डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 7 मई 2020,
डेयरी सहकारी समितियां ग्रामीण क्षेत्रों के लाखों छोटे किसानों से दूध खरीदकर आपके घर तक पहुंचाती हैं. कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन में इनके सामने आप तक दूध पहुंचाने की बड़ी चुनौती है. इन्हें पार करते हुए आप तक रोजाना दूध का पैकेट पहुंचाया जा रहा है. लॉकडाउन की अवधि के दौरान दूध की मांग में कमी आने से निजी कंपनियों ने दूध खरीदने में कमी कर दी है जिससे दूध को संभालने में सहकारिता को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का मांग के मुकाबले अधिक मात्रा में खरीद के चलते सरकार को डेयरी सहकारी समितियों को अब सपोर्ट करने की जरूरत है, ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर किसी तरह का संकट न आए. दूध की सप्लाई चेन में लाखों लोग जुड़े हुए हैं और यह जल्दी खराब होने वाला प्रोडक्ट है.
2018-19 में 187.7 मिलियन टन उत्पादन कर भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में कहा गया है, “बिकने वाले दूध में से आधे से भी कम दूध सहकारी समितियों और निजी डेयरी कंपनियों और शेष असंगठित क्षेत्रों के होते हैं.” आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, सहकारी और निजी डेयरी दोनों कंपनियां देश में उत्पादित दूध का लगभग 22-24 प्रतिशत समान रूप से संभालती हैं. 2018-19 में, नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) के आंकड़ों के अनुसार कि सहकारी समितियों ने देश भर में स्थित 1.9 लाख डेयरी सहकारी समितियों से जुड़े 1.69 करोड़ डेयरी किसानों से प्रतिदिन 5 करोड़ किलोग्राम से अधिक दूध खरीदा है.
एनडीडीबी के अध्यक्ष दिलीप रथ का कहना है कि, “डेयरी सहकारी नेटवर्क का ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पहुंच है और हम इस नेटवर्क के माध्यम से हमारे ग्रामीण समुदायों में इस कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक उपायों के बारे में जागरूकता फैला रहे है.
जब सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की थी, तो गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (GCMMF) जो कि अमूल (AMUL) के नाम से जानी जाती है, या कर्नाटक सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ (KMF) और अन्य राज्य संघों और दुग्ध उत्पादक कंपनियों को उपभोक्ताओं को दूध की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के निर्देश दिए गए.
देश की सबसे बड़ी डेयरी सहकारी संस्था – जीसीएमएमएफ (अमूल), गुजरात के सभी 18,500 ग्राम समाजों (जहां लगभग 36 लाख किसान दूध डालते हैं) के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में खरीद केंद्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग और सफाई के नियमों का पालन किया जा रहा है.
जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी के अनुसार, ग्राम समाज इस बात को सुनिश्चित कर रहे हैं कि किसान दो मीटर की दूरी पर लाइन में खड़े हो और दूध संग्रह केंद्र में प्रवेश करने से पहले साबुन से हाथ धो रहे हैं . डेयरी ले जाने से पहले दूध ले जाने वाले सभी 5,000 टैंकरों और वैन को भी कीटाणुरहित किया जा रहा है .
एनडीडीबी का कहना है कि इन डेयरी संगठनों को लॉकडाउन से पैदा हुई कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इन सब में मुख्य चुनौती है भारी मात्रा में किसानों से दूध की खरीद करना. क्योंकि बाजार में मांग की कमी के चलते प्राइवेट कम्पनियां और असंगठित व्यापारी किसानों से कम या नहीं के बराबर दूध खरीद रहे हैं. इसका कारण है पहुंच की कमी, उपभोक्ता की मांग में कमी. दूध की खपत वाले बड़े सोर्स जैसे मिठाई की दुकानें, रेस्तरां, चाय स्टाल, स्कूल आदि बंद हैं. कई राज्य डेयरी संघ, जिनके छोटे ऑपरेशन होते हैं, वे वैसे दूध के भंडारण को लेकर को चिंतित हैं.
एनडीडीबी के अध्यक्ष रथ का कहना है कि “केंद्र और राज्य सरकारें स्थिति को सुधारने के लिए हर संभव उपाय कर रही हैं. लेकिन, अब तक, कई उत्पादक स्वामित्व वाली संस्थाओं को लिक्विडिटी की समस्याओं के अलावा ट्रांसपोर्ट की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. छोटे डेयरी किसानों, निजी विक्रेताओं व अन्य कमोडिटी प्लेयर्स द्वारा दूध खरीद में कमी के चलते हम अन्य दिनों के मुकाबले अपने डेयरी किसानों से 8 प्रतिशत से 10 प्रतिशत अधिक दूध प्राप्त कर रहे हैं. सीएमएमएफ के सोढ़ी ने कहा, हम रोजाना लगभग 2.6 करोड़ लीटर दूध खरीद रहे हैं.
