डेयरी टुडे डेस्क,
नई दिल्ली, 15 अप्रैल 2018,
देश में दालों की बंपर पैदावार ने किसानों के सामने समस्या खड़ी कर दी है। इस समय देश की प्रमुख मंडियों में दालों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से करीब 25 फीसदी कम है। यहीं नहीं आने वाले समय में कीमतों में तेजी की भी उम्मीद कम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक, सरकार को एक तयशुदा मात्रा तक दालों का आयात करना भी जरूरी है,ऐसे में कीमतें बढ़ने के आसार काफी कम हैं।
कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2017-18 के दौरान दलहनों का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 23.95 मिलियन टन तक अनुमानित है जो विगत वर्ष के दौरान 23.13 मिलियन टन के उत्पादन की तुलना में 0.82 मिलियन टन अधिक है। इसके अतिरिक्त , 2017-18 के दौरान दलहनों का उत्पादन पांच वर्षों के औसत उत्पादन की तुलना में 5.10 मिलियन टन अधिक है। ज्यादा उत्पादन होने की वजह से बाजार में कीमतों पर दबाव बना हुआ है।
भारत में सबसे ज्यादा खपत होने वाली तुअर यानी अरहर दाल का केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इस समय इसका बाजार भाव औसतन 4100 से 4300 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के दलहन किसानों को एमएसपी से करीब 25 फीसदी तक कम दाम मिल रहे हैं। यहां खास बात ये है कि तूअर/अरहर का पीक सीजन जा चुका है। इसके बावजूद कीमतें कम हैं।
विश्व व्यापर संगठन के कायदों के अनुसार किसी भी देश को एक विपणन वर्ष के दौरान कुल फूड ग्रेन के आयात का कम से कम 10 प्रतिशत अगले वर्ष आयात करना जरूरी है। पिछले साल दलहन पर आयात सीमा तय करने के पहले तक भारत ने कुल 60 लाख टन का आयात किया था, ऐसे में मानदंड को पूरा करने के लिए चालू वित्त वर्ष में भारत को कम से कम 6 लाख टन दलहन का आयात करना होगा। इसके तहत आयातक इस वर्ष भी सरकार द्वारा तय कोटा के अनुसार तुअर – 2 लाख टन, 1.5 लाख टन मूंग और 1.5 लाख टन उड़द का आयात कर सकते हैं।
जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीेय संयोजक अविक साहा ने बताया कि हमने तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्यष प्रदेश, महाराष्ट्रस, राजस्थालन, हरियाणा और यूपी की मंडियों में जाकर हालात का जायजा लिया। कोई भी किसान ऐसा नहीं है जो ये कह सके कि उसे उसकी पूरी उपज पर एमएसपी मिल गई। रबी की फसलों के मामले में इस बार हालात ठीक नहीं हैं। केवल सरकारी केंद्रों पर ही किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है, बाकी सब बाजार के हवाले है और बाजार का हाल आपके सामने है।
सरकार के लिए किसानों के हितों की रक्षा करना भी काफी कठिन होता है। इसी साल फरवरी में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूक्रेन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन सहित कई देशों ने दालों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने के भारत के फैसले का कड़ा विरोध किया था। यह सभी देश बड़े पैमाने पर अन्न व दालों का उत्पादन करते हैं। हालांकि सरकार ने ये कहकर बचाव किया है कि भारत का यह फैसला डिमांड और सप्लाई को देखते हुए लिया गया है।
(साभार- मनी भास्कर)
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