देविंदर शर्मा, कृषि विशेषज्ञ,
5 जुलाई, 2017
यह खबर हताश करने वाली है। दूध अब पानी से सस्ता हो गया है। महाराष्ट्र और व्यापक रूप में उत्तर भारत के डेयरी किसानों को गाय का दूध 17 से 19 रुपये लीटर में बेचना पड़ रहा है। जबकि पानी की एक लीटर बोतल की कीमत 20 रुपये है। यह स्थिति तब है, जब पूरी दुनिया में डेयरी उद्योग अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। विगत चार वर्षों से डेयरी किसानों को कम दाम से जूझना पड़ रहा है और अनुमान है कि अगले कुछ वर्षों तक दाम और गिर सकते हैं।
अमेरिका में पिछले एक दशक के दौरान 17,000 छोटे डेयरी फार्म बंद हो चुके हैं। इंग्लैंड में पिछले तीन वर्षों के दौरान एक हजार से अधिक डेयरी फार्म बंद हो चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया में दूध के दाम लगातार गिर रहे हैं, जिससे मजबूर होकर दिग्गज डेयरी कोऑपरेटिव मुरे गुलबर्न को कनाडा के सापुतो को बेचना पड़ा। न्यूजीलैंड, जिसे अपने मजबूत डेयरी उद्योग के लिए जाना जाता है, वहां भी किसानों को लगातार घाटा उठाना पड़ रहा है।
बड़े और दिग्गज डेयरी फार्म के आने से छोटे डेयरी फार्म ध्वस्त हो रहे हैं। तकरीबन सभी देशों में बड़े डेयरी उद्योग फल-फूल रहे हैं। यह वैसा ही है, जैसा कि कभी अमेरिका के पूर्व कृषि मंत्री अर्ल बट्ज ने एक बार टिप्पणी की थी, ‘बड़े बनो या बाहर जाओ।’ अब यह रुझान तेजी से वैश्विक स्तर पर फैल रहा है।
छोटे उत्पादकों को बाहर किए जाने के साथ ही आधुनिक कृषि नीति का रुख बड़े उत्पादकों की ओर झुकता जा रहा है। अमेरिका में वॉलमार्ट ने अपने खुद के डेयरी संयंत्र की स्थापना की घोषणा की है। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, वॉलमार्ट पहले अमेरिका में अपने नेटवर्क का विस्तार करेगा और छोटे डेयरी फार्म को बाहर करेगा। भारत में फ्रेंच डेयरी दिग्गज डैनोन धीरे-धीरे पैर जमा रहा है। सरकार बड़े औद्योगिक मवेशी फार्म की स्थापना को जिस तरह मंजूरी दे रही है, उसके बाद मुझे हैरत नहीं कि डेयरी बाजार में और बड़े दिग्गज उतरेंगे।
ऐसा लगता है, मानो दुनिया में दूध प्लावित हो रहा है। दुनियाभर के उत्पादक जरूरत से अधिक उत्पादन के दुष्चक्र में फंस गए हैं, जिसके कारण दाम टूट गए हैं। भारत में किसानों के लिए दूध के दाम 20 से 30 फीसदी गिर चुके हैं, जबकि उत्पादन बढ़ रहा है। वर्ष 2016-17 के दौरान 1,654 लाख टन उत्पादन के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक था। वैसे यूरोप में भी 2015 में दूध के कोटे वाली प्रणाली खत्म करने के कारण जरूरत से अधिक उत्पादन होने लगा और दाम टूट गए, जिससे मुनाफा कम हो गया।
जिस तरह से दुनियाभर में स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिरे हैं, यह जरूरत से अधिक उत्पादन का ही प्रमाण है। 2013 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूध पाउडर के दाम 5,000 से लेकर 5,200 डॉलर प्रति टन थे, जो कि गिरकर आज दो हजार डॉलर प्रति टन से भी कम रह गए हैं। भारत में भी उसी दौरान दूध पाउडर के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई, जिससे उसका भंडार बढ़ गया। नतीजतन दूध पाउडर के दाम 2014 के 240-250 रुपये प्रति किलो से गिरकर अब 136 रुपये प्रति किलोग्राम रह गए। दूध पाउडर के भंडार का प्रबंधन न कर पाने के कारण मजबूर होकर डेयरी उद्योग को दूध की खरीद में कटौती करनी पड़ी।
महाराष्ट्र की अनेक डेयरियों ने गाय का दूध नहीं खरीदने का एलान कर दिया। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन दिन में दो बार की बजाय अब एक बार ही दूध संग्रह कर रहा है। बताया जाता है कि डेयरियों में दो लाख टन स्किम्ड मिल्क पाउडर जाम पड़ा हुआ है। पंजाब में भी कोई बेहतर स्थिति नहीं है। दूध डेयरियां स्किम्ड मिल्क पाउडर से अटी पड़ी हैं, लिहाजा उन्होंने किसानों को दूध के बदले दिए जाने वाले दाम में कटौती कर दी।
एक अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्ट में महाराष्ट्र के सांगली के माहुली गांव के बाबासाहेब माने को यह कहते हुए दर्ज किया गया, ‘मैं 15,000 रुपये महीना मुनाफा कमा लेता था, लेकिन मुझे अब नौ हजार रुपये का घाटा हो रहा है।’ कभी वह सम्मानीय डेयरी किसान थे और अपनी चार गायों से पिछले साल तक तीस हजार रुपये महीने कमा लेते थे।
आज उन्हें और उनकी पत्नी को घर चलाने के लिए खेतिहर मजदूर की तरह काम करना पड़ रहा है। डेयरी के धंधे में सिर्फ बाबासाहेब अकेले किसान नहीं हैं, जिन्हें झटका लगा है। उत्तर भारत के लाखों को किसानों को ऐसी ही बदतर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि डेयरी उत्पादन का सत्तर फीसदी काम महिलाओं के हाथों में होता है, लिहाजा आर्थिक रूप से कमजोर लाखों किसानों की आजीविका दांव पर है।
ऐसे हालात में रास्ता क्या है? कुछ अर्थशास्त्री चाहते हैं कि भारतीय डेयरी क्षेत्र को वैश्विक प्रतिस्पर्धा की तरह विकसित किया जाए, लेकिन आर्थिक रूप से यह कोई लाभकारी नहीं है, क्योंकि अमीर और विकसित देश खुद ही गंभीर दूध संकट से जूझ रहे हैं। मुझे लगता है कि गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के पूर्व महानिदेशक बी एम व्यास के सुझाव में इसका समाधान निहित है। उनका कहना है कि प्रतिस्पर्धा के दुष्चक्र में उलझने के बजाय इस संकट के समय में सर्वश्रेष्ठ समाधान है उदारता दिखाने में।
भारत को जररूतमंद देशों को, जिनमें नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान और अफ्रीकी देश शामिल हैं, स्किम्ड मिल्क पाउडर तोहफे में देना चाहिए, ताकि वे भारत के ऑपरेशन फ्लड की तरह दुग्ध क्रांति कर सकें। आखिर भारत ने भी यूरोपीय संघ से मिले बटर ऑयल के जरिये दुग्ध क्रांति को अंजाम दिया था।
ठीक इसी समय भारत को अपने हताश डेयरी किसानों के लिए आर्थिक पैकेज भी मुहैया कराना चाहिए। जर्मनी ने हाल ही में अपने छोटे डेयरी किसानों के लिए अल्पकालीक कदम के रूप में आर्थिक पैकेज दिया है, भारत को भी अपने छोटे डेयरी उत्पादकों के लिए पचास हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा करने की जरूरत है।
(साभार- अमर उजाला)
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