देश में दूध के रिकॉर्ड उत्पादन के बाद भी पशुपालक और ग्राहक दोनों हैं परेशान!

डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 7 सितबंर 2018,

दाम और खपत के लगातार घटने से देश भर में दूध किसान भारी संकट में हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्किम्ड मिल्क पाउडर की कीमतें घटने से निर्यात बैठा तो कंपनियों और कोऑपरेटिव के पास पाउडर का अंबार बढऩे से खरीद घटी. लेकिन हैरानी की बात कि देसी बाजार में उपभोक्ताओं को दूध महंगा ही मिल रहा.

पंजाब के लुधियाना से सटे कुलार में 45 वर्षीय हरप्रीत सिंह का फार्म है. हरप्रीत के घर के पिछवाड़े में दो भैंस और 11 गाय समेत 20 मवेशी हैं. अपने हेल्पर गगन के साथ गाय सोफिया को नहलाते हरप्रीत बता रहे हैं कि इस समय उन मवेशियों में चार ही दुधारू हैं. उनसे रोजाना 30 से 35 लीटर दूध निकलता है. बाकी कुछ गाभिन हैं और कुछ कम उम्र की हैं, जो एकाध साल में दूध देने लगेंगी.

लेकिन अगस्त के बीतते दिन हरप्रीत की परेशानी बढ़ा रहे हैं. रोजाना 30 लीटर दूध बेचने वे जिस प्राइवेट डेयरी के सेंटर पर जाते थे, उसने खपत घटने के कारण 31 अगस्त के बाद दूध लेने से मना कर दिया है.

पिछले साल की तुलना में करीब 20 फीसदी कम दाम पर दूध बेच रहे हरप्रीत को अब नए खरीदार के लिए दाम और घटाने को मजबूर होना पड़ेगा. दरअसल, बीते तीन वर्षों से सुस्त पड़े निर्यात के कारण देश में दो लाख टन से ज्यादा का स्किम्ड मिल्क पाउडर इकट्ठा हो गया.

इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक कई कंपनियों के पाउडर बनाने के प्लांट बंद कर दिए, जिससे रोजाना होने वाली दूध की खपत में भारी कमी आई है. पूरे देश में दूध किसानों की बिक्री के दाम पिछले साल की तुलना में औसतन 40 फीसदी तक गिर गए हैं. सरकार की ओर से राहत देने वाली स्कीमों (सब्सिडी, निर्यात पर इंसेंटिव) के फायदे भी किसानों को खास राहत नहीं दे पा रहे हैं.

हरप्रीत की तरह महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में किसान उचित दाम न मिल पाने से दिक्कत में हैं. प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. दलजीत सिंह कहते हैं, “दूध के दाम पिछले साल से औसत 40 फीसदी घट गए हैं. दूध किसानों की इससे ज्यादा बुरी हालत कभी नहीं देखी. पिछले साल पंजाब में जिस क्वालिटी (फैट और एसएनएफ) का गाय का दूध 32 रु. लीटर बिक रहा था, वह आज आधे पंजाब में 21 रु. लीटर बिक रहा.

कुछेक जिलों में जहां को-ऑपरेटिव अच्छी स्थिति में हैं वहां 25 रुपए लीटर का दाम है. दूध की लागत 26 से 27 रु. लीटर पड़ती है. ऐसे में डेयरी किसानों की लागत तक नहीं निकल रही, मुनाफे की तो बात ही दीगर है.” देशभर में दूध के दाम तय करने में को-ऑपरेटिव अहम भूमिका निभाते हैं. को-ऑपरेटिव की ओर से तय की गई कीमत ही दरअसल बाकियों के लिए आधार बनती हैं.

दूध के लिहाज से गर्मियां लीन सीजन होता है. दूध घट जाता है और अमूमन को-ऑपेरटिव दाम बढ़ा देते हैं लेकिन इस साल इसके उलट कई राज्यों में दाम घट गए. (देखें बॉक्स-कैसे तय होती है दूध की कीमत?)

