डेयरी टुडे नेटवर्क,
रायपुर/नई दिल्ली, 7 जुलाई 2020
सोचिए अगर डेयरी किसानों को दूध के साथ गोबर के दाम भी मिलने लगें, तो उन्हें कितना फायदा होगा। जी हां, अब छत्तीसगढ़ में अब गाय-भैंस पालने वाले पशुपालकों के दिन फिरने वाले हैं। क्योंकि राज्य सरकार ने अब किसानों से डेढ़ रुपये प्रति किलो के हिसाब से गोबर खरीदने का फैसला किया है। गोबर खरीदने के लिए हाल ही में राज्य सरकार ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया था, जिसने गोबर खरीदी की दर पर अंतिम मुहर लगा दी है। अमर उजाला की खबर के अनुसार राज्य के कृषि मंत्री और समिति के अध्यक्ष रवींद्र चौबे ने इसकी घोषणा करते हुए कहा, “हमने डेढ़ रुपये प्रति किलो के हिसाब से गोबर खरीदने की अनुशंसा की है। इसे मंत्रिमंडल में पेश किया जाएगा। हमने गोबर खरीदने की पूरी तैयारी कर ली है और गांवों में 21 जुलाई, हरेली त्योहार के दिन से गोबर खरीदी की शुरुआत की जाएगी।”
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने ‘गोधन न्याय योजना’ के नाम से गोबर खरीदने का फैसला पिछले महीने लिया था। लेकिन गोबर खरीदी की दर क्या हो, इसे लेकर संशय था। इसके अलावा गोबर प्रबंधन को लेकर भी कई सवाल थे। इसके बाद गोबर खरीदने के लिये मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई गई थी। इस योजना के बारे में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना था कि पशु रखने के काम को व्यावसायिक रूप से फायदेमंद बनाने, सड़कों पर आवारा पशु की समस्या से निपटने और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से योजना महत्वपूर्ण है। हालांकि सरकार ने अब तक ये स्पष्ट नहीं किया है कि वो एक दिन में कुल कितना गोबर खरीदेगी और इस पूरी योजना में कुल कितना खर्च होगा और ये खर्च आएगा कहां से। गोबर की खरीदी को लेकर राज्य के मुख्य सचिव आरपी मंडल की अध्यक्षता में एक विशेष समिति गई है। ये समिति गोबर खरीदी के वित्तीय प्रबंधन पर रिपोर्ट तैयार कर रही है।
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि गोबर खरीदी की पूरी की पूरी कार्य योजना बेहद महत्वाकांक्षी और ग्रामीण अर्थव्यव्था को मजबूती प्रदान करने वाली साबित होगी। कृषि मंत्री रवींद्र चौबे का कहना है कि गांवों में बनाई गई गौठान समिति अथवा महिला स्व-सहायता समूह द्वारा घर-घर जाकर गोबर एकत्र किया जाएगा। इसके लिए ग्रामीणों का विशेष खरीदी कार्ड बनाया जाएगा, जिसमें हर दिन के गोबर की मात्रा और भुगतान का विवरण दर्ज होगा। मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने किसानों और पशुपालकों से खरीदे गए गोबर के एवज में हर पखवाड़े यानी हर पंद्रह दिन में एक बार भुगतान किए जाने की बात कही है। नगरीय इलाकों में गोबर की खरीदी का काम नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा तथा जंगल के इलाके में वन प्रबंधन समितियों द्वारा किया जाएगा।
रविंद्र चौबे ने कहा कि वर्मी कम्पोस्ट की आवश्यकता किसानों के साथ-साथ हार्टिकल्चर में, वन विभाग एवं नगरीय प्रशासन विभाग को भी होती है। ऐसे में गोबर से तैयार वर्मी कम्पोस्ट की खपत और उसकी मार्केटिंग की चिंता सरकार को नहीं है। रवींद्र चौबे का कहना है कि गौठानों में पहले से ही गोबर से कंपोस्ट बनाया जा रहा है। यहां बनने वाले वर्मी कम्पोस्ट को प्राथमिकता के आधार पर उसी गांव के कृषकों को निर्धारित मूल्य पर दिया जाएगा।
अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल, राज्य में पांच हजार गौठानों के जरिए गोबर खरीदी और खाद निर्माण का फैसला लिया गया है और इसमें लगभग साढ़े चार लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के 2019 के आरंभिक आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में लगभग 1,11,58,676 गाय और भैंस हैं और पशु वैज्ञानिकों की मानें तो एक औसत गाय-भैंस प्रतिदिन लगभग 10 किलो गोबर देती है। लेकिन गली-मोहल्लों में अभी से गोबर के गणित की चर्चा शुरु हो गई है। किसान भी गोबर का गणित हल करने में जुट गए हैं। धमतरी के किसान राजेश देवांगन कहते हैं, “अगर राज्य सरकार एक करोड़ गाय-भैंस का गोबर भी खरीदती है तो दस किलो के हिसाब से भी हर दिन लगभग 10 करोड़ किलो गोबर खरीदना होगा, जिसकी कीमत 15 करोड़ रूपये होगी। इस हिसाब से महीने के 450 करोड़ रूपये और साल भर में 5400 करोड़ रूपये का भुगतान सरकार को केवल गोबर के लिए ही करना होगा।”
लेकिन विपक्ष को संशय है कि राज्य सरकार अपनी इस योजना को अमली जामा पहना पाएगी। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का कहना है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने जितने भी वादे किए थे, उसमें से एक भी वादा सरकार पूरा नहीं कर पाई। रमन सिंह कहते हैं, “धान तो खरीद नहीं सके। एक-एक दाना धान खरीदने की बात थी, किसानों को बोनस देने की भी बात थी। दो साल का बोनस अभी भी बचा हुआ है। जब बोनस की बात होती है, तो नवयुवकों की बेरोजगारी भत्ता की बात भी होती है। लेकिन सरकार कहती है कि उसके पास पैसा नहीं है। सरकार गोबर भी खरीदे और धान भी खरीदे लेकिन इन बातों को लेकर बहानेबाजी नहीं होनी चाहिए।”
गाय, गोबर और गोमूत्र जैसे मुद्दे भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में दिखते रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने इन मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है। “छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी” (छत्तीसगढ़ के चार चिन्ह- नाला, गोवंश, जैविक कचरा और घर से लगी हुई खेत, जिसमें सब्जी उगाई जाती है) – के नारे के साथ सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी ने जलप्रबंधन, गोधन, घरों से निकलने वाले जैविक कचरे से खाद निर्माण और घर से सटी हुई जमीन पर सब्जी-भाजी उगाने की अपनी योजना को पहले दिन से ही लागू करने की घोषणा की थी। सत्ता में आने के बाद से राज्य सरकार गाय और बैलों को एक जगह रखने के लिये गांव-गांव में गौठान का निर्माण कर रही है। अधिकारियों के अनुसार अब तक प्रदेश में 2200 गौठान बनाए जा चुके हैं, इसके अलावा 2800 गौठान जल्दी ही तैयार हो जाएंगे। सरकार का दावा है कि सभी जिलों के गौठानों में महिला समूहों द्वारा वर्मी कम्पोस्ट खाद भी बनाया जा रहा है।
अब सरकार द्वारा निर्धारित दर पर किसानों एवं पशुपालकों से गोबर की खरीदी की जाएगी, जिससे बड़े पैमाने पर वर्मी कम्पोस्ट खाद का उत्पादन किया जाएगा। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि देश में पहली बार गोबर की खरीदी करने वाला छत्तीसगढ़ सरकार का यह फैसला एक तरफ जहां सड़कों पर घूमने वाले पशुओं की रोकथाम करेगा, वहीं इस गोबर से बनने वाले खाद से राज्य में जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। उनका कहना है कि इसके अलावा पशुपालकों को भी लाभ होगा और गांवों में रोजगार और अतिरिक्त आय के अवसर भी बढ़ेंगे। भूपेश बघेल ने आने वाले दिनों में गोमूत्र खरीदी के भी संकेत दिए हैं। उनका कहना है कि सरकार के इस फैसले से ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को लाभ होगा।
(साभार-अमर उजाला)
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