डेयरी टुडे डेस्क,
रांची, 4 सितंबर 2017,
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 22 किलोमीटर दूर इटकी का दरहाटांड़ गांव आज प्रदेश ही नहीं पूरे देश में मिसाल बन गया है। दरहाटांड़ का नागपुरी भाषा में शाब्दिक अर्थ है- भूतों का बसेरा। नाम से ही स्पष्ट है कि यह गांव रूढ़िवादी व्यवस्था में विश्वास करता है। लेकिन यह स्थिति चार साल पहले तक थी। आज यह श्वेत क्रांति की कहानी कह रहा है। दरहाटांड़ अब दूधटांड़ बन चुका है।
गांव के हर दरवाजे पर बंधी है गाय
गांव के लगभग हर घर के दरवाजे पर गाय बंधी हैं। हर तरफ दूध की धारा बह रही है। पहले लोग भूतों के भय से इस गांव में जाना नहीं चाहते थे, आज यहां झारखंड स्टेट मिल्क फेडरेशन का बड़ा टैंकर रोज दूध एकत्र करने आता है। हर दिन 1500 से 1600 लीटर दूध लेकर प्रोसेसिंग के लिए मिल्क प्लांट जाता है, जिसे राज्य के अलग-अलग हिस्से में सप्लाई किया जाता है। आसपास के गांवों के लोग ऑटो, बाइक समेत अन्य वाहनों से दूध लेकर यहां पहुंचते हैं और यहां खोले गए मिल्क चिलिंग सेंटर को सप्लाई देते हैं। इस दुग्ध क्रांति ने गांव की अर्थव्यवस्था ही बदल दी है।
सीधे खातों में ट्रांसफर होता है दूध का पैसा
मेधा के एमडी बीएस खन्ना के प्रयास से एचडीएफसी बैंक ने भी इस गांव में अपना बिजनेस सेंटर खोल दिया है। इससे फायदा यह हो रहा है कि दूध का पैसा सीधे किसानों के बैंक खाते में ट्रांसफर हो जाते हैं। इस दूधटांड़ ने आसपास के दर्जनों गांवों को स्वावलंबन और घर बैठे आमदनी की राह दिखा दी है। आज राज्य के कोने-कोने से किसान यहां सक्सेस स्टोरी देखने रहे हैं।
अशोक महतो के प्रयास से बदली सूरत
विकास के इस बदलाव के सूत्रधार हैं दरहाटाड़ के 35 वर्षीय अशोक महतो। 2012 में पूरे गांव में सिर्फ अशोक के पास ही दो गाय थीं। शुरुआत में वे 15 लीटर दूध लेकर यहां से आठ किमी दूर हरही गांव में मेधा के मिल्क कलेक्शन सेंटर जाते थे। उनके अथक प्रयास के बाद मेधा ने दरहाटाड़ में मिल्क टेस्टिंग सेंटर खुलवाया। सेंटर खुलते ही गांव में श्वेत क्रांति का बीजारोपण हो गया। देखते ही देखते हर घर के दरवाजे पर गायें नजर आने लगीं। जल्द ही मिल्क कलेक्शन सेंटर और बाद में बल्क मिल्क चिलिंग (बीएमसी) सेंटर खुल गए। आज हर दिन 1500 से 1600 लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है।
दुग्ध उत्पादन में गुजरात को भी पीछे छोड़ सकता है झारखंड
मेधा के एमडी बी एस खन्ना के मुताबिक झारखंड के गांवों में दूध उत्पादन को लेकर काफी संभावनाएं हैं। हम गुजरात के उदाहरण को पीछे छोड़ सकते हैं। इसके लिए झारखंड स्टेट मिल्क फेडरेशन और हमारे किसान तैयार हैं। सरकार की ओर से और बेहतर सपोर्ट मिले तो झारखंड दूध के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। वहीं गांव वालों का कहना है कि पहले हमारा गांव पहले भूतों का गांव माना जाता था। मेधा का सेंटर खुलने के कारण अब यहां आसपास के गांवों से लोग दूध बेचने रहे हैं। दूध उत्पादन के साथ ही इस गांव की सूरत बदल गई है।
साभार-दैनिक भास्कर
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वास्तव में इस गांव की कहानी एक मिसाल है, सरकार के मुंह देखने के बजाए हमें ही प्रयास करके अपनी आर्थिक उन्नति का रास्ता खोजना चाहिए, देश का हर गांव ऐसा हो सकता है