस्सी और देसी घी बनाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं।
तो ये है सफल डेयरी किसान ज्ञानेश तिवारी की कहानी। डेयरी फार्मिंग के बारे में नकारात्मक बात करने वाले लोगों के लिए ज्ञानेश की सफलता ये समझाने के लिए काफी है कि यदि जोश के साथ प्लानिंग बनाकर डेयरी का बिजनेस किया जाए तो सफल होने से कोई रोक नहीं सकता।
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आपकी लगन और रुचि लेख के माध्यम द्वारा पढ़ कर अत्यंत प्रभावित हुआ ,और बहुत अच्छा लगा।
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किसानी आज की ज़रूरत है न की मज़बूरी। ज्ञानेश जैसे लोग साबित कर देते है की एक पढ़ा लिखा इंसान खेती किसानी बेहतर सफलता पा सकता है। नमस्कार।
Nice sir ap ke no. Do
Nice bro I am interested in dairy
Bhut shi good job sir aap lge rho
gyanesh tiwari ka mobile no. or pta bta dijiye….
supar
i would like to see the dairy bussiness like a charming bussines…if it will not attract the educated people, its not possible to increase this bussiness.. if gyanedra ji or any dairy k sultan have no issue to give his/her contact number…please mention his/her num too
all these stories are seems wonderful but no one knows the winning horse pain…its only the horse which suffers….aw-sum real story ….my request more to explore on dairy