डॉ. कन्हैया त्रिपाठी,
भारत में तरक्की करने के कई सोपान हैं। बस भारतीयों के भीतर तरक्की करने का ज़ज्बा होना आवश्यक है। सहकारिता आन्दोलन इसका बड़ा उदहारण हैं। जब देश औपनिवेशिक सभ्यता में फंसा हुआ था उस समय भी लोगों की देसज उत्पादन-विपणन, लेन-देन के साथ सांस्कृतिक मेलजोल हमारी ताकत हुआ करती थी। हमारे आर्थिक उन्नति का आधार हुआ करती थी। आज़ादी के बाद देश में सहकारिता और सरोकारों को और भी बल मिला। इसका एक बड़ा उदहारण है राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड है। इसकी स्थापना आर्थिक साझेदारी, आर्थिक हिस्सेदारी, साझा-उद्यम और आत्मनिर्भरता के लिए और सच कहा जाए तो गतिशील समाज बनाने के लिए 1965 में हुई। यह उस महापुरुष की संकल्पना है जिन्हें हम सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम से जानते हैं। खेड़ा जिले के किसानों की आत्मा की आवाज़ जब सरदार पटेल के कानों में पड़ी तो बन गई सहकारी समिति और उसी का एक समृद्ध स्वरूप राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के रूप में आज़ दिख रहा है।
यह सरदार पटेल के स्वराज का एक साकार स्वरूप भी है। भाई त्रिभुवनदास पटेल और सरदार वल्लभभाई पटेल के सपनों का स्वराज है। सबसे पहले दो गावों से शुरू हुआ अभियान- खेड़ा संघ अपने समय का एक रोमांचकारी और आत्मनिर्भरता का मिसाल बन गया। जब लालबहादुर शास्त्री गुजरात के आनंद की यात्रा पर थे तो उन्होंने एक गाँव में रात्रि व्यतीत करने का निर्णय लिया और वह इस दूध के सहकारी आर्थिक सम्पन्नता के उपक्रम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हीं दिनों इसके महत्व को जानकार पूरे देश में इसे विकसित करने का निश्चय किया था और इसकी कमान श्वेत क्रांति के जनक के रूप में प्रसिद्ध वर्गीज़ कूरियन को लालबहादुर शास्री ने ही सौंपी थी। भला वर्गीज़ कूरियन को कौन नहीं जानता? हम सभी उनके भारत निर्माण में किये गए कार्य से आज परिचित हैं। वर्गीज़ कूरियन ने एक बार कहा था कि हम एक ऐसे रस्ते पर चल पड़े हैं, जिस पर चलने की हिम्मत कम लोगों ने की है। हमें ऐसे रस्ते पर चलना चाहिए, जिस पर चलने का सपना बहुत ही कम लोग देख पाते हैं। अंततः हमें ऐसा अवश्य करना चाहिए क्योंकि हम आशा और आकाँक्षाओं पर भरोसा करते हैं।
निवर्तमान एनडीडीबी के नेतृत्वकर्ता कूरियन और वर्तमान अध्यक्ष मीनेश शाह दोनों की भावनाओं में एकरूपता देखकर ऐसा लगता है कि एनडीडीबी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है और यह आन्दोलन आने वाले समय में पूरे देश के आत्मनिर्भरता की नई पटकथा लिखने वाला है। हाल ही में, उनके द्वारा एक शानदार वक्तव्य इस बात का प्रमाण है कि वह हिंदुस्तान में एनडीडीबी को विकास का पैमाना बनाना चाहते हैं। मिनेश शाह ने एक कांफ्रेंस में कहा था कि हम दुनिया में सबसे बड़े दूध उत्पादक हैं। यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हमारा दूध उत्पादन पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ बना रहे। इसके लिए मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और पर्यावरण पर इसके प्रभाव से संबंधित डेयरी क्षेत्र में पर्यावरणीय स्थिरता और चुनौतियों को हमें पहचानने की आवश्यकता होगी। दरअसल यह मीनेश शाह की प्रतिबद्धता है। देखा जाए तो यह सतत विकास लक्ष्य-2030 के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक बड़ी पहल है, जो मुझे सरदार पटेल, त्रिभुवनदास पटेल, लालबहादुर शास्त्री व वर्गीज़ कूरियन के सपनों का साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी भी लगती है।
अब सवाल यह है कि सहकारिता के ऐसे उपक्रम अन्य राज्य क्यों नहीं अपनाते? यदि गुजरात में एनडीडीबी ने इतने बड़े पैमाने पर इस सहकारिता के माध्यम से किसानों को जीवन-आनंद दिया है तो अन्य राज्य ऐसी व्यवस्था को अपने यहाँ क्यों नहीं विकसित कर रहे हैं? क्या यह राज्यों की इच्छाशक्ति का अभाव है? सही मायने में देखा जाए तो सभी राज्यों को एनडीडीबी को अपने राज्यों के किसानों, पशुपालकों और आत्मनिर्भर बनने के लिए संघर्षरत लोगों के उद्धार के लिए आमंत्रित करना चाहिए। मुख्यमंत्रियों को दिलचस्पी लेकर गुजरात के आनंद स्थित एनडीडीबी मॉडल को अपनाकर अपने यहाँ के लोगों के जीवन-उत्कृष्टता के लिए प्रयत्न करना चाहिए। मीनेश शाह ने निःसंदेह अपने एनडीडीबी की विभिन्न सहायक एजेंसीज के मध्यम से दुग्ध उत्पादन और दूसरे उपक्रम को दूसरे राज्यों में फ़ैलाने का प्रयत्न किया है किन्तु यदि राज्य-सरकारें और खासकर राज्यों के मुख्यमंत्री इस ओर आगे आकर उनके अनुभवों, प्रयत्नों को अपने राज्य में विकसित करने के लिए हाथ बढ़ाएं तो निश्चय ही भारत उन्नत भारत बनने और आर्थिक स्वराज पाने में सफलता हासिल करेगा।
भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मनिर्भर भारत के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। वह सक्षम भरत बनाने के पक्षधर हैं। अपने कार्यों के लिए जाने जाने वाले अमितभाई शाह देश के सहकारिता मंत्री हैं। यह के अच्छा सुयोग मेरी दृष्टि से है कि प्रधान मंत्री और सहकारिता मंत्री जी मीनेश शाह की मदद से एनडीडीबी जैसी महत्त्वाकांक्षी सहकारिता प्रणाली को देश भर में विकसित करें। एक खास बात मीनेश शाह जी की यह है कि वह अपने सभी सहकर्मियों में समदर्शिता और ममत्व के माध्यम से एनडीडीबी को गतिशील बनाने में विश्वास करते हैं। कुशल सांगठनिक क्षमता रखते हैं तो ऐसे में एनडीडीबी जैसा विजन-प्लान देश के किसानों और युवा वैज्ञानिकों के माध्यम से आत्मनिर्भर भी बन सकता है और सक्षम भी बन सकता है। उनके नेतृत्व में एनडीडीबी पुरस्कृत हुई है और सबसे अहम् बात यह है कि कई दशकों से वह एनडीडीबी की सेवा में संलग्न हैं। अमित भाई शाह ने उनकी तारीफ की है, अपने हाथों से पुरस्कार दिया है और सहकारिता की उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है।
किसी भी देश में क्रांतिकारी पहल कोई एक करता है किंतु उस पहल से हजारों लोगों को दो जून के निवाले पहुंचाते हैं। एनडीडीबी यह एक वैकल्पिक सभ्यता और वैकल्पिक विकास का अनूठा उदहारण है। जे। सी। कुमारप्पा ने गाँव को विकसित करने का जो मॉडल दिया था वह वर्धा के आसपास के लोगों तक सिमटकर रह गया। गाँधी ने रचनात्मक कार्यक्रम भी शुरू किया था। वह अन्य जगह नहीं जा सका। स्वयं सहायता समूह के रूप में कुछ गाँवों में वहां पर आज भी कुछ नया करने का प्रयास हो रहा है किंतु वह देश के हर कोने में बात नहीं पहुंची जो कुमारप्पा या गाँधी चाहते थे। एनडीडीबी का सहकारिता से जुड़ा अभियान भारत में दुग्ध क्षेत्र की बहुत सारी कोशिशों को साकार किया है। दूसरे और भी उपक्रम उल्लेखनीय सेवा राष्ट्रनिर्माण में कर रहे हैं। मेरी दृष्टि से उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश में गाँव-गाँव एनडीडीबी की योजनाओं से कैसे लाभान्वित किया जा सकता है, इस दिशा में सोचना आवश्यक है। मानव संसाधनों का सही क्षेत्र में उपयोग समृद्ध और सक्षम भारत बना सकता है।
वर्गीज़ कूरियन ने शायद जब अपनी वैज्ञानिक सोच के साथ इसके विकास हेतु अपना कदम उठाया हो तो पहला ही कदम था और असमंजस भी हो सकता है मन में रहा हो लेकिन उनके विजन की सफलता की मिसाल अपनी नज़रों से मैं देखकर आया तो यह लगा कि यह तो बहुत बड़ी सेवा और कर्तव्यपरायणता की मिसाल है यह संस्था, और लोगों की प्रतिबद्धता भी अद्भुत है।
यदि भारत को दुनिया की चुनौतियों से सामना करना है तो उसे गरीबी शून्य करना होगा। भूख रहित समाज की आवश्यकता होगी। शौर ऊर्जा को अपनाना होगा। स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षा के साथ स्वच्छता पर ध्यान देना होगा। एनडीडीबी इन सब मसलों पर पहले से कार्य कर रही है और यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि इसके जरिये इन सभी लक्ष्यों को पाने की पूरी कोशिश एनडीडीबी द्वारा सतत रूप से किया जाता रहा है फिर यह तो वरदायिनी संस्था है भारत के विकास और उसके आत्मनिर्भरता के लिए। लेकिन देखना यह होगा कि कितने समय बाद इसे सम्पूर्ण देश के सभी गावों तक पहुँच बनाने में सफलता मिलती है। कहते हैं मन में यदि विश्वास हो तो कोई भी दूरी छोटी हो जाती है और कोई भी लक्ष्य हासिल करना मुश्किल नहीं होता। आशा में तो सबकुछ विद्यमान है फिर उसी पर विश्वास कर लेते हैं, भारत को विकसित राष्ट्र जो बनाना है।
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लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी का दायित्व निभा चुके हैं। अहिंसा आयोग एवं अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।
पता: डॉ. कन्हैया त्रिपाठी, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर-470003, मध्य प्रदेश
मो.- 9818759757 इमेल: hindswaraj2009@gmail।com
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