डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 4 सितंबर 2021,
दूध को लेकर एक बड़ा विवाद का अब खत्म हो सकता है। फूड रेगुलेटर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआई (FSSAI) ने अपने ताजा आदेश में साफ किया है कि प्लांट बेस प्रोडक्ट खुद को मिल्क नहीं कह सकते। एफएसएसएआई के आदेश के बाद सोया मिल्क, बादाम मिल्क या ओट मिल्क बेचने वाले ब्रांड्स को मिल्क (Milk) शब्द का इस्तेमाल बंद करना होगा। साथ ही ई-कॉमर्स कंपनियों से कहा गया है कि वे तत्काल प्रभाव से ऐसे प्रोडक्ट्स को अपने पोर्टल से हटाएं जो प्लांट बेस होने के बावजूद खुद को मिल्क कहते हैं या डेयरी के अन्य शब्दों से पहचाने जाते हैं।
FSSAI के आदेश के मुताबिक मिल्क या डेयरी के अन्य प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल सिर्फ उन प्रोडक्ट्स के लिए हो सकता है जो जानवरों से आते हों। अगर वनस्पतियों से आने वाले प्रोडक्ट के लिए मिल्क शब्द का इस्तमाल होने लगे तो ये मिस ब्रांडिंग का मामला होगा।
खबरों के मुताबिक एफएसएसएआई ने राज्य के फूड कमिश्नरों, फूड बिजनेस ऑपरेटरों और ई-कॉमर्स कंपनियों से ऐसे प्रोडक्ट्स की लेबलिंग की जांच करने का निर्देश दिया है। ई-कॉमर्स कंपनियों से कहा गया है कि भविष्य में भी मिल्क लेबल के साथ प्लांट प्रोडक्ट्स को अपने प्लैटफॉर्म पर ना बेचें।
आदेश के मुताबिक, Food Products Standards and Food Aditives Regulations, 2011 में साफ तौर पर दूध और दुग्ध प्रोडक्ट्स के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं और कहा गया है कि किसी ऐसे उत्पाद के लिए डेयरी से जुड़े शब्दों का उपयोग नहीं किया जा सकता जो दूध या दूध से बने प्रोडक्ट्स ना हों।
हालांकि, इन प्रावधानों के कुछ अपवाद भी हैं। कुछ प्रोडक्ट्स के नामकरण में डेयरी से जुड़े शब्दों का उपयोग किया जा सकता है अगर वे अंतरराष्ट्रीय रूप स्वीकृत सिद्धांत के आधार पर हों। कोकोनट मिल्क, पीनट बटर जैसे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता रहेगा क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य हैं और परंपरागत रूप से उनके नामकरण में उपयोग किया जाता है और ऐसे उत्पाद दूध या दूध प्रोडक्ट्स के विकल्प नहीं होते हैं। साथ ही सोयाबीन कर्ड का इस्तेमाल भी होता रहेगा क्योंकि कर्ड शब्द का उपयोग डेयरी के अलावा भी होता है और यह Codex standards के अनुरूप भी है।
भारत में दर्जनों ऐसे ब्रांड हैं जो सोया और आलमंड मिल्क, चीज और सोया मिल्क पाउडर बेच रहे हैं। सबसे पॉपुलर है हर्शे और रॉ प्रेसरी जैसे ब्रांड लेकिन अरबन प्लैटर जैसे छोटे ब्रांड भी इस तरह के प्रोडक्ट लेकर आए हैं।
डेयरी कंपनियां इस मामले के लेकर कोर्ट भी जा चुकी हैं। नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन – (NCDFI) की याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट ने एफएसएसएआई सहित सभी पक्षों को नोटिस भी दिया था। फेडरेशन ने याचिका में कहा था कि बादाम और सोया से बनने वाले कथित दूध को दूध कहकर बेचने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया था कि सोया, बादाम या अन्य चीजों से निकाले गए उत्पादों या पेय पदार्थों को दूध या दुग्ध उत्पाद कहकर पनीर, दही की तरह नहीं बेचा जा सकता है। कोर्ट ने यह मामला दिलचस्प और जनहित से जुड़ा पाया क्योंकि इससे सीधे तौर पर व्यक्ति का स्वास्थ्य जुड़ा है।
मामले ने तब और तूल पकड़ा था जब एनिमल राइट्स संस्था पेटा (PETA) ने अमूल सहित तमाम डेयरी कंपनियों को प्लांट बेस पेय बनाने का सुझाव दिया था। जवाब में अमूल ने पेटा पर भारतीय डेयरी इंडस्ट्री की छवि खराब करने का आरोप लगाया था। मगर अब एफएसएसएआई की सफाई के बाद दूध नाम से कोई औप पदार्थ बेचना संभव नहीं होगा।
(साभार)
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This is great step by FSSAI but still incomplete. Today even animal milk is broken down into fat and smp and then it is used to prepare the milk again as required. After breaking all components animal milk doesn't remain natural milk at all. It's as good as soya milk or any other plant based milk.