अरविंद पनगढ़िया का इस्तीफा: काम आया संघ का दबाव, छाप छोडने में नाकाम रहा नीति आयोग

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नई दिल्ली, 01 अगस्त 2017,

नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफे के वजहों के रूप में अरविंद पनगढ़िया ने बेशक कोलंबिया विश्वविद्यालय से अवकाश की अवधी न बढ़ने को बहाना बनाया है। लेकिन उनके इस्तीफे के पीछे मुख्य वजह संघ का दबाव माना जा रहा है। नियुक्ति के समय से ही वे भगवा विचारकों के निशाने पर रहे हैं।

पनगढ़िया के नेतृत्व में आयोग के तीन साल गुजर जाने के बावजूद जब आयोग अपनी अलग छाप छोडने में नाकाम रहा है। तो सरकार को भी संघ का दबाव मानना पडा है। सूत्र बताते हैं कि संघ के दबाव के असर में सरकार के शीर्ष स्तर ने ही पनगढ़िया को इस्तीफे की राह दिखाई है। उनके इस्तीफे के साथ ही नीति आयोग के नए उपाध्यक्ष के चयन को लेकर कवायद शुरू हो गई है। उम्मीद जताई जा रही है कि नीति आयोग का अगला उपाध्यक्ष बेशक कोई भगवाधारी न हो मगर वह संघ की अपेक्षाओं के अनुरूप होगा।

हालांकि पनगढ़िया के इस्तीफे पर संघ के संगठनों ने कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की है। जबकि बीते एक साल से स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ सरीखे संघ के संगठनों ने नीति आयोग की कार्यप्रणाली के खिलाफ खुला मोर्चा खोल रखा था।

पनगढ़िया के इस्तीफे प्रकरण पर स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक अश्वनी महाजन ने कहा कि यह सरकार और पनगढ़िया के बीच का मामला है। उन्होंने कहा कि लंबे अरसे से उनकी मांग थी कि नीति आयोग के कामकाज की समीक्षा होनी चाहिए। पीएम मोदी की नीति और अपेक्षाओं के अनुरूप नीति आयोग कार्य नहीं कर पा रहा था। महाजन का कहना है कि महज व्यक्ति के बदलने से कुछ नहीं होता है। नीति आयोग को अपने पूरी कार्यप्रणाली में सुधार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच हमेसा से इस बात की वकालत करता रहा है कि विदेश या विश्व बैंक में कार्य करने वालों के बजाय सरकार को ऐसे लोगों को नीति निर्धारण में शामिल करना चाहिए जोकि देश की मिट्टी में पले बडे हों और इसकी मिट्टी को पूरी तरह समझते हों। स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि देश के अनुरूप ही कृषि एवं उद्योग नीति बननी चाहिए। नीति आयोग अब तक इसमें नाकाम रहना है।

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