GST ने उत्तर प्रदेश में देसी घी इंडस्ट्री की कमर तोड़ी !

BY नवीन अग्रवाल,
नोएडा, 27 जुलाई 2017,

केंद्र सरकार ने डेयरी उत्पादों जैसे दूध, दही, छाछ, पनीर, छैना को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है हालांकि पैक्ड पनीर, छैना और स्किम्ड मिल्क पाउडर पर पांच फीसदी जीएसटी लगाया गया है। लेकिन सरकार ने देसी घी और बटर पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया है। डेयरी बिजनेस में देसी घी की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है। पहले इसमें सिर्फ 4 फीसदी वैट लगता था लेकिन अब 12 फीसदी जीएसटी लग रहा है। सीधे तौर पर समझा जाए तो ब्रांडेड देसी घी 12 फीसदी महंगा हो गया है।

यूपी में देसी घी की इंडस्ट्री बेहाल

उत्तर प्रदेश दुग्ध उत्पादन में नबंर एक राज्य है वहीं देसी घी के उत्पादन में यूपी टॉप पर है। आपको बता दें कि पूरे देश में अभी केंद्र सरकार ने देसी घी पर जीएसटी के तहत ईवेबिल की जांच पर दिसंबर तक छूट दी है। ईवेबिल वो कागज होता है जिसे पांच हजार से ज्यादा के सामान की बिक्री पर विक्रेता की तरफ से खरीददार को जारी किया जाता है। जीएसटी लागू होने के बाद व्यापारियों की सहूलियत और अफसरों की रोकटोक से बचने के लिए केंद्र सरकार की ओर से पूरे देश में ईवेबिल पर दिसंबर तक छूट दी गई है। लेकिन यूपी में देसी घी के ट्रेड पर इसे 26 जुलाई से ही लागू कर दिया गया है। यानी यूपी में अब जीएसटी विभाग के अफसर और निरीक्षक 26 जुलाई के बाद से ही इसके ट्रेड पर निगरानी रख सकेंगे। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि यूपी में इंस्पेक्टर राज की वापसी हो गई है।

2.5% मंडी टैक्स बना कोड़ में खाज

उत्तर प्रदेश इकलौता ऐसा राज्य है जहां देसी घी के व्यापारियों को 2.5 फीसदी मंडी टैक्स भी देना पड़ता है। मंडी टैक्स आज के दौर में बेमानी हो गया है लेकिन यूपी में ये लागू है। दरअसल मंडी टैक्स उन वस्तुओं पर लगता है जिनके विपणन में राज्य के किसी भी जिले की मंडी समिति के तहत बनाए गए बाजारों का इस्तेमाल किया जाता है। या यह कहें कि मंडी समिति द्वारा व्यापारियों को दी जाने वाली सुविधाओं का इस्तेमाल होता है। दशकों पहले यूपी में ऐसा होता था जब घी की मंडिया होती थीं और मंडी समिति के जरिए ही देसी घी का व्यापार होता है। लेकिन अब देसी घी की पूरी इंडस्ट्री है और ब्रांडेड देसी घी के व्यापार में मंडियों की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन यूपी की लालफीताशाही को इससे कोई मतलब नहीं। आज भी यूपी में देसी घी के कारोबार पर मंडी टैक्स वसूला जा रहा है। और इससे सीधे तौर पर घी की कीमत 2.5 फीसदी बढ रही है। और नतीजतन दूसरे राज्यों के मुकाबले यूपी में देसी घी महंगा बिक रहा है।

हालांकि राज्य के घी कारोबारियों ने इसके लिए कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है और सरकार को भी ज्ञापन दिया है लेकिन अभी तक नतीजा कुछ भी नहीं है। जाहिर है कि 2.5 फीसदी का एक ऐसा मंडी टैक्स जिसका आज के दौर में कोई मतलब नहीं है यूपी के देसी घी कारोबारियों पर भारी पड रहा है। व्यापारियों का कहना है कि सरकार ने वादा किया था जीएसटी लगाने के बाद मंडी टैक्स खत्म कर दिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। यूपी में देसी घी कारोबारियों पर टैक्स की दोहरी मार पड़ रही है। जीएसटी और मंडी टैक्स को यदि जोड़ दें तो 14.5 फीसदी टैक्स यूपी में लग रहा है। आपको बता दें कि यूपी के अलावा सिर्फ राजस्थान ही एक ऐसा राज्य है जहां देसी घी के कारोबारियों से 1.6 फीसदी मंडी टैक्स वसूला जाता है।

