डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 2 फरवरी 2020,
मोदी सरकार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भले ही इस साल के बजट में किसानों, गांवों और खेती को फोकस करने का दावा कर रहे हों, लेकिन देश के किसानों को बजट रास नहीं आया है। किसानों का कहना है कि इस बजट में हमारे संकट का कोई समाधान नहीं है। जाहिर है कि वित्त मंत्री ने किसाननों और ग्रामीण विकास के लिए कुल 2.83 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, लेकिन किसानों ने इसे नाकाफी बताया है।
किसान नेता और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह के मुताबिक पिछली बार बजट में किसानों के लिए “जीरो बजट” खेती थी, इस बार किसानों के लिए पूरा बजट ही “जीरो” है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद थी कि सरकार बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाएगी, लेकिन बजट में ऐसा कुछ नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि 50 फीसदी से ज्यादा आबादी गांव में रहती है। केंद्र सरकार अगर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत का डेढ़ गुना, यानि सी2 के आधार पर तय करती है, तो किसानों को एक एकड़ पर करीब 10 हजार रुपये की अतिरिक्त आय होगी। किसान इस राशि का खर्च करेगा, तो इकोनॉमी अपने आप ही बूस्ट हो जाएगी।
किसान नेता वीएम सिंह के मुताबिक सरकार ने बजट में घोषणा की है कि 15 लाख करोड़ रुपये का ऋण मिलेगा। इस देश का किसान पहले ही कर्ज के बोझ तले दबाव हुआ है, उनकी जमीन बैंकों के पास गिरवी रखी है। ऊपर से कृषि कर्ज को और बढ़ा दिया, जबकि हम सरकार से शुरू ही मांग करते आ रहे हैं कि देशभर के किसान को संपूर्ण कर्ज माफी चाहिए। सरकार ने फसलों की खरीद की इस बजट में कोई गारंटी नहीं दी। सरकार ने कहा कि 11 हजार करोड़ किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिला। लेकिन सच्चाई यह है कि इससे किसानों के बजाए बीमा कंपनियों को फायदा मिला है।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों के लिए बजट निराशाजनक है। वित्त मंत्री ने जो सोलह सूत्रीय कार्यक्रम घोषित किया है उससे देश के 10 फीसदी किसान भी कवर नहीं हो रहे हैं। इस बजट में गांव, गरीब और किसान के कल्याण से कोई वास्ता नहीं है। श्री टिकैत ने कहा कि जिस तरह का गोलमोल बजट पेश किया गया है, उसका विश्लेषण करना भी बड़ा कठिन कार्य है। जिस संकट के दौर से कृषि क्षेत्र गुजर रहा है उसके लिए 16,000 छोटे-बड़े कार्यक्रम भी चलाये जाएं तो कम है। किसानों की मुख्य मांग लाभकारी मूल्य और खरीद की गारंटी का बजट में कोई जिक्र तक नहीं किया गया। बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने बजट की निंदा की है।
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कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा, ‘सभी लोग ये बात कर रहे थे कि आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए ग्रामीण मांग को बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि बजट में इस दिशा में कोई खास बातें नहीं हैं। इस वर्ष कृषि, सिंचाई, संबद्ध गतिविधियों और ग्रामीण विकास का बजट 2.83 लाख करोड़ रुपये है.पिछले साल यह 2.63 लाख करोड़ रुपये था।’
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कृषि मामलों के जानकार योगेंद्र यादव ने कहा कि इस बजट में खेती, गांव, किसान पर खुला तीन तरफा हमला बोल दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को खरीद का अनुदान (सब्सिडी) घटाने का फैसला लेने की वजह से अब फसल का दाम कम होगा।’ वित्त वर्ष 2019-20 के लिए एफसीआई को 1,51,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का आवंटन किया गया था, जिसे वित्त वर्ष 2020-21 में घटाकर 75,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता और पूर्व लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि सरकार ने बजट में किसानों के लिए बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन किसानों के हालात बदलने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि चीनी मिलों के साथ ही कपास उद्योग हो या फिर Dairy Sector के लिए किसी भी सेक्टर के लिए कुछ खास नहीं किया। सरकार ने घोषणा है कि 20 लाख किसानों को सोलर पंप दिए जायेंगे, जबकि देशभर में 14.50 करोड़ किसान हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए नए बाजार या फिर उत्पादक क्षेत्रों में प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। किसानों के लिए की गई घोषणाओं के मद्देनजर, कृषि में कुल आवंटन बहुत कम किया गया है।
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