डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 9 मई 2020,
कोविड-19 महामारी की वजह से दुनियाभर में हुए लॉकडाउन के वक्त जब अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में हजारों टन ताजा दूध फेंकने की मजबूरी बन गई है, ऐसे में भारत में विशाल कॉपरेटिव नेटवर्क उपभोक्ताओं के साथ-साथ लाखों डेयरी किसानों को भी संभाले हुए है। दुग्ध सहकारी समितियों जैसे मदर डेयरी, अमूल, नंदिनी, पराग, वेरका, मेधा, सुधा, सांची और कई अन्य ने किसानों से अतिरिक्त दूध खरीदा, वहीं देश के सैकड़ों मिल्क प्लांट अतिरिक्त दूध की आपूर्ति का उपयोग करने के लिए स्किम्ड मिल्क पाउडर बना रहे हैं।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के अध्यक्ष दिलीप रथ के मुताबिक 135 करोड़ लोगों की आबादी वाले भारत देश में, हमने हर घर में दूध की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की है और लॉकडाउन के दौरान हमने लाखों डेयरी किसानों के हितों की भी रक्षा की है। देशव्यापी लॉकडाउन ने लोगों की क्रय शक्ति को प्रभावित किया क्योंकि इस दौरान वाणिज्यिक संस्थान, बाजार और कारखाने बंद हो गए हैं। नतीजतन डेयरी वस्तुओं की खपत और बिक्री में एक बड़ी सेंध लग गई। लेकिन इन बाधाओं के बावजूद, भारत में सहकारी मॉडल ने दूध उत्पादकों की रक्षा की।
अमेरिका में, बाधित हुए आपूर्ति श्रृंखलाओं ने डेयरी किसानों को अपना दूध फेंकने के लिए मजबूर किया है। इसी तरह की स्थिति यूरोप के कुछ हिस्सों में भी देखी गई, जहां ताजा दूध बर्बाद करना पड़ रहा है। रथ ने कहा कि लेकिन हमने बिक्री में गिरावट के बावजूद आपूर्ति को हतोत्साहित नहीं किया। हमने किसानों से दूध खरीदना जारी रखा जिसके परिणामस्वरूप जो अतिरिक्त दूध मिला उसे हमने स्किम्ड मिल्क पाउडर के उत्पादन में इस्तेमाल किया। भारत ने लॉकडाउन के दौरान केवल डेढ़ महीने में स्किम्ड मिल्क पाउडर का उत्पादन दोगुना कर दिया। एनडीडीबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 15 मार्च को दूध पाउडर का स्टॉक 70,000 टन था, जो कि 30 अप्रैल तक बढ़कर 1.34 लाख टन हो गया, जो मार्च के स्टॉक से लगभग दोगुना था। लॉकडाउन के दौरान दूध पाउडर का दैनिक उत्पादन 1,500 टन हुआ।
देश में सभी दूध पाउडर संयंत्र अपनी क्षमता के 92 से 100 फीसदी पर कार्य कर रहे हैं। दिलीप रथ के अनुसार, स्किम्ड मिल्क पाउडर का बड़े पैमाने पर भंडारण बाद में निर्यात के लिए या फिर घरेलू खपत के लिए उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जैसा कि रेस्तरां, रिटेल स्टोर, स्ट्रीट वेंडर और आइसक्रीम पार्लर बंद थे, तो आइसक्रीम की बिक्री लगभग 50 फीसदी कम हो गई थी। अन्य डेयरी उत्पादों की बिक्री में भी गिरावट आई थी लेकिन अब बाजार धीरे-धीरे खुल रहा है (ग्रीन और आरेंज जोन में) जिससे लोगों ने पनीर, मक्खन और अन्य डेयरी उत्पाद खरीदने शुरू कर दिए हैं। भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। कोरोना महामारी के मद्देनजर 25 मार्च 2020 को किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से शुरुआत में बाधित परिवहन सेवाओं के कारण हमारे डेयरी उद्योग पर भी प्रभाव पड़ा था। हालांकि सहकारी समितियों की सक्रियता और बेहतरीन प्रबंधन से देश जल्द ही इस समस्या से उबर गया।
दिलीप रथ विश्व बैंक (World Bank) समर्थित राष्ट्रीय डेयरी योजना के मिशन डायरेक्टर भी हैं। उन्होंने कहा, ”शुरू में थोड़ी दिक्कतें आईं, लेकिन बाद में सप्लाई चेन दुरुस्त हो गई और 15 मार्च से 30 अप्रैल के बीच दूध की खरीद में महज 3.50 फीसदी कमी आई, लेकिन बिक्री 13.70 फीसदी घट गई। हालांकि, अप्रैल के दूसरे हफ्ते के बाद से हम देख रहे हैं कि देशभर में दूध की बिक्री 1.30 फीसदी बढ़ी है असल में दूध की खरीद और बिक्री दोनों में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।” जाहिर है कि भारत में डेयरी से जुड़े सहकारी संगठन रोजाना 508 लाख किलो दूध खरीदते हैं। NDDB की रिपोर्ट बताती है कि भारत के गावों में 1,90,500 सहकारी संगठन हैं, जो 245 दुग्ध संघों और 22 परिसंघों से जुड़े हैं। इस समय 169 लाख किसान गांवों के इन सहकारी संगठनों से जुड़े हैं।
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2 thoughts on “लॉकडाउन: हर घर में दूध की निर्बाध आपूर्ति में सहकारी समितियों की भूमिका रही महत्वपूर्ण”