डेयरी टुडे डेस्क,
नई दिल्ली, 27 जनवरी 2020,
भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। पशुपालक किसान कृषि की जीडीपी में बड़ा योगदान देते हैं। ऐसे में दुग्ध सेक्टर की बजट से कई अपेक्षाएं हैं। हाल ही में दूध के दाम बढ़ने को लेकर लोगों ने अपनी नारजगी जाहिर की है। Amul Dairy के एमडी आरएस सोढ़ी ने मनी भास्कर से बात की और दूध के दाम बढ़ने के पीछे की वजहें, आगामी बजट से उनकी उम्मीदें और देश में दूध की खपत बढ़ाने के तरीकों के बारे में बताया। पेश हैं बातचीत के अंश:
जवाब- दूध के दाम बढ़ते ही लोग सवाल करने लगते हैं कि दाम क्यों बढ़ाए, ये सवाल तब नहीं उठता जब पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं। दूध के दाम बढ़ते ही लोग सवाल करने लगते हैं। अगर दूध के दाम नहीं बढ़ेंगे तो किसानों की आय कैसे बढ़ेगी। हर साल लोगों की सैलरी बढ़ती है, महंगाई बढ़ती है तो किसान की आय क्यों न बढ़े। दूध के भाव की बात करें, तो पिछले तीन साल में दूध का दाम चार रुपए प्रति लीटर बढ़ा है। यह तीन साल में औसत 8-9 फीसदी वृद्धि है। इसके मुताबिक दूध में औसत इन्फ्लेशन 2.7 फीसदी रहा है। इसके मुकाबले पेट्रोल में ज्यादा इंफ्लेशन आया है और लोगों की सैलरी ज्यादा बढ़ी है। जबकि गाय-भैंसों के चारे का दाम में पिछले साल के मुकाबले 30 से 35 फीसदी तक बढ़ गए हैं। ऐसे में किसान के लिए दूध के दाम बढ़ाना जरूरी हो जाता है।
उन्होंने कहा कि अगर दूध, सब्जियों, फलों समेत खाने की अन्य चीजों के दाम बढ़ेंगे तो शहरों की इंडस्ट्रीज को लोगों के वेजेस बढ़ाने पड़ेंगे। अगर वेजेस बढ़ाने पड़ेंगे तो उनका प्रॉफिट खत्म हो जाएगा। ऐसे में ये लोग गांव के किसी उत्पाद का दाम बढ़ने ही नहीं देते। जैसे ही दाम बढ़ते हैं, ये सरकार पर दबाव डालना शुरू कर देते हैं कि प्रास कंट्रोल कीजिए। मेरे खयाल से तो सरकार को फूड इंफ्लेशन को कभी कंट्रोल ही नहीं करना चाहिए।
जब देश आजाद हुआ था जब गांव या शहर कहीं भी रहने वाले परिवार की औसत आय समान थी। अब इसका अनुपात 1:5 का हो गया है क्योंकि शहर में आय बढ़ती जा रही है, जबकि गांव में आय बढ़ नहीं पाती। भारत में दूध के दाम का दाम दुनिया में सबसे कम है। यहां दूध के दाम का 80 फीसदी किसानों की जेब में जाता है, जबकि अन्य देशों में दूध की कीमत का सिर्फ 30-35 फीसदी ही किसानों की मिलता है। हमारे देश में दूध की सप्लाई चेन पूरे विश्व में सबसे बेहतर है, लेकिन महंगाई बढ़ने के साथ किसानों की आय बढ़नी चाहिए। 2014-15 में स्किम्ड मिल्क पाउडर का प्राइस 260-270 रुपए था। 2015-2016 में वो गिरकर 150 रुपए आ गया, उसकी वजह से किसानों को जो दूध का दाम मिलता था, वह 18 रुपए प्रति लीटर हो गया। अब यही दूध का दाम बढ़कर 31-32 हो गया तो लोगों को लगता है कि दूध का दाम बढ़ गया।
सोढ़ी ने कहा कि पिछले एक साल में दूध के साथ बटर, चीज, घी, मिल्क पाउडर सभी के दाम पांच से छह फीसदी बढ़े हैं। आने वाले कुछ महीनों में बटर, चीज, घी के दाम बढ़ाने की अमूल की कोई योजना नहीं है। अगर दाम बढ़ेंगे तो वो सामान्य इंफ्लेशन के मुताबिक ही बढ़ें, ज्यादा नहीं बढ़ें। दूध के भाव तो निकट भविष्य में नहीं बढ़ने वाले।
भारत में भरपूर मात्रा में दूध उपलब्ध है। दूध के उत्पादन में हम पहले नंबर पर हैं। लोग बस ऐसा कह रहे हैं कि दूध की कमी हो गई है, क्योंकि दूध के दाम बढ़ गए हैं। भारत में दूध की खपत भी कम नहीं है। पूरे भारत में 70 के दशक के मध्य तक दूध की प्रति व्यक्ति खपत थी 110 ग्राम प्रति दिन, अब देश की जनसंख्या ढाई गुना बढ़ गई है और प्रति व्यक्ति दूध की खपत बढ़कर 380 ग्राम प्रति दिन हो गई है। जनसंख्या बढ़ने के साथ दूध की खपत भी बढ़ी है। अगर विश्व से तुलना करें तो दूध की वैश्विक प्रति व्यक्ति खपत है 320-330 ग्राम प्रति दिन, तो भारत में तो उससे ज्यादा ही खपत है। बस भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में दूध की खपत अलग है। उत्तर भारत में दूध की प्रति व्यक्ति खपत 700-800 ग्राम है, जबकि पूर्वोत्तर के राज्यों में यह खपत 100-125 ग्राम ही है। जिस तरह से देश में दूध की खपत बढ़ रही है हम अगले 20-25 साल में अमेरिका के बराबर आ जाएंगे।
