डेयरी टुडे नेटवर्क
शाहजहापुर, 29 दिसंबर 2017,
दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक लगातार कोशिश में जुटे हैं। तरीके भी तमाम अपनाए जाते हैं लेकिन, शाहजहापुर की होनहार छात्रा ने बेहद देसी नुस्खा अनुसंधान प्रोजेक्ट के तहत ढूंढ़ निकाला है। वो यह कि भैंस हर सीजन में खूब दूध देगी, बशर्ते उसे दिन में तीन बार नहलाया जाए। वैज्ञानिकों ने भी छात्रा के इस तर्क पर मुहर लगाई है।
आमतौर पर भैंस गर्मियों में दूध देना काम कर देती है। यह प्राकृतिक कारणों पर निर्भर करता है। वह सर्दी और बरसात की तरह कैसे भरपूर दुधारू बनी रहे, इसी विषय पर डान एंड डोना स्कूल की छात्रा आरजू जमाल ने शोध किया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के राष्ट्रीय बाल विज्ञान काग्रेस (एनसीएससी) की पहल पर 17 साल तक के बच्चों से अनुसंधान प्रोजेक्ट मागे गए। आरजू ने शाहजहापुर में एकेडमिक कोआर्डिनेटर डॉ. टीबी यादव, जिला कोआर्डिनेटर इरफान ह्यूमन के निर्देशन में काम शुरू किया। गर्मी के मौसम में भैंस में दुग्ध उत्पादन की कमी का कारण व समाधान पर प्रोजेक्ट तैयार किया। आरजू ने ग्रुप की छात्राओं के साथ पुवाया, सिंधौली, चिनौर तथा शहर में नदी के किनारे की डेयरियों का सर्वे कर दुग्ध उत्पादन पर रिसर्च किया।
आरजू जमाल ने अपने सर्वे को दौरान नदी के किनारे की डेयरी की भैंसों में गर्मी के दौरान उत्पादन की कमी को नगण्य पाया। जबकि चिनौर, सिंधौली और पुवाया में अपेक्षाकृत अधिक कमी पाई गई क्योंकि यह गांव नदी के करीब नहीं थे। इस लिहाज से शोध में यह निष्कर्ष निकला कि नदी किनारे भैंस खूब नहाती हैं, उन्हें गर्मी से राहत मिलती है। ऐसे में उनके शरीर का तापमान स्थिर रहता है और वे भरपूर दूध देती हैं। इनीसिएटिव रिसर्च एंड इनोवेशन इन साइंस (आइआरआइएस) ने भी इस प्रोजेक्ट को जनमानस की जरूरत मानते हुए दिल्ली में 16 से 19 नवंबर के बीच आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान मेला के लिए चयनित किया है। देश के 70 अन्य मेधावी भी शामिल किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के दो विद्यार्थियों में आरजू को भी यह गौरव हासिल हुआ।
दरअसल, अप्रैल से जून के बीच भैंस का दूध उत्पादन 40 फीसद तक गिर जाता है। राष्ट्रीय बाल विज्ञान काग्रेस के तहत मागे प्रोजेक्ट में कोआर्डिनेटर की सलाह पर आरजू ने दूध की किल्लत दूर करने को प्रोजेकट में शामिल किया। रिसर्च में नमी और तापमान के प्रभाव से भैंस के दूध उत्पादन में गिरावट पाई गई।
आरजू ने आर्थिक गणना में पाया 3500 मासिक पगार वाला एक श्रमिक रोजाना दस भैंसो को तीन बार स्नान करा सकता है। इससे प्रति भैंस 27 रुपये का अधिक दूध उत्पादन होगा। जबकि दो बार स्नान कराने पर प्रति भैंस 10.39 रुपये अधिक दूध लिया जा सकेगा।
पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. टी बी यादव के मुताबिक भैंस में पसीने की ग्रंथियां नहीं होती है। इस कारण भैंस ऊष्मा का उत्सर्जन नहीं कर पाती। जबकि काला रंग होने की वजह से ऊष्मा का अवशोषण अधिक होता है। गर्मियों में नमी कम और तापमान अधिक होने की वजह से भैंस का दूध सूख जाता है। स्नान कराने से नमी मेंटेन हो जाती और तापमान का भी कम प्रभाव पड़ता है। जब भैंस के ऐन क्षेत्र में 200 से 300 लीटर रक्त का संचरण होता तब एक लीटर दूध तैयार होता है। गर्मी में रक्त संचरण धीमा हो जाता। स्नान कराने पर भैंस रिलेक्स फील करती, ऐन क्षेत्र का ब्लड सर्कुलेशन भी बढ़ जाता। इस कारण भी दुग्ध उत्पादन मे वृद्धि होती है।
केंद्रीय पशु चिकित्सा एंव अनुसंधान संस्थान के रिटायर्ट वैज्ञानिक डॉ. पंकज गंगवार का कहना है कि भैंस को तीन बार नहलाने से दूध उत्पादन गर्मी में प्रभावित न होने की बात सही है। शोध में यह बात पूर्व में सामने आ चुकी है। हालाकि, इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि भैंस को दोपहर में धूप से आने के फौरन बाद न नहलाया जाए। इससे गलघोंटू बीमारी हो सकती है। सुबह सूर्योदय या दूध निकालने से पहले, दोपहर को छाया में पहले से ही खड़ी भैंस और शाम को सूर्योदय के आधे घटे बाद भैंस को नहलाना चाहिए। इसके अलावा मडबाथ (कीचड़ में भैंस का बैठना) भी काफी सहायक है।
(साभार-दैनिक जागरण)
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