डेयरी टुडे नेटवर्क,
वाराणसी, 21 सितंबर 2017,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी दौरे पर शाहंशाहपुर जाना पूर्वांचल और बिहार में गंगा के तटवर्ती इलाकों में ही पाई जाने वाली गंगातीरी गायों को नई पहचान दिलाने में मददगार होगा। पीएम मोदी गांव में 1950 में स्थापित राजकीय पशुधन एवं कृषि प्रक्षेत्र में आएंगे तो यहां के 323 गोवंश के बारे में देश-दुनिया नए सिरे से जान जाएगी। गंगातीरी गाय उत्तर प्रदेश की अपनी नस्ल है। दो साल पहले यहां कृषि मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू किया गया था।
गोकुल मिशन के लिए मथुरा और बनारस को चुना गया है। मथुरा में इस मिशन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी पं. दीनदयाल पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय को दी गई है, जबकि वाराणसी में यह काम राजकीय पशुधन एवं कृषि प्रक्षेत्र कर रहा है। दो साल पहले यहां गोवंश की संख्या 260 थी, जो अब बढ़कर 323 पहुंच गई है। 100 गायों को और खरीदा जाना है। आठ लीटर से ज्यादा दूध देने वाली गायों को प्रक्षेत्र का हिस्सा बनाने के लिए गोपालकों से खरीदा जाता है।
उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के उप निदेशक डॉ. जेपी सिंह ने बिहार के छपरा से छह गंगातीरी गायों को खुद खरीदा है। प्रदेश की अपनी नस्ल का पंजीकरण (नंबर 3039) करा लिया गया है। अब इस प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए उन्नत नस्ल के सांड़ों के सीमन कलेक्शन और स्टोरेज का काम शुरू हो चुका है। 41 गायों की ब्रीडिंग भी हो चुकी है। ब्रीड को अपग्रेड करने के दिसंबर तक नतीजे आने की उम्मीद है। यहां की गायों के मूत्र पर स्वंयसेवी संस्था सुरभि शोध संस्थान काम कर रहा है।
23 सितंबर को इस गोवंश के चारे-दाने का ठिकाना बदल जाएगा। गाय, बछड़े-बछिया और सांड़ सब ट्यूबलाइट की रोशनी और नए सीलिंग फैन लगे नए शेड में शिफ्ट किए जा रहे हैं। परिसर में ही गायों और सांड़ों के लिए गोशाला और बछड़े-बछियों के लिए गोवत्सशाला अलग-अलग बनाई गई है। शेड इस तरह से डिजाइन किए गए हैं, जिससे गोवंश पर सूरज की रोशनी कम से कम पड़े और हवा का प्रवाह लगातार बना रहे। गर्मी के सीजन में जरूरत पड़ने पर शेड में कूलर भी लगाने की योजना है। फिलहाल यहां गायों का दूध 36 रुपये प्रति लीटर है। हालांकि टेंडर होने के कारण इसे आम लोगों को नहीं बेचा जाता है।
हर मौसम में नहाने की बेहद शौकीन गंगातीरी गाय अपने नंबर और नाम के साथ अपनी सेवा करने वालों को आसानी से पहचान लेती हैं। प्रक्षेत्र की सभी गायों को उनकी पहचान के लिए अलग-अलग नंबर दिया गया है। नंबर बोलने पर ही संबंधित गाय समझ जाती है। यहां के कर्मचारी खाना खिलाते समय, गाय को दुहते समय उसी नंबर से पुकारते हैं। यही नहीं, गाय के बच्चे भी 15 दिन बाद ही अपनी मां के नंबर को आवाज़ लगाने पर जान जाते हैं। फार्म अधीक्षक अशोक सिंह ने बताया कि सुबह-शाम दुहान के समय जब गाय का नंबर पुकारा जाता है, तब बाड़े में से वही बच्चे निकलते हैं, जिनकी मां का नंबर पुकारा जाता है।
(साभार-अमर उजाला)
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जय श्रीराम..सर जी मै अनिल निकम महाराष्ट्र से हू..और मुझे महाराष्ट्र के सातारा विभाग कि देशी नसल जो खिल्लार नसल है उसका संगोपन करना है..तो मुझे राष्ट्रीय गोकुळ मिशन कि माध्यम से कुछ मदत मिल सकती है क्या.? अंतर मिल सकती है तो कैसे ?
Very good