डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली,
अगर आप पशुपालन करते हैं, तो पशुओं के खानपान पर विशेष ध्यान जरूर दें, क्योंकि पशुओं को अगर सही चारा नहीं खिलाया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। अक्सर देखा जाता है कि डेयरी किसान पशुओं को बिना सोचे समझे सड़ा-गला यहां तक कि फफूंदी लगा हुआ चारा व खल बिनौला डाल देते हैं। लेकिन यह फफूंदी लगा चारा पशुओं के साथ साथ दूध पीने वाले लोगों के शरीर पर भी असर डालता है। फफूंदी लगे हुए इस चारे में एफलाटॉक्सिन बी वन नामक एक विषैला पदार्थ पैदा होता है। जिसे खाने के बाद पशु एफलाटॉक्सिन M1 नामक एक विषैला पदार्थ पैदा करते हैं। यह टॉक्सिन दूध के जरिए मानव शरीर में चला जाता है, जिससे कैंसर जैसे खतरनाक रोग होने का खतरा रहता है। सबसे मुश्किल बात यह है कि दूध में एफलाटॉक्सिन M1 की पहचान करना इतना आसान काम नहीं है, क्योंकि यह बहुत कम मात्रा में पाया जाता है।
पशुओं से अधिकतम दूध उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान पशुओं को खल, बिनौले, फीड तथा विभिन्न प्रकार के अनाज के दाने के रूप में पशुओं को खिलाते हैं तथा भविष्य के लिए इसका भंडारण भी करते हैं। अगर इस प्रकार के आहार का सावधानीपूर्वक भंडारण न किया जाए तो उसमें फफूंदी पैदा हो जाती है तथा यह फंफूदी एफलाटॉक्सिन B1 पैदा करती है। मुख्यरूप से फफूंदी नमी तथा गर्म वातवरण में अधिक पैदा होती है। इस फफूंदी लगे हुए आहार को खाने से एफलाटॉक्सिन B1 पशुओं के शरीर में चला जाता है और उनके लीवर में एफलाटॉक्सिन M1 में परिवर्तित हो जाता है तथा दुधारू पशुओं के दूध के जरिए मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है। हालांकि एफलाटॉक्सिन M1 से B1 कम घातक होता है, परंतु इससे कैंसर होने का खतरा रहता है।
6% एफलाटॉक्सिन B1 M1 में परिवर्तित हो जाता है। एक बार पशु इस एफलाटोक्सिन B1 वाले चारे को खा ले तो लगभग 72 घंटे तक इस टॉक्सिन की दूध में आने की संभावना रहती है। इसकी जांच के लिए अत्याधुनिक उपकरण तथा प्रशिक्षित व्यक्ति की जरूरत होती है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने इसके मानक तय किए हैं, जोकि 0.5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर दूध में है।
दूध को गर्म करने के बाद भी यह टॉक्सिन नष्ट नहीं होता है। जिसे पीने से मनुष्य को कैंसर सहित कई प्रकार के रोग होने का खतरा बना रहता है। अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्था, फ्रांस ने भी एफलाटॉक्सिन बी वन टॉक्सिन को ग्रुप 2 बी श्रेणी में शामिल किया है। इस श्रेणी में उन पदार्थो को ही शामिल किया गया है, जिनसे कैंसर पैदा करने की संभावना अधिक है।
(साभार)
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