नवीन अग्रवाल,
लखनऊ/नोएडा, 5 अक्टबर 2017,
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ की सरकार बने हुए 6 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन विकास के तमाम मोर्चों पर ये सरकार असफल साबित हो रही है। प्रदेश में डेयरी विकास और पशुपालन की ही बता करें तो पिछले 6 महीने से राज्य में डेयरी विकास की गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं। गो माता का संरक्षण, दुग्ध विकास और गाय के दूध का उत्पादन बढ़ाने का ढोल पीटने वाली सरकार का प्रदेश के डेयरी विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं है। एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया, जाहिर किसानों की आय दोगुनी करने में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन की अहम भूमिका साबित होगी। लेकिन जिस ढर्रे पर यूपी की योगी सरकार चल रही है उससे लगता है कि प्रदेश के किसानों की चिंता किसी को नहीं है।
मार्च में शपथ लेने के बाद योगी सरकार ने प्रदेश में डेयरी विकास और दुग्ध उत्पादन में अहम भूमिका निभाने वाली अखिलेश सरकार की कामधेनु डेयरी योजना को अप्रैल के प्रथम सप्ताह में बंद कर दिया और इसकी जगह छोटे स्तर पर पशुपालन को बढ़ावा देने वाली गोपालक योजना का ऐलान किया गया। लेकिन तब से आज तक गोपालक योजना सिर्फ एक ऐलान बनकर रह गई है, हर महीने खबर आती है कि अब ये योजना शुरू हो जाएगी लेकिन होता कुछ नहीं है। प्रदेश में एक बड़ी आबादी पशुपालन और दुग्ध उत्पादन पर निर्भर है ऐसे में 6 महीने से सरकार की तरफ से डेयरी विकास की कोई योजना नहीं होना डेयरी खोलने के इच्छुक लोगों के लिए बड़ी परेशानी पैदा करने वाला है।
हालांकि प्रदेश के पशुपालन मंत्री एस पी सिंह बघेल लगातार कहते आए हैं कि कामधेनु योजना प्रदेश में डेयरी विकास और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के सहायक सिद्ध नहीं हुई इसीलिए उसे बंद कर गोपालक योजना लाई जा रही है, जिसमें 6 पशुओं का पालन किया जाएगा और सरकार की तरफ से ब्याज रहित लोन दिया जाएगा। बुधवार को फर्रुखाबाद में श्री बघेल ने कहा कि कामधेनु, मिनी कामधेनु और माइक्रो डेरी योजनाएं प्रदेश में कारगर नहीं हो सकी हैं। उन्होंने बताया कि सीमित पूंजी वाली योजना प्रदेश सरकार की ओर से जल्द शुरू की जाएगी। छह दुधारू पशुओं वाली इस डेयरी योजना में लाभार्थियों का चयन लाटरी के माध्यम से किया जाएगा। उन्होंने बताया कि नई शुरू होने वाली डेयरी योजना में चार लाख रुपए बगैर ब्याज के पांच साल में लाभार्थी को अदा करने होंगे। इस राशि में छह दुधारू पशुओं को खरीदना होगा, इसमें गाय अथवा भैंस हो सकती हैं। मुख्यालय पर इसके लिए बकायदा समिति बनाई जाएगी। समिति की निगरानी में ही लाभार्थियों का चयन होगा।
लेकिन सवाल ये उठता है कि प्रदेश में डेयरी के विकास और लोगों के रोजगार के लिए यदि पशुपालन मंत्री एसपी सिंह बघेल इतने गंभीर हैं तो इतने महीनों से उनके विभाग ने इस डेयरी योजना की शुरुआत क्यों नहीं की। जबकि अप्रैल के महीने में ही इस गोपालक योजना का ऐलान किया गया है। इस संबंध में ‘डेयरी टुडे’ से बातचीत में उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. चरन सिंह यादव ने बताया कि उनके विभाग की तरफ से छोटे स्तर की डेयरी योजना के लिए ड्राफ्ट तैयार किया जा चुका है लेकिन इसे अभी कैबिनेट से मंजूरी मिलनी है। जैसे ही इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल जाएगी प्रदेशभर में इस योजना को लागू कर दिया जाएगा। उन्होंने ये भी बताया की प्रदेश के तमाम इलाकों से लोग डेयरी खोलने को लेकर लगातार पशुपालन विभाग से संपर्क कर रहे हैं लेकिन पिछले 6 महीने से राज्य में इस तरह की कोई योजना नहीं चल रही है। डॉ. चरन सिंह यादव ये भी कहा कि कामधेनु और मिनी कामधेनु योजना के लाभार्थियों की सहायता और इस योजना के तहत खुली डेयरियों को राहत पहुंचाने को लेकर कुछ संशोधन किये गए हैं लेकिन इन्हें भी कैबिनेट से मंजूरी मिलनी बाकी है। उन्होंने कहा कि पशुपालन विभाग लगातार दुग्ध उत्पादन और पशुपालन को बढ़ाने के काम में लगा हुआ है।
पशुपालन विभाग के दावों पर कामधेनु डेयरी फार्मस एसोसिएसन के अध्यक्ष नवनीत महेश्वरी को भरोसा नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में डेयरी व्यवसाय और दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने को लेकर बीजेपी सरकार गंभीर नहीं दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि सरकारें सिर्फ अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए लोकलुभावन योजनाएं शुरू करती हैं लेकिन वास्तव में कुछ नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि पूर्व की सपा सरकार ने कामधेनु योजना शुरू की थी, पशुपालकों को कई सपने दिखाए थे लेकिन प्रदेश में दूध खरीद का ढांचा ही तैयार नहीं हो सका। मजबूरन डेयरी संचालकों को 18 से 20 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से दूध बेचना पड़ा और डेयरी चलाने वाले घाटे में चले गए। श्री महेश्वरी के मुताबिक अभी की बीजेपी सरकार भी ऐसा ही कर रही है, जब तक प्रदेश में दूध खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं होगा दुग्ध उत्पादक शोषण का शिकार होते रहेंगे।
लेकिन पूरे प्रकरण में एक सच्चाई यह है कि गोपालन और पशुपालन को बढ़ावा देने का दंभ भरने वाली बीजेपी सरकार के शासन में 6 महीने से डेयरी और पशुपालन की गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं। इसमें सबसे ज्यादा मार उन लोगों को पड़ रही है जो पांच से दस पशुओं के साथ कम पूंजी लगाकर डेयरी खोलना चाहते हैं। क्योंकि पिछली सरकार में इन लोगों को डेयरी योजना का लाभ नहीं मिला, वजह कामधेनु योजना में कम से कम 25 पशु पालने की शर्त थी और इसकी लागत भी ज्यादा थी। और इस सरकार के दौरान गोपालक योजना लांच तो की गई लेकिन यह सिर्फ ऐलान बन कर रह गई है। बड़ा सवाल ये है कि ऐसे में उत्तर प्रदेश कब तक देश में दुग्ध उत्पादन में नंबर एक होने का ताज बचाए रख पाएगा।
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