डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 2 सितंबर 2018,
अक्सर देखा गया है कि लोगों के पास कुछ खास आइडिया तो होता है, लेकिन अपनी नौकरी की वजह से उस आइडिया को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाते हैं। दरअसल, नौकरीपेशा लोग किसी भी तरह के प्रयोग से हिचकते हैं। वहीं जो लोग प्रयोग करते हैं और अपने आइडिया को अंजाम तक पहुंचा पाते हैं वो यूनिक बन जाते हैं। उन्हीं लोगों में से हैं बिहार के सीवान जिले के रहने वाले धीरेंद्र और आदित्य । इन दो दोस्तों ने अच्छी खासी नौकरी छोड़कर खेती में मन लगाया और आज लाखों में कमाई कर रहे हैं। तो आइए जानते हैं धीरेंद्र और आदित्य की सफलता की कहानी।
वैसे तो धीरेंद्र और आदित्य दोनों की पहचान काफी पुरानी है लेकिन ये बिजनेस पार्टनर करीब दो साल पहले बने। मैनेज्मेंट और लॉ की पढ़ाई करने वाले धीरेंद्र ने मनीभास्कर को दिए इंटरव्यू में बताया कि वह पहले एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। वहीं माइक्रोबायलॉजी से पढ़ाई करने वाले आदित्य एनआरआई हैं। धीरेंद्र नौकरी छोड़ बिजनेस करने की सोच रहे थे। तभी उन्होंने कहीं एक खास आइडिया के बारे में पढ़ा। यह आइडिया खेती का था। धीरेंद्र बताते हैं कि उन्हें इसमें आदित्य का साथ मिला और दोनों ने मिलकर बिहार सरकार के एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी ( ATMA) से खुद को रजिस्टर्ड कराया।
धीरेंद्र आगे कहते हैं कि जब उन्होंने इस पर काम शुरू किया तो पहली नजर में लोगों ने हल्के में लिया । लेकिन हमने इसकी परवाह नहीं की। धीरेंद्र और आदित्य को इस मिशन में सीवान के ही एग्री एक्सपर्ट और मशरूम उत्पादन-प्रशिक्षण समिति के प्रेसिडेंट बीएस वर्मा का साथ मिला। रिटायर्ड इंजीनियर वर्मा के पॉलीहाउस में धीरेंद्र और आदित्य ने खेती शुरू की। करीब 1 एकड़ में फैले पॉलीहाउस में उन्होंने पहले साल टमाटर और शिमला मिर्च की खेती शुरू की।
धीरेंद्र आगे बताते हैं कि हमारा मकसद कमाई के साथ लोगों को खेती के लिए आत्मनिर्भर बनाना है। इसमें हम कामयाब भी हो रहे हैं। धीरेंद्र के मुताबिक पहले साल में हमें लाखों में मुनाफा हुआ। इसके अलावा जो सबसे खास बात यह है कि कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। धीरेंद्र ने आगे बताया कि इस प्रोजेक्ट में उन्हें ATMA से जुड़े केके चौधरी के अलावा हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के पीके मिश्रा और आरपी प्रसाद का सहयोग मिल रहा है।
धीरेंद्र ने बताया कि वह और आदित्य मिलकर अब मशरूम की खेती कर रहे हैं। धीरेंद्र कहते हैं कि पॉलीहाउस में वह तीन रैक बनाकर मशरूम उगा रहे हैं। इस सीजन में उन्हें मशरूम की खेती से 10 लाख रुपए तक की कमाई की उम्मीद है।
अपने फ्यूचर प्लानिंग का जिक्र करते हुए धीरेंद्र ने बताया कि अब उनकी योजना फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की है। इसके जरिए मशरूम से बनने वाले फूड प्रोडक्ट को तैयार किया जाएगा। इसके अलावा किसानों से जुड़कर उन्हें अधिक से अधिक रोजगार मुहैया कराया जाएगा। धीरेंद्र आगे कहते हैं कि किसानों में जो खेती को लेकर भरोसा खत्म हो गया था उसे फिर से वापस लाना चाहते हैं।
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