डेयरी टुडे डेस्क,
रायपुर, 24 अगस्त 2017,
छत्तीसगढ़ में गोशालाओं की दुर्दशा सामने आने के बाद राज्य सरकार ने अब पशुपालन विभाग से गोशालाओं का काम-काज छीन लिया है. पशुपालन विभाग सिर्फ गायों की देखभाल और उनके स्वास्थ्य संबंधी काम करेगा. जबकि गोशालाओं की जांच की जिम्मेदारी अब सीधे कलेक्टरों के हाथो में होगी. दुर्ग के धमधा ब्लॉक में बीजेपी ने नेता हरीश वर्मा की गोशाला में अनियमितता के खुलासे के बाद राज्य सरकार ने कलेक्टर को जवाबदेह बनाया है. कलेक्टर सीधे शासन को जांच रिपोर्ट भेजेंगे. गोशालाओं को बंद करने और संचालको के खिलाफ दंडनीय कार्रवाई का अधिकार भी कलेक्टर को होगा.
अब तक पशुपालन विभाग ही गोशालाओं की जांच का जिम्मा संभालता था. गो सेवा आयोग के जरिये तमाम गोशालाओं को सरकारी अनुदान मिलता था. आजतक की खबर के मुताबिक अब इस काम में भी कलेक्टर की भूमिका होगी. कलेक्टर की ओर से गठित समिति गोशालाओं का जायजा लेने के बाद सरकारी अनुदान संबंधी प्रक्रिया पर अपनी मुहर लगाएगी.
छत्तीगढ़ में गोशालाओं को सबसे ज्यादा सरकारी मदद
छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जो गायों पर सर्वाधिक अनुदान देता है. राज्य में गाय के चारे और उसकी देखभाल के लिए प्रतिदिन प्रत्येक गाय के लिए 25 रूपये की सरकारी सहायता मिलती है. मध्यप्रदेश में मात्र 7 रूपये दिए जाते हैं. जबकि देश के किसी भी राज्य में 10 रूपये से अधिक प्रति गाय व्यय नहीं होता. इतनी अधिक रकम देने के बावजूद गायों की दुर्दशा से सरकार सकते में है. यह भी खुलासा हुआ है कि सरकारी रकम हड़पने के चक्कर में कई गोशालाओं में गायों को चारा कम और इंजेक्शन ज्यादा लगाए जाते हैं. चारे के नाम पर शासन से मिलने वाली अनुदान को अपने जेब में डालने के लिए कई संस्थाओं ने गो संचालन शुरू कर दिया है. जैसे-जैसे अनुदान की रकम बढ़ती चली गयी, गोशालाओं की संख्या में इजाफा होता चला गया.
गोशालाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी
वर्ष 2005-06 में राज्य में सिर्फ 26 गोशालाएं रजिस्टर्ड थी और 2010 में इनकी संख्या बढ़कर 31 हुई. इसके बाद गायों के लिए अनुदान की रकम जैसे ही बढ़ी वैसे ही पुरे प्रदेश में अचानक गोशाला तेजी से खुलने लगी. वर्ष 2016-17 में 115 गोशालाएं अस्तित्व में आ गयी. बीते दो वर्षो में इनमें से 96 गोशालाओं को सरकारी अनुदान की रकम 23 करोड़ तक पहुंच गयी. दिलचस्प बात यह है कि गायों की संख्या का स्पष्ट ब्यौरा ना तो पशुपालन विभाग के पास है और ना ही गो सेवा आयोग के पास. गोशाला संचालकों ने गायों की जितनी संख्या बताई उस पर विश्वास कर अनुदान की राशि स्वीकृत कर दी गयी. सरकारी अफसरों ने ना तो कभी मौके का जायजा लिया और ना ही उन्हें इस बात की फुर्सत मिली कि वो अनुदान में दी गयी रकम की उपयोगिता देख लें.
फिलहाल राज्य की सभी गोशालाओं की जांच जारी है. धमधा की जिस गोशाला में गायों के बेमौत मारे जाने का खुलासा हुआ है, उस गोशाला के दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं. पता पड़ा है कि शगुन गोशाला को बीते 5 वर्षों में 93.23 लाख रुपए के करीब सरकारी रकम मिली है. जबकि अन्य दो गोशालाओं को जारी की गयी रकम की पड़ताल हो रही है, जल्द ही कलेक्टर के जरिये यह रिपोर्ट शासन तक पहुंचेगी.
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