डेयरी टुडे नेटवर्क,
प्रयागराज (यूपी), 3 मई 2020,
कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने देशभर में डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसानों, पशुपालकों और दुग्ध डीलरों की कमर तोड़कर रख दी है। कोरोना ने ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं कि बाजार से लेकर होटलों तक सब जगह सन्नाटा है। बस लोग अपनी न्यूनतम जरूरत को पूरा करने के लिए दूध खरीद रहे हैं। अगर पहले वाला समय होता तो इन दिनों दूध का उत्पादन कम और मांग ज्यादा होने के चलते डेयरी किसानों को दूध की अच्छी कीमत मिलती। लेकिन कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के कारण इस बार उल्टी गंगा बह रही है। और इस समय देशभर में डेयरी किसानों को अब तक के सबसे कम दूध के दाम मिल रहे हैं। उत्तर प्रदेश की संगमनगरी प्रयागराज में दूध सस्ता हो गया है और पानी महंगा। एक लीटर पानी की बोतल 20 रुपये में बिक रही है जबकि यहां गाय का दूध 15 रुपये तो भैंस का दूध 18 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है।
कोरोना के चलते शादी एवं अन्य समारोह नहीं हो रहे हैं। मिठाई की दुकानें भी बंद हैं। इस वजह से दूध की मांग कम हो गई है। स्थिति यह है कि लॉकडाउन के पहले जिले में हर रोज 1.10 लाख लीटर दूध बिकता था। लेकिन इस समय लगभग 68,000 लीटर के आसपास दूध की बिक्री हो रही है। बिक्री सिर्फ विवाह आदि समारोह और मिठाई की दुकानें बंद होने से नहीं प्रभावित हुई है। कोरोना के भय से लोग दूधियों से दूध लेने में भी कतरा रहे हैं। दूध का कारोबार करने वालों की कमर टूट गई है। इनके लिए मवेशियों को पौष्टिक आहार में आने वाला खर्च निकलाना मुश्किल हो रहा है। मवेशियों और खुद का पेट भरने के लिए कोरोबारी पहले की तुलना में आधे से भी कम दाम पर दूध बेचने के लिए मजबूर हैं।
पशुपालक खोवा बना कर भी बेहतर आमदनी करते थे, लेकिन उसकी भी बिक्री बंद हो गई है। ज्यादातर पशुपालक खोवा बना ही नहीं रहे हैं। जो बना रहे हैं, वे कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर हैं। 150 से 200 रुपये प्रति किलो बिकने वाला खोवा इस समय 70 से 80 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है। छाछ और दही की बिक्री भी प्रभावित हुई है, जबकि पनीर की मांग बढ़ी है।
शहर में हर रोज 1.10 लाख लीटर दूध की खपत है। इसमें लगभग 70 हजार लीटर दूध अलग-अलग कंपनियों के जरिए बेचा जाता है तो 35 से 40 हजार लीटर दूध की आपूर्ति दूधिया घर-घर और दुकानों पर जाकर करते हैं। पराग डेयरी के महाप्रबंधक दिनेश कुमार सिंह कहते हैं कि जिले में हर रोज 50 लाख रुपये से अधिक का दूध का कारोबार होता है, लेकिन इस समय 25 लाख का ही कारोबार हो पा रहा है। सरकार को दूध कारोबारियों के लिए उचित और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. आरपी राय कहते हैं कि दूध का धंधा मंदा हो चुका है। सरकार को दूध के कारोबारियों को अनुदान देना चाहिए।
श्रीगंगाधाम डेयरी के संचालक और प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर अजीत त्रिपाठी ने बताया कि उनके डेयरी फार्म और गौशाला में रोजना करीब 1200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। पहले हाथों-हाथ सारा दूध बिक जाता था, लेकिन अब आधा दूध भी बिकना मुश्किल हो गया है। पहले शहर के बाहरी इलाके में स्थित उनके डेयरी फार्म में सुबह-शाम सैकड़ों लोग दूध लेने आते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण अब सन्नाटा है। कोरोना की दहशत में लोग दूध खरीदने से कतरा रहे हैं। यहां तक की पराग डेयरी और अन्य डेयरी कंपनियां भी 15 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा का दाम नहीं दे रही हैं। मजबूरन उन्हें दूध आस-पास के गांवों में बांटना पड़ता है। डेयरी में काम करने वालों का खर्च निकालना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि गायों को खिलाना और कर्मचारियों की सैलरी देना भी भारी पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से डेयरी संचालकों को आर्थिक मदद देने की मांग की है।
(साभार- हिंदुस्तान)
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दुग्ध उत्पादकों पर दोहरी मार।
एक तो दूध का उचित दाम नहीं मिल रहा दूसरे चार-दाना सभी मंहगा।