दलजीत बताते हैं, “अगर सरकार देश में पड़े दूध पाउडर के स्टॉक को लेकर जल्द कोई बड़े कदम नहीं उठाती है तो जाड़ों में फ्लश सीजन (जब दूध का उत्पादन बढ़ जाता है) में हालात और भी बदतर हो जाएंगे. किसान डेयरी बंद करने पर मजबूर हो जाएंगे, जिसका असर अगले सीजन में दूध की कमी के रूप में देखने को मिलेगा.” हाल के दौर में कई युवा ग्रेजुएशन के बाद डेयरी व्यवसाय में उतरे. उन्होंने बैंक से बड़े लोन लेकर डेयरी शुरू किया, लेकिन मौजूदा हालात में उनकी बैंक की किस्त भी नहीं निकल रही और वे खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे. पंजाब में डेयरी को व्यवसाय के तौर पर अपनाने वाले बड़े किसानों की संख्या करीब 7,000 है. लेकिन दिलचस्प यह है कि उपभोक्ताओं को दूध के दाम कम होने का लाभ नहीं मिल रहा है, इसका गणित क्या है?

उपभोक्ता का दर्द

देश में मिल्क पाउडर का स्टॉक होने के कारण किसान और कंपनियां दिक्कत में हैं लेकिन फिर क्या वजह है कि आम उपभोक्ताओं के लिए अभी भी मिल्क प्रोडक्ट के दाम जस के तस हैं. कृषि व्यवसाय विशेषज्ञ विजय सरदाना कहते हैं, “कंपनियां स्टॉक में रखे मिल्क पाउडर को लिक्विड बनाकर इस्तेमाल कर रही हैं.

मिल्क पाउडर में हो रहे नुक्सान की भरपाई के कारण आम जनता को मिलने वाले किसी प्रोडक्ट की कीमतों में कमी नहीं आई है. सरदाना बताते हैं “संगठित क्षेत्र की कंपनियां दोहरी मार से परेशान हैं. पहला मिलावटी उत्पादों की वजह से बाजार में ब्रांडेड प्रोडक्ट की खपत कम होती है और दूसरा घी जैसे प्रोडक्ट पर जीएसटी लगने के कारण वे उपभोक्ताओं की पहुंच से दूर हो रहे हैं.”

नोएडा स्थित गोपालजी डेयरी के प्रबंध निदेशक राधेश्याम दीक्षित कहते हैं, “सरकार ने घी पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया है. यही कारण है कि बहुत सारा मिलावटी घी बाजार में आ गया है. सरकार को मिल्क प्रोडक्ट को टैक्स के दायरे से बाहर रखना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ब्रांडेड प्रोडक्ट पहुंच सकें.” मिलावटी उत्पाद ब्रांडेड की तुलना में बहुत सस्ते होते हैं. साथ ही पूरा असंगठित बाजार कर के दायरे से मुक्त होता है. इसके अलावा मिलावटी उत्पाद स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हानिकारक होते हैं.

पाउडर प्लांट पर ताले

किसानों का दर्द जानकर जब इंडिया टुडे ने प्राइवेट डेयरी और को-ऑपरेटिव से खपत घटने का कारण समझने की कोशिश की तो समस्या और बड़ी लगी. मंडी गोविंदगढ़ में चाणक्य डेयरी प्रोडक्ट नाम की एक फैक्ट्री है, जिसके प्रोडक्ट एचएफ सुपर ब्रांड से पंजाब, हिमाचल और हरियाणा के शहरों में बिकते हैं. कंपनी के प्रबंध निदेशक विनोद दत्त कहते हैं, “हम पीक सीजन में 3 लाख लीटर दूध रोजाना खरीदते थे.

लेकिन मार्केट में स्किम्ड मिल्क पाउडर का स्टॉक होने के कारण हमें पाउडर बनाने वाला प्लांट बंद करना पड़ा. फिलहाल लिक्विड मिल्क, दही और घी जैसे प्रोडक्ट के लिए डेढ़ लाख लीटर दूध की रोजाना खरीद काफी है.

फैक्ट्री में अभी इतना स्टॉक है कि अप्रैल तक प्लांट न भी चलाए तो काम चलता रहेगा.” प्लांट बंद होने का मतलब किसान की खरीद घटने तक ही सीमित नहीं रह गया. प्लांट पर काम करने वालों की नौकरी और फैक्ट्री पर कॉस्ट कटिंग की तलवार लटकती दिखी.

संकट क्यों

देश में मिल्क पाउडर के स्टॉक से न केवल किसान बल्कि पूरी डेयरी इंडस्ट्री ही दिक्कत में है. अमूल ब्रांड से प्रोडक्ट बनाने वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (जीसीएमएमएफ) बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखती है.

जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी कहते हैं, “अभी हमारे पास करीब 90 हजार टन मिल्क पाउडर का स्टॉक पड़ा है. वहीं पूरे देश में करीब 1.5 लाख टन स्टॉक होने का अनुमान है.” निजी क्षेत्र की कंपनियां इस स्टॉक के 2 लाख टन से भी ज्यादा होने की आशंका जताती हैं. सोढ़ी कहते हैं, “अगर बाजार से 50 हजार टन माल की भी खपत हो जाए तो बाजार में कीमतें सुधर जाएंगी.

वैसे अगले तीन से चार महीने लीन सीजन के हैं, जिसमें उत्पादन की तुलना में खपत ज्यादा होगी. इससे स्थिति में कुछ सुधार जरूर आएगा.” समझना यह भी जरूरी है कि 15 नवंबर के बाद क्रलश सीजन शुरू होने से पहले अगर बाजार में उपलब्ध स्टॉक नहीं खपाया गया तो यह संकट गहरा सकता है.

फ्लश सीजन के दौरान देश में हर साल 6 लाख टन मिल्क पाउडर बनता है. इसमें से 4.5 से 5 लाख टन की घरेलू खपत है और शेष 1 से 1.5 लाख टन का एक्सपोर्ट किया जाता है. पिछला स्टॉक खत्म होने से पहले अगर नया स्टॉक आ गया तो यह समस्या और गंभीर हो जाएगी.

संकट का कारण

अब यह साफ हो गया कि सारी समस्या की जड़ देश में पड़ा मिल्क पाउडर ही है. सवाल बड़ा था कि आखिर देश में इतना स्टॉक अचानक खड़ा कैसे हो गया, जिसने किसान और कंपनियों को दिक्कत में डाल दिया? इंटरनेशनल डेयरी कंसल्टेंट डॉ. आर.एस. खन्ना कहते हैं, “देश में मिल्क पाउडर का स्टॉक इकट्ठा होने की वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में दूध की कीमतें क्रैश हो जाना है. ग्लोबल मार्केट में मिल्क पाउडर का मौजूदा भाव 135 से 140 रुपए प्रति किलो है जबकि भारत में मिल्क पाउडर की लागत 180 से 190 रुपए प्रति किलो है.

लिहाजा, पिछले 3 साल से सुस्त पड़े एक्सपोर्ट से ही दरअसल मिल्क पाउडर का यह स्टॉक खड़ा हो गया.” अप्रैल 2013 में ग्लोबल मार्केट में दूध की कीमतें अपने सर्वोच्च स्तर 5,142 डॉलर प्रति टन पर थीं, जो जुलाई 2014 में औसत 3,516 डॉलर के स्तर पर आ गईं. 2015 से 2018 के दौरान यही कीमतें 1,700 से 2,000 डॉलर प्रति टन के आसपास रही हैं. ग्लोबल मार्केट के इसी क्रैश ने भारतीय डेयरी कंपनियों के मुनाफे पर चोट की है.

यहां नहीं असर

देश की सबसे बड़ी प्राइवेट डेयरी हटसन एग्रो प्रोडक्ट्स के चेयरमैन आर जी चंद्रमोगम कहते हैं, “देश में स्किम्ड मिल्क पाउडर का स्टॉक होने से उन कंपनियों पर ज्यादा असर पड़ा है जिनके बिजनेस में बड़ा हिस्सा पाउडर मिल्क का है. ऐसी कंपनियां जिनका बिजनेस दूध, दही, छाछ और घी जैसे उत्पादों पर टिका है उन पर असर कम है.” दरअसल, दूध में दरअसल तीन पदार्थ होते हैं. पहला फैट, दूसरा सॉलिड नॉट फैट (एसएनएफ) और तीसरा पानी.

कंपनियां लिक्विड मिल्क को प्रोसेस कर बंद पैकेट दूध और दही बनाकर बेच देती हैं. इसके बाद फैट वाले हिस्से से क्रीम, मक्खन और घी जैसे प्रोडक्ट बनते हैं. वहीं एसएनएफ में से पानी को सोख कर स्किम्ड मिल्क पाउडर में तब्दील कर दिया जाता है.

पाउडर में मार्जिन ज्यादा होता है. इसलिए कंपनियां फ्लश सीजन (जब दूध का उत्पादन ज्यादा होता है) में मिल्क पाउडर बना लेती हैं, जिसको लीन सीजन में इस्तेमाल के साथ एक्सपोर्ट भी करती हैं. दूध को लंबे समय तक पाउडर के ही रूप में रखा जा सकता है.