यह पूछने पर कि अमूल अब तक बाजार में सबसे बड़ा दूध ब्रांड कैसे है, आर एस सोढी ने बताया कि अमूल ने दो बातों का हमेशा खयाल रखा है- उत्पादकों को सही दाम मिले और ग्राहकों को सही दाम पर बेस्ट क्वालिटी उत्पाद मिले। अमूल ने कभी उत्पादाें की क्वालिटी से खिलवाड़ नहीं किया। हम गांवों से दूध के आने से ग्राहकों के पास तक पहुंचने के बीच में चार बार दूध की टेस्टिंग करते हैं। इतना ही नहीं 55-60 साल पहले अमूल की आइसक्रीम या मक्खन की जो रेसिपी थी, आज भी वही है, इसलिए लोगों को अमूल का स्वाद पसंद आता है।
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि कोई उत्पाद ज्यादा सफल हुआ तो हम उसकी क्वालिटी में कॉम्प्रोमाइज करके ज्यादा मुनाफा कमा लें। हमने कभी उत्पादों के उत्पादन की कीमत कम करने के लिए महंगे इंग्रीडिएंट्स के बजाय सस्ते या सिंथेटिक इंग्रीडिएंट्स नहीं इस्तेमाल किए। साथ ही हमने कभी उत्पादों के सफल होने पर लोगों से मनमाने पैसे नहीं वसूले। इसलिए लोगों का अमूल में अंधविश्वास है, ऐसा विश्वास लोगों का सिर्फ उनके धर्म में होता है, जहां वे सवाल नहीं करते। हम चाहते हैं कि लोगों का अमूल में ऐसा ही विश्वास रहे कि वे दुकान पर जाएं और सीधा अमूल का पैकेट उठाएं।
आरएस सोढ़ी ने कहा कि देश की जीडीपी में कृषि का योगदान 17 फीसदी है और कृषि की जीडीपी में पशुपालन की हिस्सेदारी 30 फीसदी है। इसके मुकाबले देखा जाए तो सरकार को जो कृषि का बजट है तकरीबन 1.75 लाख करोड़ रुपए का उसमें पशुपालन की हिस्सेदारी सिर्फ तीन हजार करोड़ रुपए है। तो जिस गरीब किसान के पास खेत नहीं है उसको सरकार एक तरीके से बजट का हिस्सा मानती ही नहीं है। सारा बजट उन बड़े जमींदारों के लिए है जिनके पास जमीनें हैं। उन्हें तकरीबन हर चीज में सब्सिडी मिल जाती है। पशुपालकों को कोई सब्सिडी नहीं मिल पाती है। ऐसे में सरकार के बजट का कम से कम एक फीसदी तो पशुपालकों के लिए होना चाहिए। अगर सरकार चाहती है कि दूध का दाम कम हो तो जिस तरह से कृषि को फंडिंग मिलती है और सब्सिडी मिलती है, वैसे ही पशुपालकों को मिलनी चाहिए। इसमें चारे का दाम सस्ता करना, पशु खरीदने के लिए लोन सस्ता करना। जितना उत्पादन का खर्च कम होगा, किसान उतने सस्ते दाम पर दूध बेच पाएगा।
भारत सरकार क्रॉप लोन देती है चार फीसदी पर जबकि अगर किसी किसान के पास पास जमीन नहीं है और उसे पशु खरीदने हैं तो उसे दस फीसदी पर लोन मिलता है। तो इससे लगता है कि कृषि की प्राथमिकता के क्षेत्र में डेयरी को शामिल नहीं किया गया है। हैरानी की बात यह है कि अगर किसी किसान के पास बीस या तीस एकड़ जमीन है तो उसकी कृषि की आय पर कोई टैक्स नहीं है, लेकिन अगर किसी किसान के पास बीस गाय या भैंसें हैं और एक भी एकड़ जमीन नहीं है फिर भी किसान इनकम टैक्स के दायरे में आ सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार घी को लक्जरी प्रोड्क्ट मानती है, उसपर 12 फीसदी टैक्स लगता है। जबकि मेलशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया से आने वाले रिफाइंड ऑयल पर सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी लगता है। किसान को जीएसटी के चलते दूध के तीन से चार रुपए कम मिलते हैं। अगर सरकार जीएसटी कम कर देंगे तो किसान को दूध के तीन-चार रुपए ज्यादा मिल जाएंगे या कस्टमर्स को चार रुपए तक दूध सस्ता मिल सकेगा।
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