BY नवीन अग्रवाल
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2017,
दीपावली तक शुद्ध दूध की उम्मीद करना बेमानी है ये लिखने में बड़ा अजीब लगता है लेकि सच्चाई भी यही है। देश में खाद्य सुरक्षा कानून इतना लचर है और खाद्य सुरक्षा विभाग के अफसर इतने नाकारा हैं कि लोगों को शुद्ध और मिलावटरहित खाद्य पदार्थ मिलना मुश्किल हो गया है। आजकल त्योहार का दौर चल रहा है, हर साल की तरह दीपावली से पहले मिलावटी दूध, मिठाई, खोया, मिलावटी बेसन, मैदा और ना जाने क्या-क्या सामान बाजार में छा जाता है। चूंकि त्योहार पर मांग अचानक बढ़ जाती है और बाजार समान से भरे पड़े होते हैं, मिलावटखोर इसी का फायदा उठाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये भी है कि हमारे देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने का कानून व्यवहारिक नहीं हैं।
दीपावली अभी करीब दस दिन दूर है लेकिन अभी से देशभर से मिलावटी दुध, खोया, मिठाई, पनीर और दूसले मिलावटी खाद्य पदार्थों की खबरें आने लगी है। भारत के संदर्भ में सबसे बड़ी बात ये है कि यहां खाद्य पदार्षों को उद्योग करीब 80 फीसदी असंगठित है और सिर्फ 20 फीसदी है संगठित है। संगठति उद्योग यानी पैक्ड खाद्य पदार्थों की गुुणवत्ता पर तो नजर रखी जा सकती है और उसके कुछ मानक भी हैं। लेकिन आसंगठित क्षेत्र में बिकने वाले खाद्य पदार्थों पर निगरानी रखने और उनकी गुणवत्ता जांचने की कोई कारगर प्रणाली आजतक विकसित नहीं हो पाई है। बस इसी का फायदा ये नकली और मिलावटी खाद्य पदार्थों के कारोबारी उठाते हैं।
बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने के लिए खाद्य सुरक्षा और औषध विभाग हर जिले में है, इस विभाग में बड़ी संख्या में अफसर और कर्मचारी तैनात हैं। लेकिन फिर भी मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इसके लिए खाद्य सुरक्षा विभाग दुहाई देता है कि उसके पास कर्मचारियों की कमी है, एक अनुमान के मुताबिक करीब पांच हजार खाद्य सुुरक्षा अफसरों की देश में कमी है। चलो ये बात मान भी ली जाए लेकिन बाकी जो तैनात हैं वो क्या कर रहे हैं। आप किसी भी जिले के आंकड़े उठा लीजिए, खाद्य सुरक्षा विभाग एक महीने में मुश्किल से 50 सैंपल एकत्र करता है। जबकि हर जिले खाने-पीने के सामान कि कई हजार दुकानें होती हैं। और उस पर भी तुर्रा यह कि सैंपल जो जांच के लिए भेजे जाते हैं उनकी जांच रिपोर्ट भी 6 महीने से पहले नहीं आती। और अगर सैंपल जांच में फेल भी जाए तो कार्रवाई होने तक वो दुकानदार या कारोबारी इतने महीनों तक मिलावटी सामान बेचता रहता है। मतलब उपभोक्ताओं के नसीब में मिलवाटी सामान ही लिखा है।
केंद्र हो या राज्य सरकारें सभी मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करती हैं लेकिन इसकी बुनियादी जरूरत जांच लैब की संख्या बढ़ाना, खाद्य सुरक्षा विभाग में नियुक्तियां करना, खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को जवाबदेह बनाना और खाद्य सुरक्षा से जुड़े कानून को कड़ा करने की है। इसके लिए कोई भी सरकार प्रयास नहीं करती। नतीजतन जब कहीं नकली या मिलावटी खाद्य सामग्री पकड़ी जाती है, मीडिया में खबर बनती है थोड़ा हो-हल्ला होता है और फिर अंदरखाने सेटिंग हो जाती है और नतीजा सिफर, मिलावटखोर पहले की तरह धड़ल्ले से धंधा करता रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी दूध और दूसरे खाद्य पदार्थो में मिलावट को लेकर चिंता जताई है। लेकिन उसके आदेश-निर्देशों का भी पालन नहीं कराया जा रहा है।
जब सरकार कुछ नहीं कर पा रही हो और सरकारी अफसर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हों तो अपनी जान की रक्षा करना खुद उपभोक्ताओं की जिम्मेदारी है। और ये सिर्फ जागरूकता से हो सकता है। आज जरूरत इसकी है कि सभी को मिलावटी और सिंथेटिक दूध की पहचान करना आना चाहिए और साथ ही दूसरे मिलावटी सामान की जांच करना भी आना चाहिए। यदि उपभोक्ता जागरूक होगा तो मिलावटखोरों पर लगाम लग सकती हैं।
– सिंथेटिक दूध में साबुन जैसी गंध आती है। जबकि असली दूध में इस तरह की गंध नहीं होती है।
– असली दूध का स्वाद हल्का मीठा होता है। जबकि नकली दूध के स्वाद में कड़वापन आ जाता है।
– दूध को एक काली सतह पर छोड़ें। अगर दूध के पीछे एक सफेद लकीर छूटे तो दूध असली है।
– असली दूध को उबालने पर इसका रंग नहीं बदलता। जबकि सिंथेटिक दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है।
– दूध को हाथों में लेकर रगड़ने पर डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट महसूस हो तो समझ जाएं कि दूध सिंथेटिक है।
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