चंद्रमोगम बताते हैं, “हटसन का बड़ा बिजनेस दूध और दही से आता है. यही वजह है कि इस समय भी कंपनी तीस लाख लीटर दूध का प्रिक्योरमेंट रोजाना कर रही है, जो पिछले साल करीब 27.5 लाख लीटर था.” महाराष्ट्र गुजरात और उत्तर भारत के राज्यों में कंपनियों के बिजनेस में पाउडर का बड़ा हिस्सा है.

मिलावटी प्रोडक्ट का बाजार

दलजीत सिंह कहते हैं, “मिलावटी प्रोडक्ट ने 40 फीसदी बाजार पर कब्जा कर रखा है. हानिकारक केमिकल मिलाकर इतने सस्ते मिलावटी उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, जिनका मुकाबला नहीं किया जा सकता.” पंजाब सरकार ने मिलावटी प्रोडक्ट से निपटने के लिए तंदरूस्त पंजाब नाम से नई मुहिम शुरू की है.

इसमें स्वास्थ्य विभाग, डेयरी डेवलपमेंट विभाग, को-ऑपरेटिव और डेयरी एसोसिएसन के मेंबर ऐक्शन लेतें हैं. बीते कुछ दिनों में भारी तादाद में मिलावटी दूध और उससे बने उत्पाद पकड़े गए हैं. दलजीत बताते हैं, “उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में 50 फीसदी देसी घी मिलावटी है. 400 रुपए किलो वाला देसी घी 100 रुपए किलो में तैयार करके 200 रुपए में बेच दिया जा रहा है.” मिलावटी प्रोडक्ट अगर बाजार से बाहर हो जाएंगे तो इनकी जगह अच्छे प्रोडक्ट लेंगे और बाजार के भाव अपने आप सुधर जाएंगे.

कितने जागरूक हम

क्या आप जानते हैं कि आम बोलचाल की भाषा में हम जिसे आइसक्रीम कहते हैं, दरअसल उसमें से ज्यादातर प्रोडक्ट में दूध की एक बूंद का इस्तेमाल तक नहीं किया जाता. इंडस्ट्री की भाषा में इन्हें एनालॉग प्रोडक्ट कहते हैं. इसके खिलाफ आवाज उठी तो ये डेजर्ट्स के नाम से परोसे जाने लगे. सरदाना कहते हैं, “एनालॉग प्रोडक्ट के प्रति देश में जागरूकता की बड़ी जरूरत है.

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है.” बाजार में आने वाले कई ऐसे प्रोडक्ट हैं जिन्हें जनता मिल्क प्रोडक्ट समझती हैं, लेकिन अगर महीन अक्षर में लिखी सामग्री को पढ़ेंगे तो पाएंगे इसका दूध से कोई लेनादेना नहीं.

संकट का समाधान

डॉ. खन्ना कहते हैं, “मौजूदा संकट से निकलने के लिए सरकार को बाजार से मिल्क पाउडर का स्टॉक उठा लेना चाहिए. इसका इस्तेमाल अफ्रीका जैसे देशों में डोनेशन के तौर पर किया जा सकता है. साथ ही देश में मिड-डे मील जैसी योजनाओं में इसको बंटवा दें. इससे एक तरफ बाजार में कीमतें सुधरने से किसान को राहत मिलेगी और दूसरी तरफ देश की बड़ी आबादी तंदरूस्त होगी.

विकसित देशों में सरकारें किसानों को सपोर्ट करने के लिए मार्केट से मिल्क प्रोडक्ट जैसे प्रोडक्ट को उठा लेती हैं. हम विकासशील होकर ऐसा क्यों नहीं कर सकते. साथ ही इसके स्थायी समाधान के लिए सरकार को प्रोसेसिंग कैपेसिटी को बढ़ाना होगा.”

वहीं सोढ़ी कहते हैं, “देश से डेयरी प्रोडक्ट के निर्यात में कुछ सुधार आया है. विदेशी उपभोक्ताओं में भी हमारे उत्पादनों के प्रति भरोसा जग रहा है. लेकिन दूध के एक्सपोर्ट का बड़ा बाजार मैक्सिको, मलेशिया, रूस और चीन जैसे देशों में हैं. इन देशों में अभी भारतीय उत्पादों के निर्यात की अनुमति नहीं है. इस दिशा में काम करने की जरूरत है.”

