अहमदाबाद: बनासकांठा के बाबूजी के पास दो एकड़ ही जमीन है. पहले खेती पर पलते थे तब गुजारा मुश्किल था, लेकिन पिछले दस सालों में उन्होंने खेती लगभग बंद करके पशुपालन शुरू किया. आज उनके पास करीब 19 गायें हैं. अब खेतों में भी सिर्फ गाय और भैंसों के लिए चारा ही उगाते हैं. आखिर पशुपालन से दूध की आमदनी ही इतनी है. उन्हें हर महीने करीब दो लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. रोज 250 लीटर दूध डेयरी में जमा करवाते हैं. खर्च निकालकर भी बेहद अच्छी कमाई हो जाती है. शहरों में नौकरी करते किसी एक्ज़क्यूटिव जितनी कमाई की वजह सिर्फ पशुपालकों के लिए दूधारु गायें होना ही नहीं है लेकिन सहकारी तौर पर डेयरी की पूरी व्यवस्था है.
यहां हर गांव में मिल्क कलेक्शन सेंटर है, जिससे पशुपालकों को गांव से बाहर दूध बेचने नहीं जाना पड़ता. सिर्फ गांव के सेंटर में जाकर दूध जमा करवाना होता है. यहां अत्याधुनिक तरीके से दूध संभालकर रखा जाता है, दूध को डेयरी तक पहुंचाने की सुचारु व्यवस्था बनास डेयरी खुद करती है. पशुपालकों को वक्त पर पैसा मिल जाता है और वो भी कैशलेस तरीके से सीधा उनके अपने बैंक खातों में. डेयरी के सेंटर में ही एटीएम भी होता है जिससे कभी भी पैसा निकाला जा सकता है.
कुछ बरसों पहले बनासकांठा गुजरात का सबसे पिछड़ा जिला था. पानी कम था इसलिए जिंदगी आसान नहीं थी. लेकिन सहकारी तौर पर डेयरी का व्यवसाय गुजरात में ऐसा अपनाया गया कि ये सबसे पिछड़ा जिला आज सिर्फ देश का ही नहीं लेकिन पूरे एशिया का सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादित करने वाला जिला बन गया है. यहां की बनास डेयरी रोज करीब 50 लाख लीटर दूध इकट्ठा करती है, और उसमें से रोजमर्रा के दूध के अलावा इस तरह बटर, आइसक्रीम और अन्य उत्पाद बनाकर वैल्यू एडिशन करके किसानों के लिए मुनाफा जमा करती है. वजह पशुपालन से जुड़ी हर सुविधा पशुपालकों को मुफ्त मुहैया करवाना है.
बनास डेयरी के अध्यक्ष शंकर चौधरी कहेते हैं कि सिर्फ दूध जमाकर उसे बेचना ही सहकारिता नहीं है. उन्होंने पशुओं के बीमार होने पर मुफ्त में पश चिकित्सक की सुविधा जुटाई है. चारे की ऐसी फैक्टरियां बनाई हैं जहां जो वैज्ञानिक तरीके से चारा बनता है वो खाने से पशु दूध भी ज्यादा देते हैं.
एशिया में नाम कमाने के बाद अब बनास डेयरी पूरे देश में ये दूध क्रांति की तैयारी में है. सबसे पहले गुजरात के बाहर उत्तर प्रदेश में अपना सहकारी मॉडल आजमाया जा रहा है. बनास डेयरी उत्तर प्रदेश के करीब 10 से ज्यादा जिलों में अपने मॉडल से दूध उत्पादन और अन्य उत्पाद बनाएगी. उत्तर प्रदेश गुजरात से बहुत बड़ा है, दूध भी गुजरात से चार गुना होता है लेकिन संग्रह और मार्केटिंग की व्यवस्था न होने से पशुपालक परेशान हैं, उन्हें अपने दूध के सही दाम नहीं मिलते. गुजरात में आज प्रति लीटर पशुपालक को करीब 42 से ज्यादा रुपए दिए जाते हैं जो कि देश में सबसे बेहतर है.
शंकर चौधरी के मुताबिक फिलहाल बनास डेयरी उत्तर प्रदेश में रोजाना करीब तीन लाख लीटर दूध इकट्ठा कर रही है और 2022 तक 20 लाख लीटर तक का लक्ष्य है. लखनऊ और कानपुर में इसके लिए फैक्टरियां भी बना ली गईं हैं. जल्द ही वाराणसी में भी फैक्टरी तैयार हो जाएगी. सब कुछ गुजरात के सहकारी मॉडल से ही होगा जहां डेयरी का मालिक कोई नहीं है, खुद पशुपालक ही हैं. जो भी मुनाफा होता है वो भी पशुपालकों को साल के अन्त में बोनस के तौर पर मिल जाता है. उत्तर प्रदेश अगर गुजरात को मॉडल सही तौर पर अपना पाया तो गुजरात से आगे निकलने की भी गुंजाईश है. किसानों को लग रहा है अगर दूध के साथ साथ कृषि में भी अगर सहकारी मॉडल अपनाया जाय तो किसानों की बदहाली भी कुछ कम हो सकने की गुंजाइश है.
साभार-एनडीटीवी खबर
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Very nice.