डेयरी टुडे नेटवर्क,
अमरोहा(यूपी), 10 सितंबर 2017
श्वेत क्रांति लाने से पहले ही उत्तर प्रदेश में कामधेनु योजना बांझ हो गई। तत्कालीन सपा सरकार ने कामधेनु योजना के जरिए गोपालन से सूबे में श्वेत क्रांति लाने व दूध की नदियां बहाने का तानाबाना बुना था। लेकिन इस योजना से जुड़े डेयरी संचालकों से 23 से 26 रुपये लीटर तक ही दूध खरीदा जा रहा है, जबकि बाजार में 50 से 52 रुपये प्रति लीटर तक बिक्री हो रही है। डेयरी संचालकों ने भी सरकार से दूध की खरीद नीति घोषित करने की मांग की, ताकि उनको कोई दिक्कत न हो। अमरोहा जिले में अब तक करीब दर्जनभर कामधेऩु डेयरियां बंद हो चुकी हैं या बंद होने के कगार पर हैं।
अमरोहा जैसे छोटे जनपद को ही 136 कामधेनु डेयरी का लक्ष्य शासन की और से निर्धारित किया गया था। इसमें से चार बड़ी कामधेनु और 42 मिनी तथा 90 माइक्रो कामधेनु डेयरियां स्थापित होनी थीं। बड़ी कामधेनु डेयरी पर 122 लाख, मिनी के लिए 52 लाख तथा माइक्रो कामधेनु के लिए 27 लाख रुपये की लागत आनी है। इसमें से कामधेनु के लिए लाभार्थी को करीब 80 लाख, मिनी कामधेनु के लाभार्थियों को 39 लाख 26 हजार तथा माइक्रो कामधेनु के लिए करीब 20 लाख रुपये का ऋण स्वीकृत किया गया। अवशेष राशि मार्जिन मनी के रूप में लाभार्थी को बैंक में जमा करनी पड़ी। जनपद में एक कामधेनु, 33 मिनी कामधेनु और 45 माइक्रो कामधेनु डेयरी के लिए बैंकों से ऋण दिया गया।
बड़ी कामधेनु में 100 गाय, मिनी में 50 तथा माइक्रो कामधेनु डेयरी में 25 गायों के लिए सरकारी की ओर से ऋण मुहैया कराया गया। योजना का ठीक ढंग से संचालन न होने तथा विभागीय अधिकारियों के उपेक्षित रवैये के चलते बहुत से किसानों ने डेयरी को बंद करना शुरू कर दिया है या वह बंदी के कगार पर है। इनमें पपसरा के प्रीतम सिंह, गुलड़ियां के कविंद्र सिंह, मझोला के रामगोपाल, बीबड़ा के नरेश चौहान, दीपपुर के खुर्शीद अहमद के नाम प्रमुख हैं। सपा सरकार के जाने के बाद से डेयरी संचालकों ब्याज की धनराशि बैंकों में सरकार द्वारा जमा नहीं की जा रही। इस वजह से अधिकांश डेयरी बंदी के कगार पर हैं।
श्वेत क्रांति के चक्कर में किसान बड़े कर्ज के बोझ तले दब गए हैं। निजी कंपनियां भी मजबूर किसानों से औने-पौने दामों पर उनका दूध खरीद रही हैं। एक डेयरी पर ही करीब 200 से 800 लीटर तक दूध उत्पादित हो रहा है, इतना दूध लेकर किसान जाएं तो जाएं कहां। बड़े फ्रीज भी उनके पास नहीं है ताकि कुछ समय तक उस दूध को संरक्षित किया जा सके और बिक्री के लिए उसे दूसरे प्रदेशों में ले जाया जा सके। लेबर और चारा ही काफी महंगा है, ऊपर से पशुओं के रखरखाव पर ही भारी धनराशि खर्च हो रही है। पशुपालन विभाग की ओर से भी पशुओं की समय-समय पर जांच नहीं की जाती। नतीजतन घाटे से उबरने को किसान अपनी जमा पूंजी भी लगा चुके हैं। यदि सरकार की ओर से जल्द कामधेनु डेयरी संचालकों का दूध खरीदने को कोई नीति जारी नहीं की गयी तो हो सकता है आने वाले दिनों में पशुपालक बड़े कर्ज के चलते आत्महत्याएं करने को मजबूर न हो जाएं। उसके बाद जब तक सरकार की नींद खुलेगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
महंगाई के इस दौर में भूसे के रेट 450 से 550 रुपये पहुंच गए हैं। अलसी की खल की 6000- 6500 रुपये प्रति कुंतल तथा चोकर भी प्रति कुंतल 1800 रुपये में मिल रहा है। ज्वार, बाजरे के रूप में चारा भी महंगा मिल रहा है। ऐसे में पशुपालकों को कर्ज चुकाना तो दूर डेयरी के रोजाना के खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है। वहीं गायों में बांझपन की समस्या भी बढ़ गयी है, इस समस्या का समाधान भी पशुपालन विभाग नहीं करा पा रहा।
डेयरी संचालकों को पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करने के साथ ही व्यवस्थाओं के संचालन के लिए नियमित रूप से कम से कम डेढ़ दर्जन मजदूरों की व्यवस्था करनी पड़ती है। वहीं पशुओं के इलाज की व्यवस्था भी खुद किसानों को करनी पड़ रही है। पशुपालन विभाग की ओर से पशुओं की समय-समय पर जांच तक नहीं की जाती।
पपसरा में मिनी कामधेनु डेयरी संचालक प्रीतम सिंह के मुताबिक निजी दूध कंपनियां मनमानी कर रही हैं, दूध औने-पौने दामों पर खरीदा जा रहा है। कंपनियां लीटर के बजाए किलो के आधार पर दूध खरीद रही हैं। इससे और नुकसान हो रहा है। हमारा दूध 23-26 रुपये किलो की दर से खरीदा जा रहा है, जबकि वही दूध बाजार में 50 से 52 रुपये लीटर बेचा जा रहा है। घाटे की स्थिति से निबटने को अपने पास के करीब 20 लाख रुपये खर्च कर चुके थे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का भी सहयोग नहीं मिला। बीमित होने के बावजूद मरने वाली गायों का क्लेम आज तक नहीं मिला। वहीं महंगाई की वजह से प्रतिदिन उन्हें दो से तीन हजार रुपये का घाटा हो रहा था, जिसे सहन करना मुश्किल हो रहा था। लिहाजा 50 गायों की मिनी कामधेनु डेयरी को बंद करना पड़ा।
वहीं अमरोह के मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी ब्रजवीर सिंह का कहना है कि पशुपालन विभाग की ओर से समय-समय पर पशुओं की जांच की जाती है। पशुओं के स्वास्थ्य के संबंध में पशुपालकों को जागरूक भी किया जाता है। रही बात ब्याज की तो कुछ किसानों के ब्याज की धनराशि आ गयी है, जबकि कुछ की डिमांड भेजी गयी है। सभी डेयरी संचालकों का ब्याज सरकार ही वहन करेगी। इसलिए डेयरी संचालकों को घबराने की आवश्यकता नहीं है। पंद्रह सितंबर तक सभी डेयरी संचालकों का ब्याज जमा करा दिया जाएगा। लेकिन अब नई डेयरी नहीं होगी, इस पर शासन ने रोक लगा दी है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी का कहना है कि डेयरी संचालकों को किसी भी तरह भी समस्या है तो वह उनसे मिलकर दूर करा सकते हैं।
(साभार-दैनिक जागरण)
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