डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 2 अप्रैल 2021,
डेयरी फार्मिंग और पशुपालन बहुत ही मेहनत का काम है, लेकिन अगर कोई लगन और मेहनत से इस काम को करता है तो फिर सफलता उसके कदम चूमती है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि डेयरी के बिजनेस मुनाफे का धंधा है। डेयरी टुडे वेबसाइट लगातार आपके सामने डेयरी फार्मिंग और पशुपालन के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने वालों की सफलता की कहानी (success story) प्रकाशित करती है। ‘डेयरी के सुल्तान’ कॉलम में आज हम आपके सामने लेकर आए हैं महज 21 साल की उम्र में सफलता के झंडे गाड़ देने वाली युवा डेयरी फार्मर श्रद्धा धवन की सक्सेस स्टोरी। आपको यह जानकर हैरानी होगी की इतनी कम उम्र में श्रद्धा अपने डेयरी फार्मिंग के बिजनेस से हर महीने 6 लाख रुपये कमाती हैं, यानी सालभर में इनकी कमाई है 72 लाख रुपये।
श्रद्धी धवन की सफलता की कहानी उन लोगों को प्रेरणा देने वाली है, जो खेती-किसानी और पशुपालन में कामयाब होना चाहते हैं। यह कहानी है एक 21 साल की बेटी की जिसने डेयरी के काम में अपने पिता का हाथ बंटाया और आज लाखों की कमाई करती है। यह कहानी है महाराष्ट्र के ऐसे इलाके की जहां सूखा और बदहाली की खबरें सुर्खियां बनती हैं। दरअसल, अहमदनगर से 60 किमी दूर एक निघोज गांव है जहां श्रद्धा धवन नाम की एक 21 साल की लड़की ने डेयरी फार्मिंग और दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में मिसाल पेश की है।
श्रद्धा धवन ये सफलता की कहानी 2011 से शुरू होती है, जब श्रद्धा धवन का परिवार तंगगाली से गुजर रहा था। श्रद्धा के परिवार में कभी 6 भैसें होती थीं जिससे दूध का अच्छा धंधा चल रहा था। लेकिन 1998 आते-आते परिवार में सिर्फ एक भैंस बच गई क्योंकि आर्थिक तंगी की वजह से भैंसों को बेचकर खर्च चलाया जाने लगा। श्रद्धा धवन के पिता दिव्यांग हैं, लिहाजा उन्हें बाइक पर दूध ढोकर दूर-दूर तक बेचने जाना होता था। यह काम उनके लिए मुश्किल था क्योंकि शारीरिक परिस्थितयां जवाब दे रही थीं।
चीजें तब बदलीं जब 2011 में पिता ने अपनी बेटी श्रद्धा को इस काम को संभालने की जिम्मेदारी दी। श्रद्धा ने ‘द बेटर इंडिया’ को बताया, ‘मेरे पिता बाइक नहीं चला सकते थे। मेरा भाई किसी भी जिम्मेदारी को निभाने के लिए बहुत छोटा था। इसलिए मैंने 11 साल की उम्र में जिम्मेदारी संभाली हालांकि मुझे यह काफी अजीब लगा, क्योंकि हमारे गांव की किसी भी लड़की ने इससे पहले इस तरह का काम नहीं किया था।’ 11 साल की उम्र में श्रद्धा धवन पिता के साथ डेयर के काम में उतर गई और भैंसों का दूध निकाल कर बेचना शुरू किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, श्रद्धा को इस काम में ज्यादा दिक्कत नहीं आई क्योंकि उसने बाइक से उन जगहों पर दूध पहुंचाना शुरू कर दिया जहां उसके पिता ले जाया करते थे। श्रद्धा ने डेयरी के काम के साथ ही अपनी पढ़ाई को भी प्रमुखता दी। श्रद्धा की मेहनत रंग लाई और पढ़ाई के साथ डेयरी का बिजनेस भी चमकता रहा। आज नतीजा यह है कि कभी तंगहाली में चलने वाला परिवार आज खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहा है। इसमें सबसे बड़ा रोल श्रद्धा की कड़ी मेहनत का है।
उन्होंने बताया कि 2013 तक दूध के बड़े केटल्स को ले जाने के लिए उन्हें मोटरसाइकिल की जरूरत थी। उस समय उनके पास एक दर्जन से अधिक भैंसें थीं और उसी साल उनके लिए एक शेड का निर्माण किया गया। 2015 में अपनी दसवीं कक्षा के दौरान श्रद्धा एक दिन में 150 लीटर दूध बेच रही थी। 2016 तक उनके पास लगभग 45 भैंस थीं, और हर महीने 3 लाख रुपए कमा रहे थे। श्रद्धा धवन की मेहनत से उनके परिवार के पास आज 80 भैंस हैं। डेयरी के उद्योग से 2 मंजिला मकान भी खड़ा हो गया है। भैंसों को रखने के लिए आज इतना बड़ा शेड बन गया है कि पूरे जिले में ऐसा कोई शेड नहीं है। परिवार की आर्थिक हालत बेहद मजबूत है और महीने का इनकम 6 लाख रुपये तक पहुंच गया है। आसपास के लोगों को पता चला कि दूध शुद्ध है और उसमें कोई मिलावट नहीं है, जिससे कि बिक्री में बड़ी तेजी देखी गई।
श्रद्धा अपने डेयरी फार्म में पशुओं की देखभाल, खानपान का जिम्मा खुद संभालती हैं। गाय और भैंसों को ऑर्गेनिक हरा चारा खिलाया जाता है। यह चारा बगल के खेतों में ही उगाया जाता है। भैंसों का शेड दिन में दो बार साफ किया जाता है। मवेशियों का रेगुलर चेकअप किया जाता है। श्रद्धा के डेयरी फार्म में आज 80 भैंसें हैं, जिनसे हर दिन 450 लीटर दूध का उत्पादन होता है। अपनी सूझबूझ, प्रतिभा, मेहनत और लगन से श्रद्धा आज पूरे इलाके में एक सफल महिला डेयरी फार्मर बन कर उभरी हैं और एक मिसाल बन गई हैं।
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