झारखंड के हर जिले में बनेगी ‘ड्राई डेयरी’, बूढ़ी और दूध नहीं देने वाली गायों को मिलेगी पनाह

डेयरी टुडे नेटवर्क,
रांची, 8 अक्टूबर 2017,

दूध देना बंद कर चुकी गायें अक्सर दाने-दाने को मोहताज होकर भटकती नजर आती हैं। अब ऐसे बूढ़े गोवंश के लिए कृषि एवं पशुपालन विभाग ने कमर कसी है। तय किया गया है कि राज्य के प्रत्येक जिले में ड्राई डेयरी मॉडल को अपनाया जाएगा। 200-500 गायों की क्षमता वाली ड्राई डेयरी में दूध का उत्पादन तो नहीं होगा लेकिन यहां बूढ़ी गायों को आश्रय जरूर मिल सकेगा। इसके अन्यत्र कई फायदे भी होंगे। पशु शरण स्थल के रूप में विकसित होने वाली इन डेयरी का संचालन गो सेवा आयोग के माध्यम से किया जाएगा।

जल्द स्थापित की जाएंगी ‘ड्राई डेयरी’

ड्राई डेयरी मॉडल की परिकल्पना आइसीएआर (इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च) ने करते हुए सभी राज्यों में इस तरह की डेयरी की स्थापना का सुझाव दिया है। आइसीएआर ने यह भी सुझाव दिया है कि गौवंशीय पशुओं की देखभाल के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात की तर्ज पर सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) फंड की अनिवार्यता भी की जाए। पशुपालन निदेशक विजय कुमार सिंह कहते हैं कि विभाग के एजेंडे में ड्राई डेयरी की स्थापना सबसे ऊपर है। निदेशालय बहुत जल्द इस पर पहल शुरू करेगा। कोशिश होगी अगले बजट में इसके लिए बजटीय प्रावधान किया जाए। ड्राई डेयरी के स्थापना व्यय के लिए माइनिंग कंपनियों व सीएसआर फंड की भी मदद ली जा सकती है।

सिर्फ बोझ नहीं होंगी बूढ़ी गाय

ड्राई डेयरी में रखी जाने वाली बूढ़ी गाय और तस्करी में पकड़े गए पशु सिर्फ बोझ नहीं होंगे। इनके गोबर व मूत्र से उत्पाद तैयार किए जाएंगे जो आय का स्रोत भी बन सकेंगे। गोवंश के गोबर से जैविक खाद तैयार की जा सकती है। गोबर गैस ऊर्जा का स्रोत भी बन सकता है। वहीं, मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अमृत पानी जिसे गोमूत्र, गोबर, गुड़ या अन्य अवयवों से तैयार किया जाता है का उपयोग पौधों की उत्पादकता बढ़ाने में किया जा सकता है। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य सुनील मानसिंह ने इसके फायदों से अवगत कराया। रांची में एक कार्यक्रम में आए सुनील ने कहा, शव दाह संस्कार में यदि गोबरी का प्रयोग किया जाए तो इससे पौधों को संरक्षित किया जा सकेगा। वहीं, 40 गौवंश का एक दिन का भरण पोषण किया जा सकता है।

झारखंड में 84 लाख से अधिक है गोवंश की संख्या

पशु गणना के अनुसार झारखंड में देशीय गोवंश की संख्या 84,73,910 है। इनमें 44,85,532 नर और 39,88378 मादा हैं। राज्य में झारखंड गौवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम-2005 सख्ती से लागू है। इसलिए गोवंश की हत्या के उद्देश्य से खरीद-बिक्री नहीं की जा सकती है। ऐसे में बूढ़े और पशु तस्करी में पकड़े गए गोवंश का पालन एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है।
(साभार-दैनिक जागरण)

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