डेयरी उद्योग से निकलने वाले वसा युक्त कचरे से होगा बायोगैस का उत्पादन

डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 11 अक्टूबर 2021,

डेयरी और खाद्य उद्योगों से निकलने वाले कचरे के निपटान की हमेशा से ही चुनौतियां रही हैं। कुछ समय पहले किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि डेयरी से निकलने वाले वसा युक्त कचरे से बायोगैस उत्पादन में लगभग 30 फीसदी तक सुधार किया जा सकता है। वसा युक्त कचरे से बायोगैस उत्पादन और मीथेन उपज में वृद्धि की जा सकती है।

डाउन टु अर्थ वेबसाइट की खबर के मुताबिक भारतीय वैज्ञानिकों ने डेयरी उद्योग से निकलने वसा युक्त कचरे के निपटान के लिए कुशल, टिकाऊ और नई बायोरिएक्टर प्रणाली विकसित की है। डेयरी उद्योग में तरल अपशिष्ट प्रवाह को समाप्त करने या जीरो लिक्विड डिस्चार्ज को सक्षम बनाने के लिए इसे अपशिष्ट जल-शोधन आधारित मेंब्रेन बायो-रिएक्टर के साथ जोड़ा गया है।

इस तकनीक को काउंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च – सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-सीएफटीआरआई) मैसूर में डॉ. संदीप एन. मुदलियार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकी कार्यक्रम की सहायता से विकसित किया है। इसमें एक मॉडल डेयरी संयंत्र में प्रायोगिक स्तर के परीक्षण भी किया गया है। उन्होंने एक बेंच-स्केल सिस्टम बनाया था, जिसका प्रायोगिक स्तर पर परीक्षण किया गया है।

यह वसा और तेल युक्त मिश्रित ठोस अपशिष्ट के ऐनरोबिक डाइजेशन के लिए भी उपयोग किया जा सकता है और तरल अपशिष्ट प्रवाह पर लगाम लगाने के लिए इसे अपशिष्ट जल-शोधन के साथ जोड़ा जा सकता है। इसके अलावा, इस तकनीक को खाद्य और सहायक उद्योगों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उपयोग किया जा सकता है। सतत पूर्व-शोधन तकनीक, ऐनरोबिक डाइजेशन या अवायवीय पाचन प्रक्रिया को अधिक दक्ष बनाने के साथ-साथ बायोगैस उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी तरह के जटिल ठोस अपशिष्ट के लिए भी उपयोगी है।

डेयरी और खाद्य उद्योग ऐसे संभावित उद्योग हैं, जो इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। यह तकनीक किसी भी प्रकार के खाद्य उद्योग और उसके अपशिष्ट जल से निकलने वाले जैविक रूप से नष्ट होने योग्य ठोस अपशिष्ट और खाद्य अपशिष्ट के लिए उपयोगी है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट नेशनल इन्वेंटरी ऑफ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स 2021 के अनुसार भारत के सभी प्रथम श्रेणी के शहर और द्वितीय श्रेणी के शहर मिलकर अनुमानित रूप से 29129 एमएलडी सीवेज उत्पन्न करते हैं। जबकि स्थापित सीवेज उपचार क्षमता केवल 6190 एमएलडी है।

सीवेज उत्पादन और स्थापित सीवेज उपचार क्षमता के बीच 22939 एमएलडी का अंतर है। यह अंतर 78.7 फीसदी के बराबर है। अन्य 1742.6 एमएलडी सीवेज उपचार क्षमता योजना या निर्माण चरण में है। अगर इसे मौजूदा क्षमता में भी जोड़ा जाए तो भी सीवेज शोधन क्षमता में 21196 एमएलडी (72.7 फीसदी के बराबर) का अंतर है।

(साभार- downtoearth.org.in)

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