डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली/इंदौर, 28 दिसंबर 2017,
देसी घी उद्योग कितने दिनों तक एक नंबर में व्यापार कर पाएगा। यह एक ऐसा सवाल है जो इस इंडस्ट्री से जुड़े सभी लोगों के सामने खड़ा है। एक किलो देसी घी पर 45 से 50 रुपए केवल टैक्स के रूप में देना है। 12 प्रतिशत जीएसटी लगने के बाद खपत में तीव्रता से गिरावट आई है। इससे डेरी उद्योग पर संकट मंडरा सकता है। विचारणीय यह है कि दूध से बने घी के भावों में इतना अंतर क्यों है? इसे मुनाफा खोरी नहीं कहा जाएगा।
व्यापारिक क्षेत्रों के अनुसार यह एक विचित स्थिति है कि इंदौर में नोवा घी 350, व्हाइट स्टार 390 और सांची 475 रुपये किलो बाजार में बिक रहे हैं। सभी घी 32 से 34 रुपये लीटर खरीदे गए दूध से बने हैं। यह पहला अवसर है जबकि दूध से बने एक ही उत्पाद के भावों में इतना अंतर खुले रूप से दिखाई दे रहा है। इसका स्पष्ट प्रभाव यह होगा कि महंगे बिकने वाले देसी घी के प्लांटों को आगे-पीछे ताले लगाना पड़ सकते हैं। बाजार में बिकने वाले देसी घी या तो मिलावटी है अथवा बिना बिल के बेचा जा रहा है। इस बार मालवा क्षेत्र के कुछ प्लांट सहकारी डेरी को घी बनाकर दे रहे हैं अर्थात जॉबवर्क कर रहे हैं। जब कम भाव का देसी घी बाजार में बिक नहीं रहा है तो महंगे भाव का जो स्टॉक हो रहा है, वह कैसे बिकेगा? पिछले दिनों ब्याह-शादियों की वजह से थोड़ी-बहुत मांग थी। अब वो भी खत्म हो गई है। आखिर यह व्यापार आगे कैसे चलेगा यह विचारणीय विषय बन गया है।
दिल्ली में बिना बिल में देशी घी 315 रुपए में बिक रहा है। यहां के बाद मप्र के बाजारों में भी बिना बिल का देशी घी बिकने की चर्चा शुरू हो गई है। 12 प्रतिशत जीएसटी लागू होने के बाद देशी घी का व्यापार छिन्न-भिन्न हो गया है। आम लोगों ने इसका उपयोग कम कर दिया है। इंदौर में पारस 352 नोवा 350 संप्रति 355 डेरी प्योर 375 हेरिटेज 385 व्हाइट स्टार 390 अमूल 445 सांची 475 रुपए के भाव बताए गए। उप्र में निजी क्षेत्र के डेरी उद्योग में देशी घी और दूध पावडर में बिक्री घटकर 20 प्रतिशत रह गई है। डेरी उद्योग का बुरा हाल है। इसका सीधा प्रभाव आगे-पीछे पशुपालकों पर पड़ेगा। हाल ही में उप्र सरकार ने 2.50 प्रतिशत मंडी शुल्क हटाकर डेरी उद्योग को थोड़ी बहुत राहत दी है।
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