देसी घी के गुणवत्ता मानकों की मॉनीटरिंग नहीं

हजारों करोड़ की इंडस्ट्री होने के बाद भी आज तक देसी घी बनाने और बेचने के मानकों की निगरानी पर सरकार का ध्यान नहीं है। वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट और डेयरी उद्योग के जानकार अश्विनी कुमार के मुताबिक 32 आरएम का देसी घी सबसे शुद्ध माना जाता है जबकि 28 आरएम का देसी घी निचले दर्जे का होता है। आम उपभोक्ताओं को इसके बारे में कुछ पता नहीं है लेकिन देसी घी के कारोबारी इसे बाखूबी समझते हैं। जो कंपनियां 32 आरएम का देसी घी बनाती और बेचती हैं उनकी लागत ज्यादा आती है क्योंकि वो इसमें किसी भी तरह की मिलावट नहीं करती हैं। जबकि 28 आरएम का देसी घी बनाने वाली कंपनियां पॉम ऑयल और दूसरे वनस्पति घी की मिलावट करती हैं, इससे उनकी लागत काफी कम होती है। लेकिन चाहे 32 आरएम का देसी घी हो या 28 आरएम का दोनों पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया गया है।

आप खुद ही समझ सकते हैं कि जो ईमानदारी से उपभोक्ताओं को सौ फीसदी शुद्ध देसी घी बेच रहा है वो भी 12 फीसदी जीएटी दे रहा है और जो मिलावटी देसी घी बना रहा है वो भी 12 फीसदी जीएसटी दे रहा है और सस्ते में भी बेच रहा है। मतलब साफ है कि जीएसटी ने ईमानदार देसी घी कारोबारियों के मुनाफे को प्रभावित किया है। अश्विनी कुमार का कहना है कि इसे दूसरे अर्थों में समझें तो सरकार ईमानदार देसी घी निर्माताओं को भी मिलावटखोर बनने पर मजबूर कर रही है। क्यों कि बाजार में टिकना है तो रेट कंपटीटिव रखने होंगे और रेट कम करने के लिए गुणवत्ता से समझौता करना होगा। यानी ईमानदार देसी घी निर्माताओं के सामने दो ही रास्ते बचे हैं या तो मिलावटखोर बन जाएं या फिर अपना कारोबार ही समेट लें। कुल मिलाकर देखें तो जीएसटी लागू होने के बाद से यूपी में देसी घी के कारोबारियों की कमर टूट गई और अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब देसी घी के कारोबारी अपनी फैक्ट्रियां यूपी से शिफ्ट कर दूसरे राज्यों में लगाने पर विवश होंगे।

जल्द होगा बड़ा खुलासा-

कहीं गाय के देसी घी के नाम पर आप ठगे तो नहीं जा रहे, देसी घी कैसे होता है पीला, जल्द करेंगे देसी घी इंडस्ट्री में चल रहे पूरे गोरखधंधे का खुलासा और बताएंगे कौन है वो जो गाय के घी के नाम पर बेच रहा है जहर…..डेयरी उद्योग की पल-पल की खबर के लिए पढ़ते रहिए www.dairytoday.in

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    • शुक्रिया अनिल जी खबर को पसंद करने के लिए, हमारी कोशिश इसी तरह डेयरी उद्योग के हर पहलू पर विस्तार से चर्चा करने की है, आपकी हौसलाफजाई से हम लोगों की हिम्मत बढती है, आप नियमति http://www.dairytoday.in को पढते रहे और कोई सुझाव हो तो editor@indiatoday.in पर email करें, धन्यवाद

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