विदेशों से Dairy Products के इंपोर्ट के विरोध में उतरे किसान संघ और स्वदेशी जागरण मंच

डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 4 अक्टूबर 2019,

आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों से सस्ते Dairy Products के आयात की कोशिशों का विरोध बढ़ता जा रहा है। डेयरी कंपनियों, एनबीबीडी, पंजाब सरकार के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच और किसान शक्ति संघ ने भी मोदी सरकार के इस कदम का विरोध किया है। दरअसल मोदी सरकार देश में सस्ते दूध व दूध के उत्पादों का आयात करने के लिए क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) में डेयरी सेक्टर को भी शामिल करने की योजना बना रही है।

अश्विनी महाजन, सर-समन्वयक, स्वदेशी जागरण मंच (फाइल-फोटो)

मनी भास्कर की खबर के अनुसार स्वदेशी जागरण मंच के सर-समन्वयक अश्वनी महाजन का कहना है कि मोदी सरकार के इस कदम से देश के 5 करोड़ से ज्यादा डेयरी किसानों के रोजगार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। आजादी के बाद से यह सरकार के द्वारा लिया गया सबसे आत्मघाती कदम साबित होगा। 10-12 अक्टूबर को बैंकॉक में आरसीईपी बैठक होने जा रही है, जिसमें डेयरी प्रोडक्ट्स के इंपोर्ट पर भी फैसला लिया जाएगा।

क्या है क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP)

आरएसएस से जुड़े किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि भारत समेत 16 देश क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप- आरसीईपी) नाम से एक बड़ा आर्थिक समूह बनाया है। यह देश आपस में एक मुक्त व्यापार समझौता (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट- एफटीए) लागू करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इन देशों में दस आसियान देश- फिलीपींस, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और म्यांमार; तथा छह हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के देश- भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।

न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया बना रहे हैं दबाव

चौधरी पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक, भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। लगभग 18 करोड़ टन दूध उत्पादन के साथ हम विश्व के 20 फीसदी दूध का उत्पादन करते हैं और पिछले दो दशकों से पहले स्थान पर बने हुए हैं। लेकिन न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया भारत में दूध बेचने के लिए लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड दुग्ध उत्पादों के बहुत बड़े निर्यातक देश हैं। इन दोनों देशों की संयुक्त रूप से विभिन्न दुग्ध उत्पादों जैसे मिल्क पाउडर, मक्खन, चीज़ आदि में विश्व बाज़ार में 20 फीसदी से लेकर 70 फीसदी तक की हिस्सेदारी है। भारत में इन दुग्ध उत्पादों का संगठित क्षेत्र का वार्षिक बाज़ार लगभग 5 लाख टन का है जबकि न्यूजीलैंड अकेले ही इन उत्पादों का 25 लाख टन से अधिक मात्रा का वार्षिक निर्यात करता है।

स्वदेशी दूध उत्पादकों को होगा बड़ा नुकसान

पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि पिछले पांच सालों से दूध के दाम किसान स्तर पर बहुत कम चल रहे हैं और दुग्ध पशुपालक किसान की हालत पहले ही खराब है। यदि आरसीईपी समझौते में दुग्ध उत्पादों के आयात को उन्मुक्त कर दिया गया तो किसान स्तर पर दूध के दाम 40 फीसदी तक गिर जाने की आशंका है। इतने कम दामों पर दुग्ध उत्पादन का खर्चा निकलना भी असंभव होगा। डेयरी किसान पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और किसानों की आमदनी पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पहले से ही संकट से जूझ रही कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था और गहरे संकट में फंस जाएगी और देश दुग्ध उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर हो जाएगा। उन्होंने बताया कि हमारे देश में लगभग 10 करोड़ डेयरी किसान हैं यानी लगभग 50 करोड़ लोग दुग्ध उत्पादन से होने वाली आमदनी पर निर्भर हैं। दुग्ध व्यापार और दुग्ध उत्पादों से जुड़े संगठित व असंगठित क्षेत्र के अन्य लोगों को जोड़ दें तो यह संख्या बहुत बड़ी हो जाती है। डेयरी उत्पादों के आयात से इतने लोगों के जीवनयापन पर संकट खड़ा हो जाएगा।

चीन ने भी झेला इसका दुष्परिणाम

उन्होंने बताया कि 2007 में जब चीन ने न्यूजीलैंड के साथ ऐसा ही मुक्त व्यापार समझौता किया था तो चीन को भी नुकसान हुआ। 2000-06 में चीन की दुग्ध उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर 22 फीसदी थी, लेकिन इस समझौते के बाद के 10 साल में चीन के दुग्ध उत्पादन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई। इसके विपरीत 2007 में चीन अपनी खपत का केवल 3 फीसदी दुग्ध उत्पादों का आयात करता था जो 2017 में बढ़कर 20 फीसदी से ज्यादा हो गया।

भारत में प्रतिवर्ष 7 लाख करोड़ रुपये मूल्य का दुग्ध उत्पादन

हमारे देश में लगभग 28 लाख करोड़ रुपए मूल्य का कृषि उत्पादन होता है। इसमें 25 फीसदी हिस्सा यानी लगभग 7 लाख करोड़ रुपए मूल्य का दूध का उत्पादन होता है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में हमने अपनी मांग 14.8 करोड़ टन से भी 1.5 करोड़ टन (16.3 करोड़ टन) दुग्ध उत्पादन किया था। 2032-33 में भी देश में 29 करोड़ टन की मांग के सापेक्ष 33 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन होने का अनुमान है। इसका अर्थ यह है कि भारत दूध के क्षेत्र में वर्तमान और भविष्य के लिहाज से आत्मनिर्भर ही नहीं है बल्कि दुग्ध उत्पादों को अन्य देशों के बाजारों में निर्यात करने की स्थिति में भी है।

निवेदन:– कृपया इस खबर को अपने दोस्तों और डेयरी बिजनेस, Dairy Farm व एग्रीकल्चर सेक्टर से जुड़े लोगों के साथ शेयर जरूर करें..साथ ही डेयरी और कृषि क्षेत्र की हर हलचल से अपडेट रहने के लिए हमारे फेसबुक पेज https://www.facebook.com/DAIRYTODAY/ पर लाइक अवश्य करें। हमें Twiter @DairyTodayIn पर Follow करें।

2218total visits.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय खबरें