डेयरी टुडे नेटवर्क,
शाहजहांपुर/गाजियाबाद(यूपी), 28 सितंबर 2017,
घर में बड़े बुजुर्ग हों या फिर डॉक्टर सभी कहते हैं कि दूध पीना सेहत के लिए फायदेमंद है। बात भी सही है, दूध का संपूर्ण आहार माना जाता है। पर कुछ मुनाफाखोरों ने हमारी सेहत में सेंधमारी शुरू कर दी है। अब दूध पीना फायदे का सौदा न होकर नुकसानदायक हो गया है। शाहजहांपुर जिले में बिक रहा दूध या तो मिलावटी है या मानकों के अनुरूप नहीं है। इस बात का खुलासा खाद्य सुरक्षा विभाग की एक रिपोर्ट ने किया है। जनवरी से अगस्त 2017 तक जिले भर में अलग-अलग स्थानों से लिए गए दूध के नमूनों की जांच रिपोर्ट इसकी पुष्टि करने के लिए काफी है। आठ महीने के दौरान खाद्य सुरक्षा विभाग ने जिले से दूध के कुल 54 नमूने जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे थे। इनमें 44 नमूनों की अब तक रिपोर्ट आ चुकी है। 44 में से 30 नमूने जांच में फेल हो गए हैं।
खाद्य और पेय पदार्थों की गुणवत्ता की निगरानी की जिम्मेदारी खाद्य सुरक्षा विभाग की होती है। मिलावट करने वालों को सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। इसके बावजूद मिलावट का धंधा करने वाले अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। मिलावटी दूध से बच्चे-बड़े सब बीमार हो रहे हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग समय-समय पर मिलावट करने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर नमूने जांच को प्रयोगशाला भेजता है। आठ महीने के दौरान सबसे ज्यादा दूध के 15 नमूने शहरी क्षेत्र से भेजे गए थे। इन 15 नमूनों में से 13 नमूने जांच में फेल हो गए हैं। कई नमूने तो ऐसे पाए गए हैं जो पीने योग्य ही नहीं था। कुल 54 में से अब तक 44 नमूनों की रिपोर्ट खाद्य सुरक्षा विभाग को मिल चुकी है। इसमें 30 नमूने फेल पाए गए हैं। इनमें मिलावटी के साथ सिंथेटिक दूध भी है। 10 नमूनों की रिपोर्ट मिलनी अभी बाकी है। नमूने फेल होने के मामले में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।
मिलावटी और सिंथेटिक दूध की शिकायतें सिर्फ एक जिले से नहीं आ रही हैं। पूर्वी यूपी से पश्चिमी यूपी तक तमाम जिलों में रोजाना मिलावटी और सिंथेटिक दूध की खबरें आती है। दरअसल दूध के कारोबार में इतने मिलावटखोर और मुनाफाखोर घुस गए हैं कि वो अपने फायदे के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते हैं। मिलावटी दूध के नमूूने लेने से लेकर उसकी जांच की प्रक्रिया इतनी सुस्त है कि मिलावटखोर पर जबतक शिकंजा कसता है वो लाखों लीटर मिलावटी दूध बेच चुका होता है। सैंपल लेने के बाद उसे लखनऊ की लैब में जांच के लिए भेजा जाता है, जांच रिपोर्ट आने में करीब आधा साल गुजर जाता है, ऐसे में यदि नमूना फेल हुआ तो उसके बीच में वहीं कारोबारी लाखों लीटर दूध बेच चुका होता है। और देखि एक जिले में रोजाना लाखों लीटर दूध की खपत होती है, कई हजार लोग इस कारोबार से जुड़े होते हैं लेकिन खाद्य सुरक्षा विभाग सिर्फ खानापूरी के लिए सैंपल भरते हैं और जांच के लिए भेजते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि खाद्य सुरक्षा विभाग की उगाही जब कम हो जाती है तो वो छापेमारी का नाटक करता है और सिर्फ दिखावे के लिए कुछ सैंपल भरता है और फिर सालभर के लिए चुप बैठ जाता है।
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