डेयरी टुडे डेस्क,
नई दिल्ली, 20 नवंबर 2017,
कृषि शिक्षा में ग्रेजुएशन स्तर के पाठ्यक्रमों को बदलने के बाद अब एमएससी और पीएचडी के पाठ्यक्रमों को भी नया कलेवर देने की कवायद शुरू कर दी गई है। संशोधित और बदले गये पाठ्यक्रमों को आगामी नये शिक्षा सत्र से लागू करने की तैयारी है। इसके लिए विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दी गई है। पाठ्यक्रमों में बदलाव के पीछे समय के साथ बदलती जरूरतों को ध्यान में रखा जाएगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (शिक्षा) डॉक्टर नरेंद्र राठौर ने बताया कि कमेटी में विभिन्न विषयों के कुल 14 अन्य सदस्यों को रखा गया है, विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ हैं। इसकी अध्यक्षता डॉक्टर अरविंद कुमार करेंगे। उन्होंने बताया कि एमएससी और पीएचडी के पाठ्यक्रमों में बदलाव का असर पूरी कृषि शिक्षा पर पड़ेगा। एमएससी के 90 कोर्स और पीएचडी के 80 कोर्स में परिवर्तन का प्रभाव दिखेगा। कृषि जैसे व्यापक क्षेत्र में किसानों की आमदनी को दोगुना करने और खेती को लाभ का कारोबार बनाने के लिए यह बहुत ही कारगर साबित होगा।
उदाहरण के तौर पर जैविक खेती में एमएससी जैसे विषयों पर पाठ्यक्रम तैयार किये जाएंगे। इसी तरह पशु चिकित्सा के लिए आयुर्वेदिक विषय में एमएससी की पढ़ाई की जा सकेगी। छात्रों को अनुभव से सीखने और विभिन्न विषयों के अंतर संबंधों के साथ डिग्री दी जा सकेगी। दो साल के एमएससी कोर्स की पढ़ाई के साथ तीन महीने का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेना होगा। अंडर ग्रेजुएट कोर्स का पाठ्यक्रम पहले ही बदल दिया गया है, जिसके नतीजे उत्साहजनक रहे। इसी के मद्देनजर अब दूसरा चरण शुरू कर दिया गया है। इसका मकसद कृषि शिक्षा को रोजगार परक बनाना है, ताकि कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन की मांग को पूरा किया जा सके।
आगामी शिक्षा सत्र जुलाई 2018 में शुरु होने वाला है, जिसमें इसकी शुरुआत की जा सकेगी। संशोधित पाठ्यक्रम देश के सभी 75 कृषि विश्वविद्यालयों और 368 कृषि महाविद्यालयों में लागू किया जाएगा। प्रत्येक शिक्षा सत्र में तकरीबन 50 हजार से अधिक छात्र बीएससी और 18 हजार से अधिक एमएससी और पांच हजार छात्र पीएचडी करते हैं। डाक्टर राठौर ने बताया कि नये पाठ्यक्रमों से कृषि शिक्षा का स्तर जहां ऊंचा होगा, वहीं यहां निकलने वाले छात्र नौकरी मांगने की जगह नौकरी दे वाले उद्यमी बनेंगे।
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