डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 1 जून 2019
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में पहली बार डेयरी और पशुधन विभाग का अलग मंत्रालय बनाया है। पहले डेयरी और पशुपालन विभाग कृषि मंत्रालय के तहत ही रहता था। जाहिर है कि कृषि का काफी व्यापक दायरा है और डेयरी, पशुपालन विभाग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। जाहिर है कि मोदी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य लेकर चल रही है और इसमें डेयरी और पशुपालन का अहम योगदान रहने वाला है। क्योंकि हर किसान किसी न किसी रूप में पशुपालन और डेयरी से जुड़ा हुआ है।
देश में पशुपालन क्षेत्र के विकास और इस काम में लगे किसानों की आमदनी बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने पशुधन और डेयरी का अलग मंत्रालय बनाया है। कृषि मंत्रालय से अलग करके बनाए गए इस मंत्रालय का चार्ज गिरिराज सिंह को दिया गया है। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लि. (जीसीएमएमएफ) यानी अमूल के चेयरमैन रामसिंहभाई परमार ने सरकार के इस फैसले को अच्छा कदम बताया है और उम्मीद की है कि अलग मंत्रालय बनने से इस क्षेत्र पर सरकार का बेहतर फोकस होगा।
श्री परमार ने कहा है कि पहली बार सरकार ने इस क्षेत्र के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया है। पशुओं की नवीनतम गणना के अनुसार देश में 30 करोड़ दुधारू पशु हैं। पशुपालन और डेयरी क्षेत्र से हर साल देश की जीडीपी में 7.7 लाख करोड़ रुपये (4.4 फीसदी) का योगदान होता है जो देश में दलहन और अनाज के संयुक्त योगदान से भी ज्यादा है। अलग मंत्रालय बनाने से क्षेत्र पर समुचित फोकस रहेगा और बजट तथा संसाधनों का सही इस्तेमाल हो सकेगा।
भारत पिछले 21 साल से दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। इस समय देश में हर साल 17.6 करोड़ टन (48 करोड़ लीटर रोजाना) दूध का उत्पादन है जो पूरी दुनिया के दुग्ध उत्पादन का 20 फीसदी है। परमार ने कहा कि पशुपालन और डेयरी सेक्टर में किसानों की आय बढ़ाने और प्रधानमंत्री के विजन के अनुसार 2022-23 तक आय दोगुनी करने की पूरी क्षमता है। इस समय कुल कृषि आय में पशुपालन क्षेत्र का योगदान 12 फीसदी है। हालांकि एनएसएसओ के सर्वे के अनुसार पशुपालन क्षेत्र का योगदान 14.3 फीसदी है।
केंद्र सरकार ने मुंह एवं खुर पका और माल्टा ज्वर (ब्रुसेलोसिस) जैसी बीमारियों से निपटने के लिए अलग से 13,343 करोड़ रुपये आवंटित करने का फैसला किया ताकि अगले पांच साल में इन बीमारियों पर रोकथाम करके पशुपालन और डेयरी का तेज विकास सुनिश्चित किया जा सके। परमार ने कहा कि फैसले से समुचित नीतिगत उपाय किए जा सकेंगे। इससे न सिर्फ करोड़ों पशुपालकों को फायदा होगा बल्कि शहरी उपभोक्ताओं को भी लाभ मिलेगा।
जीसीएमएमएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर आर. एस. सोढी ने कहा कि खुर-मुंह पका बीमारी के समय दूध उत्पादन का 80-90 फीसदी नुकसान होता है जबकि ज्वर के समय 25-30 फीसदी का नुकसान होता है। इस बीमारी से रोकथाम के लिए टीकाकरण किए जाने से उत्पादकों को इस नुकसान से बचाया जा सकेगा। सोढ़ी ने कहा कि इस पहल से दुग्ध उत्पादन की हानि रोकी जा सकेगी। इसका सीधा लाभ उत्पादकों को मिलेगा। उनका कहना है कि अगले 40 साल में देश की आबादी मौजदा 135 करोड़ से बढ़कर 170 करोड़ हो जाएगी। इसमें 50 फीसदी आबादी शहरों में होगी जबकि इस समय 32 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं। उस समय शहरी आबादी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 64 करोड़ लीटर दूध की रोजाना आवश्यकता होगी। इसके लिए अगले 40 साल तक उत्पादन में 3.2 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी करनी होगी।
(साभार-आउटलुक)
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Nice
It is a revolutionary step taken by government now we hope that dairy sector which is only viable alternative of stagnated agriculture production systems will get more attention and level playing field
Team work
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Yes, it is true