केएमएफ के एक अधिकारी ने कहा कि दूसरी सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समितियां सामान्य से प्रतिदिन 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत अधिक दूध प्राप्त कर रही हैं और दूध को एसएमपी में बदलना एक चुनौतीपूर्ण काम है. केएमएफ राज्य के 24 लाख किसानों से रोजाना 84 लाख किलोग्राम दूध का उत्पादन करता है. लॉकडाउन के दौरान, विशेष रूप से कर्नाटक के सीमावर्ती जिले जैसे कोलार और बेलगाम में निजी प्लेयर्स ने डेयरी किसानों से दूध खरीद बंद कर दिया है.
बनासकांठा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन जिसे बनास डेयरी के नाम से भी जाना जाता है, जो जीसीएमएमएफ की दैनिक खरीद का एक चौथाई हिस्सा खरीदती है, अभी भी लगभग 66 लाख लीटर दूध की खरीद कर रही है. बनास डेयरी, जिसे भारत का दूध जिला भी कहा जाता है, वर्तमान में 59 लाख लीटर और उत्तर प्रदेश से 7 लाख लीटर की खरीद की जाती है. 2019-20 सत्र के दौरान औसतन, बनास डेयरी ने लगभग 60 लाख लीटर दूध की खरीद की.
बनास डेयरी के प्रबंध निदेशक कामराज आर चौधरी ने कहा,हालांकि धीरे-धीरे गर्मी बढ़ रही है लेकिन खरीद स्थिर है क्योंकि निजी क्षेत्र ने डेयरी किसानों से दूध खरीदना बंद कर दिया है.” अतिरिक्त दूध वर्तमान में स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) में परिवर्तित हो जाता है. बनास डेयरी दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हर दूसरे दिन दूध के लिए एक डेडिकेटेड ट्रेन के माध्यम से दूध की आपूर्ति करती है. हर ट्रेन में बनासकांठा से एनसीआर तक 7 लाख लीटर दूध जाता है.
आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आने के कारण सरकार ने डेयरी क्षेत्र में लॉकडाउन से छूट की अनुमति दी है जिससे खरीद के अलावा, किसानों को डेयरी फ़ीड और पशु चिकित्सा सेवाओं को निर्बाध रूप से प्रदान किया जा रहा है क्योंकि ये डेयरी सहकारी संचालन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
बनास डेयरी के चौधरी ने कहा कि मांग के मुकाबले अधिक दूध इकट्ठा करने के बावजूद किसानों को भुगतान की गई कीमतें कम नहीं हुई हैं. पशुपालन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि डेयरी सहकारी समितियां अक्सर अपने सदस्यों से अधिक दूध खरीदती हैं क्योंकि वे किसानों द्वारा लाए गए दूध की खरीद से इनकार या रोक नहीं सकते हैं.
(1) देश में उत्पादित दूध का लगभग 48 प्रतिशत स्व-उपभोग के लिए है.
(2) 1,90,516 सहकारी समितियों के 1.69 करोड़ सदस्य हैं दूध मुहैया कराते हैं .
(3) सहकारी समितियों द्वारा प्रतिदिन 5.07 करोड़ किलोग्राम दूध की खरीद और 3.54 करोड़ लीटर तरल दूध की बिक्री.
(4) COVID-19 फैलने के कारण, कई निजी और असंगठित क्षेत्रों ने दूध की खरीद को रोक दिया है या कम कर दिया है.
(5) रेस्तरां, मिठाई की दुकानों, चाय की दुकानों आदि को बंद करने के कारण दूध की मांग में कमी.
(6) सहकारिता सामान्य से 8 प्रतिशत से 10 प्रतिशत अधिक मात्रा में दूध खरीद रही है.
(7) किसानों द्वारा लाया गया पूरा दूध खरीदने वाली सहकारी समितियाँ.
(8) अत्यधिक दूध को स्किम्ड मिल्क पावर (एसएमपी) में बदल दिया गया, जिसे बाद में दूध में बदल दिया जाएगा.
(9) एसएमपी को निपटाने में सरकार को सहकारी समितियों की मदद करने की आवश्यकता .
डेयरी उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि मांग के मुकाबले अधिक खरीद की वजह से डेयरी सहकारी समितियों के पास एसएमपी ज्यादा इकट्ठा हो गया है. अतः सरकार को COVID-19 संकट टल जाने के बाद इन एसएमपी शेयरों के निपटान में इन डेयरी सहकारी समितियों का सपोर्ट करना होगा. हालांकि, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बावजूद लाखों उपभोक्ताओं तक दूध पहुंचाने में डेयरी सहकारी समितियों की भूमिका सराहनीय है. इससे यह साफ़ होता है की किसान संगठनों के आपूर्ति प्रबंधन श्रृंखला कितनी मजबूत है.
(साभार- न्यूज 18, इसके लेखक प्रो. हरेकृष्ण मिश्रा इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट गुजरात में वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के चेयर-प्रोफेसर हैं और संदीप दास सलाहकार हैं)
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