The Union Minister for Agriculture and Farmers Welfare, Shri Radha Mohan Singh addressing at the inauguration of the 19th Organic World Congress 2017, at Greater Noida, Uttar Pradesh on November 09, 2017. The Chief Minister of Sikkim, Shri Pawan Kumar Chamling, the Agriculture Minister of Uttar Pradesh, Shri Surya Pratap Shahi and other dignitaries are also seen.
डेयरी टुडे नेटवर्क
नई दिल्ली, 9 नवंबर 2017,
भारत परंपरागत रूप से दुनिया का सबसे बड़ा जैविक कृषि करने वाला देश है, यहां तक कि वर्तमान में भी बहुत बड़े भू-भाग में परंपरागत ज्ञान के आधार पर जैविक खेती की जाती है। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने यह बातें गुरुवार को इंडिया एक्सपो सेंटर, ग्रेटर नोएडा में जैविक कृषि विश्व कुम्भ 2017 का उद्घाटन करते हुए कही। इस आयोजन में 110 देशों के 1400 प्रतिनिधि और 2000 भारतीय प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ आर्गेनिक फार्मिग मूवमेंट्स (आईफोम) और ओएफआई ने मिलकर इसका आयोजन किया है।
राधा मोहन सिंह ने कहा, “देश में वर्तमान में 22.5 लाख हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती हो रही है जिसमें परंपरागत कृषि विकास योजना से 3,60,400 किसानों को लाभ पहुंचा है। इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों के क्षेत्रों में जैविक कृषि के अंतर्गत 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य है। अब तक 45,863 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक योग्य क्षेत्र में परिवर्तित किया जा चुका है और 2406 फार्मर इटेंरेस्ट ग्रुप (एफआईजी) का गठन कर लिया गया है तथा 2500 एफआईजी लक्ष्य के मुकाबले 44,064 किसानों को योजना से जोड़ा जा चुका है।”
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में परंपरागत कृषि विकास योजना वर्ष 2015-16 से प्रारम्भ हुई और 28,750 एकड़ में 28,750 किसानों को लाभ पहुंचा है। उन्होंने कहा कि दुनिया के कुछ वैज्ञानिक इसे ‘डिफाल्ट ऑर्गेनिक’ कहते हैं, लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि जो किसान परंपरागत रूप से जैविक खेती कर रहे हैं, यह उनकी मजबूरी नहीं, उनकी पसंद है। बेहद गहरी समझ के साथ वो इस रास्ते पर सदियों से चल रहे हैं। आज, वो रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते तो यह उनकी अज्ञानता नहीं है, बल्कि उन्होंने बहुत सोच-समझ कर ऐसा न करने का फैसला किया है। इसलिए उनकी इस खेती की विधि को ‘बाई डिफाल्ट’ नहीं कहा जा सकता।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा, “रसायनों के दुष्प्रभाव से विश्व में जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न हो गया है, और मानवों पर भी गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए हैं। धरती मां के स्वास्थ्य, सतत उत्पादन, आमजन को सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्यान के लिए जैविक कृषि आज राष्ट्रीय एवं वैश्विक आवश्यकता है।”
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