सरदाना कहते हैं, “सरकार निर्यातकों को सब्सिडी देकर मौजूदा स्टॉक को खत्म कर सकती है. इससे बाजार से दूध का स्टॉक खत्म हो जाएगा और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा.”

किसानों को सब्सिडी देकर या मिल्क पाउडर की खरीद से सरकार फौरी तौर पर राहत दे सकती है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए दीर्घकालिक उपाय खोजने होंगे. भारत एक मार्जिन इकोनॉमी है, जहां जरूरत से थोड़ा-सा ज्यादा उत्पादन सरप्लस का कारण बन जाता है और थोड़ी-सी कमी गंभीर संकट का रूप ले लेती है. ऐसी अर्थव्यवस्था में कमोडिटी की कीमत का तर्कसंगत रहना ही सभी हितधारकों के लिए आदर्श स्थिति है. बड़ा बाजार कीमतों को स्थिरता प्रदान करता है.

घरेलू बाजार को ज्यादा से ज्यादा संगठित और पारदर्शी बनाने की दिशा में काम करने की जरूरत है. साथ ही विदेशी बाजार में भारतीय उत्पादों की पकड़ मजबूत हो इस दिशा में कदम उठाने होंगे. फिलहाल मौजूदा हालात में सरकार एक तीर से कई निशाने साध सकती है.

“राज्यों से मिलकर हल निकालेंगे”

देश में डेयरी उद्योग के मौजूदा संकट पर कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के साथ ई-मेल के जरिए हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

दूध किसानों को राहत देने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

कर्नाटक, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों में सहकारी समितियों को 2 से 5 रुपये प्रति लीटर मूल्य सब्सिडी प्रदान कर रहे हैं. कुछ राज्य संघ, राज्य सरकार के परामर्श से खरीद मूल्य तय करते हैं. पिछले एक वर्ष के दौरान औसत दूध खरीद में लगभग 10.96 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई जबकि तरल दूध की बिक्री केवल 5.11 प्रतिशत बढ़ी है.

मिल्क पाउडर के स्टॉक से कैसे निपटेंगे?

गुजरात और महाराष्ट्र राज्य सरकारों ने स्कीम्ड दुग्ध पाउडर के लिए 50 रुपए प्रति किलो सब्सिडी देने की घोषणा की है. सभी राज्य सरकारों और राज्य दुग्ध परिसंघों को सलाह दी गई है कि वे बाजार अधिशेष दुग्ध के लिए राज्य सरकारों की लोक वितरण प्रणाली का उपयोग करने के लिए कहें. महाराष्ट्र में राज्य सरकार ने उचित दर दुकान के माध्यम से “आरे” दूध की बिक्री को अनुमोदित किया है.

देश में दूध की खपत बढ़े, इस दिशा में क्या फैसले लिए गए हैं?

सभी राज्यों को कहा है कि वे समेकित शिशु विकास योजना के अंतर्गत स्वास्थ्य योजनाओं, कैंटीनों को मध्यान भोजन योजना आंगनवाड़ी के माध्यम से सहकारिताओं को दूध की आपूर्ति कराएं. बिहार सरकार ने आइसीडीसी के अंतर्गत आंगनवाड़ी केंद्रों के बच्चों को और राजस्थान सरकार ने मिड डे मील स्कीम दुग्ध पाउडर उपलब्ध कराने का आदेश जारी कर दिया है. कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र, गुजरात की राज्य सरकारें भी आंगनवाड़ी और मिड-डे मिल योजना के माध्यम से दूध की आपूर्ति कर रही हैं.

डेयरी प्रोडक्ट का निर्यात बढ़ाने के मोर्चे पर कोई कदम उठाए गए हैं?

दूध का उत्पादन करने वाले किसानों के हितों की रक्षा, दूध के आयात और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में डेयरी उत्पादों को संवर्धित करने के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं. मसलन, राजस्व विभाग ने 27 मार्च की अधिसूचना के तहत व्हे पाउडर के आयात शुल्क को 30 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया.

वाणिज्य विभाग ने 13 जुलाई को सभी डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय मर्केंडाइज निर्यात योजना (एमईआईएस) के तहत 10 फीसदी आयात प्रोत्साहन की अनुमति दी है.

(साभार- इंडिया टुडे-आजतक)

2315total visits.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय खबरें