डेयरी टुडे नेटवर्क,
लखनऊ, 11 सितंबर 2017,
किसानों की आय पांच वर्ष में दोगुना करना पीएम मोदी और योगी सरकार की मंशा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने स्तर से इस संबंध में पहल करने जा रहा है। किसानों की आय बढ़ाने में सबसे बड़ी चुनौती लागत कम करने की है, संघ का जोर भी इसी पर है। लिहाजा वह सहयोगी संगठन लोकभारती की मदद से किसानों को ‘जीरो बजट’ की खेती का तरीका बताएगा।
इस बाबत दिसंबर में अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में प्रशिक्षण कार्यक्रम होगा। प्रदेश के हर ब्लाक से चुने गए दो किसान इस प्रशिक्षण में आएंगे। इस क्षेत्र में काम कर रहे पद्मश्री सुभाष पालेकर व अन्य विशेषज्ञ भी कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे।
जीरो बजट खेती में मूल रूप से देशी गाय के गोबर व गोमूत्र का प्रयोग होता है। एक गाय के गोबर से पहले, दूसरे और तीसरे साल क्रमश: 10, 20 और 30 एकड़ खेती हो सकती है। खेती की यह विधा देशी गायों के संरक्षण व संवर्धन के साथ छुट्टा पशुओं की समस्या से भी काफी हद तक निजात दिला सकती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने इसका प्रजेंटेशन हो चुका है, जिससे वह संतुष्ट भी थे। उप्र में लघु और सीमांत किसानों की संख्या और उनकी आर्थिक दशा को देखते हुए इसकी काफी संभावना है।
कार्यक्रम से जुड़े पूर्व पुलिस अधिकारी शैलेंद्र सिंह के अनुसार विदेशी नस्ल की गाय के एक ग्राम गोबर में 50-70 लाख बैक्टीरिया होते हैं, जबकि देशी नस्ल की गाय के इतने ही गोबर में करीब 500 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं। पौधे अपने भोजन का 1.5 फीसद जमीन से और बाकी वायुमंडल से लेते हैं। बैक्टीरिया उपलब्ध भोजन का विघटन कर पौधों को पहुंचाते हैं। परंपरागत खेती में पोषक तत्वों के लिए फसल में अलग से रासायनिक खाद और सुक्ष्मपोषक तत्व डालते हैं।
जीरो बजट खेती में 10-10 किग्रा गोबर, गोमूत्र, एक-एक किग्रा बेसन, गुड़ और बरगद के जड़ के पास की एक मुट्ठी मिट्टी को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर 24 घंटे के लिए छोड़ देने पर उसमें अरबों की संख्या में बैक्टीरिया पनप जाते हैं। मामूली लागत में तैयार इस घोल को जीवामृत कहते हैं। इसे सिंचाई के साथ या फसल में ऊपर से छिड़काव करना होता है। बाकी काम खेत में करीब 15 फीट की गहराई में पड़े केंचुए ऊपर आकर कर देते हैं।
(साभार-दैनिक जागरण)
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