नवीन अग्रवाल, डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 7 मई 2023
साल 1975 की बात है, एक किसान का 17 साल का बेटा दूध बेचने के लिए निकला और हरियाणा के करनाल में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) के कैंपस में एक बूथ पर दूध बेचकर उसने 3 रुपये कमाए। यह उसके रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था। अपनी पढ़ाई के लिए वह पार्ट-टाइम दूध बेचा करता था। इसके करीब 22 साल बाद उसने डेयरी कंपनी की नींव रखी। दूध जुटाने के लिए वह हावड़ा में अपनी साइकिल पर घर-घर जाता। इनका नाम नारायण मजूमदार (Narayan Majumdar) है। मजूमदार रेड काउ डेयरी (Red Cow Dairy) के मालिक हैं। यह पूर्वी भारत की सबसे बड़ी डेयरियों में से एक है। इसका सालाना टर्नओवर 800 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। यह कंपनी दही, घी, पनीर और रसगुल्ला के अलावा कई तरह के दूध की बिक्री करती है।
नारायण मजूमदार का जन्म 25 जुलाई 1958 में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में हुआ था। तीन भाई-बहनों में वह दूसरे नंबर के थे। उनके पिता बिमलेंदु मजूमदार किसान थे। मां बसंती मजूमदार गृहिणी थीं। नारायण की शुरुआती पढ़ाई स्थानीय स्कूल में हुई। 1975 में करनाल के एनडीआरआई में डेयरी टेक्नोलॉजी से उन्हें बीएससी करने का मौका मिला। उस समय कोर्स की फीस 250 रुपये थी। नारायण के लिए यह बहुत ज्यादा थी। फीस जुटाने के लिए उन्होंने फर्स्ट ईयर के पहले दो महीने इंस्टीट्यूट में पार्ट-टाइम काम करना शुरू किया। वह सुबह 5 बजे से 7 बजे तक दूध बेचते। इससे उन्हें रोजाना 3 रुपये की कमाई होती। इसके अलावा पश्चिम बंगाल सरकार से 100 रुपये की स्कॉलरशिप मिलने लगी। पिता भी घर से हर महीने 100 रुपये भेजते। उन्हें 1979 में डिग्री मिल गई। हालांकि, इस कड़ी में परिवार को अपने एक एकड़ खेत को बेचना पड़ा।
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— Red Cow Dairy (@redcowdairykol) March 2, 2023
डिग्री पूरी होने के बाद मजूमदार को कोलकाता में क्वालिटी आइसक्रीम ने डेयरी केमिस्ट के तौर पर नियुत कर लिया। उनकी सैलरी तब 612 रुपये हुआ करती थी। गांव से ऑफिस पहुंचने के लिए उन्हें सुबह 5 बजे की ट्रेन पकड़नी होती थी। इसके लिए वह सुबह 4 बजे उठ जाया करते थे। वापस घर लौटने में उन्हें रात के 11 बज जाते थे। हर रात पिता उनका स्टेशन पर लालटेन लेकर इंतजार करते थे।
तीन महीने में ही मजूमदार इस नौकरी से ऊब गए। फिर उन्होंने सिलीगुड़ी में हिमुल (हिमालयन कोऑपरेटिव) में नौकरी पकड़ ली। यहां उनकी मुलाकात डॉ जगजीत पुंजार्थ से हुई। वह मदरी डेयरी में महाप्रबंधक थे। उन्होंने नारायण मजूमदार को कलकत्ता (अभी कोलकाता) में मदर डेयरी ज्वाइन करने का ऑफर दिया। 1981 में उन्होंने मदर डेयरी में काम करना शुरू कर दिया। यहां वह तेजी से बढ़ने लगे। 1985 में मजूमदार ने मदर डेयरी छोड़कर बहरीन में डैनिश डेयरी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में काम करना शुरू कर दिया। तीन महीने बहरीन में काम करने के बाद वह दोबारा कोलकाता लौट आए। फिर से वह मदर डेयरी में काम करने लगे। दरअसल, वह अपने परिवार के नजदीक रहना चाहते थे।
इस डेयरी में बने कंसल्टेंट जनरल मैनेजर 1995 में मजूमदार हावड़ा में ठाकेर डेयरी प्रोडक्ट में कंसल्टेंट जनरल मैनेजर बन गए। एक समय आया जब वह इस कंपनी के लिए डेयरी किसानों से दूध खरीदने लगे। स्थानीय मर्चेंट दूध उत्पादन करने वाले किसानों को अनाप-शनाप तरीके अपनाकर ठगते थे। उन्हें प्रति लीटर 7 रुपये से 8 रुपये का भुगतान करते थे। मजूमदार वही दूध 10-12 रुपये प्रति लीटर खरीदते थे। नारायण मजूमदार किसानों को दूध की क्वालिटी सहित हर चीज समझाने लगे। इससे धीरे-धीरे उनका नाम हो गया। वह अपनी साइकिल से दूध खरीदने करने के लिए जाते थे।
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नारायण मजूमदार के प्रदर्शन से खुश होकर ठाकेर ने 1997 में उनके लिए एक चिलिंग प्लांट लगा दिया। यह प्लांट तीन महीने के भीतर मुनाफे में आ गया। 1999 में 7-10 लाख रुपये लगाकर मजूमदार ने अपने चिलिंग प्लांट लगाए। 2000 में उन्होंने ठाकेर से चिलिंग यूनिट भी खरीद ली। उसी साल उन्होंने 500 लीटर की क्षमता का पहला मिल्क टैंकर खरीदा। 2000 में ही उन्होंने प्रॉपराइटरशिप फर्म को पार्टनरशिप कॉरपोरेशन में बदल दिया। इसके लिए उन्होंने पार्टनर के तौर पर अपनी पत्नी को जोड़ा। 2003 में मजूमदार ने ठाकेर डेयरी को छोड़ रेड काउ डेयरी नाम की कंपनी शुरू की।
हालांकि, प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ मजूमदार को एहसास हुआ कि उन्हें इनोवेट करना होगा। 2007 में उन्होंने कोलकाता डेयरी के साथ गठजोड़ किया। इसी के साथ रेड काउ पॉली पाउच की लॉन्चिंग की। उसी साल 25 अगस्त को नारायण के बेटे नंदन भी पिता के कारोबार से जुड़ गए। रेड काउ डेयरी की आज की तारीख में तीन प्रोडक्शन फैक्ट्री हैं। इसने 1,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया हुआ है। बंगाल के 12 जिलों में 3 लाख से ज्यादा किसाना इस फर्म के साथ जुड़े हैं। कंपनी का कारोबार 800 करोड़ से ज्यादा का है।
(साभार-मीडिया रिपोर्ट्स)
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