चंडीगढ, 29 जुलाई 2017,
हरियाणा सरकार शहरों में ‘काऊ हॉस्टल’ बनाने की याेजना पर काम कर रही है। इनमें लोगों को अपनी गाय और चारा रखने के लिए किराए पर शेड मिलेगा। गाय पालने के इच्छूक लोगों को सोसायटी बनाकर मैनेजमेंट देखना होगा। गायों के सेवादारों आदि का खर्च भी खुद उठाना होगा। यानी आपको पैसे खर्च कर अपनी गाय का शुद्ध दूध मिल सकेगा। ऐसा प्रस्ताव राज्य गोसेवा आयोग ने सीएम मनोहरलाल को भेजा है। सीएम की मंजूरी के बाद इस पर काम शुरू हो जाएगा। इसकी शुरुआत पंचकूला या गुड़गांव से हो सकती है। आयोग चेयरमैन भानीराम मंगला का कहना है कि प्रयोग सफल रहा तो इस मॉडल को पूरे प्रदेश में अपनाया जाएगा। इसके लिए संबंधित नगर निगम, नगर परिषद और नगरपालिकाएं जमीन उपलब्ध कराएंगी।
2012 की पशुगणना के मुताबिक प्रदेश में करीब 1.48 लाख गाय सड़कों पर घूम रही हैं। 85 हजार ग्रामीण और 33 हजार शहरी इलाकों में। वहीं, गोसेवा आयोग का दावा है कि प्रदेश में इस वक्त 30 हजार गाय ही सड़कों पर हैं। 437 गोशाला हैं। इनमें करीब 3.2 लाख गाय हैं। पानीपत और हिसार में गो-अभयारण्य बनाने की योजना है।
राज्य गोसेवा आयोग पीपीपी मॉडल पर गायों की डेयरी चलाने की संभावनाएं भी तलाश रहा है। डेयरी में भी लगभग यही मॉडल काम करेगा। लोग चाहें तो सोसायटी बनाकर डेयरी भी चला सकते हैं। वहां बायोगैस प्लांट लगाने के साथ ही गोबर से खाद और अन्य उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं।
मंगला के मुताबिक एक सामान्य गाय औसतन 35 से 40 हजार रु. में मिल जाती है। गाय ‘काऊ हॉस्टल’ में रखी जाए तो किराया, चारा-पानी और सेवादार का वेतन आदि मिलाकर रोजाना करीब 200 रुपए एक गाय पर खर्च आएगा। गाय औसतन 8 से 10 लीटर तक दूध देती है। दूध का भाव औसतन 50 रुपए प्रति लीटर भी मानें तो 400 से 500 रुपए का दूध मिल जाता है। मालिक चाहे तो दूध निजी उपयोग में ले सकता है या जरूरत से ज्यादा दूध को बेच सकता है। इससे परिवार को शुद्ध दूध, दही, घी, मक्खन मिलेगा। घर का कुछ खर्च भी निकल सकता है। इससे गायों का संरक्षण और संवर्धन होगा।
‘काऊ हॉस्टल’ में औसतन 40-50 गाय रखने की सुविधा हाेगी। इनमें चारे-पानी के साथ गायों की सेवा के लिए स्टाफ होगा। इसका खर्च खुद उठाना होगा। हालांकि, यह भी हो सकता है कि नगरीय निकाय ‘काऊ हॉस्टल’ के लिए जमीन उपलब्ध करा दें। मालिकाना हक उन्हीं का रहेगा। गोपालक सोसायटी बनाकर शेड का निर्माण करा लें और निकाय को जमीन का किराया देते रहें। इससे गायों की बेहतर देखभाल हो सकेगी।
साभार-दैनिक भास्कर
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