डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली/अंबाला, 15 सितंबर 2021,
हरियाणा के प्रगतिशील युवा डेयरी किसान रविश पूनिया कहते हैं,”मैं एक सरकारी स्कूल में 2013 से कॉन्ट्रैक्ट पर बतौर कंप्यूटर साइंस टीचर काम कर रहा हूँ। सभी जानते हैं कि स्कूल की छुट्टी ढाई-तीन बजे तक हो जाती है और इसके बाद शिक्षकों के पास काफी समय होता है, जिसमें वे कोई दूसरा काम भी कर सकते हैं। जैसे कोई ट्यूशन पढ़ा लेता है या फिर कोई अपने खेतों को संभाल लेता है। इसलिए मैंने भी सोचा कि क्यों न अपने खाली समय में कोई पार्ट टाइम बिज़नेस किया जाए।”
अम्बाला के नूरपुर गांव के रहनेवाले 36 वर्षीय रविश, पेशे से शिक्षक हैं और साथ ही, दूध डेयरी फार्म का अपना पार्ट टाइम बिज़नेस भी चला रहे हैं। उन्होंने नौकरी करते हुए, सिर्फ दो भैंसों के साथ अपना काम शुरू किया था। अब उनके पास 10 मवेशी हैं, जिनमें से फिलहाल तीन ही दूध देते हैं। लेकिन अपने इस साइड बिज़नेस से रविश सालाना अच्छी कमाई कर पा रहे हैं।
हालांकि, इससे पहले उनके पास मवेशी पालन का कोई अनुभव नहीं था। लेकिन उनके दिल में इस काम को करने की इच्छा थी और इसलिए उन्होंने सीखने पर जोर दिया। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया कि वह दिन में सिर्फ पांच से छह घंटे ही डेयरी का काम करते हैं।
अपने सफर के बारे में उन्होंने बताया, “मेरे पिताजी सरकारी नौकरी में थे और हमारा परिवार चंडीगढ़ में रहा। यही वजह है कि मेरी स्कूल-कॉलेज तक की पढ़ाई चंडीगढ़ से ही हुई। बचपन में छुट्टियों में हम अपने ननिहाल जाते थे, जहां खेती-किसानी के साथ-साथ मवेशी पालन भी होता था। बाद में मैंने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की और एक कंपनी के साथ नौकरी करने लगा। इसी बीच, रिटायरमेंट के बाद पिताजी ने माँ के साथ गांव में रहने का फैसला किया, जिस वजह से बीच-बीच में शहर से मैं भी गांव आने-जाने लगा।”
कुछ साल प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने के बाद 2012 में नौकरी छोड़कर रविश गांव आ गए। वह किसी सरकारी विभाग में नौकरी करना चाहते थे। साल 2013 में रविश को एक सरकारी स्कूल में कॉन्ट्रैक्ट पर कंप्यूटर साइंस टीचर की नौकरी मिल गई।
“नौकरी के बाद सबकुछ ठीक चल रहा था। लेकिन मैं स्कूल के बाद घर आता तो मेरे पास काफी खाली समय होता था। तब मुझे लगा कि इस समय का सही उपयोग करके कोई साइड बिज़नेस किया जा सकता है,” उन्होंने कहा। इस संबंध में अपने घर में चर्चा करने के बाद, उन्होंने छोटे स्तर पर डेयरी फार्म शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “जब माँ और पिताजी गांव आये थे तो मेरे मामाजी ने एक भैंस दी थी। मेरे गांव में ज्यादातर यह चलन है कि किसी खास आयोजन के मौके पर भाई अपनी बहन को भैंस या गाय देता है ताकि बच्चे घर का दूध-घी खाएं। हम पहले से ही उस भैंस की देखभाल कर रहे थे और अच्छा दूध मिल रहा था। इसके बाद मैंने खुद काम देखा-सीखा और जब मुझे लगा कि मैं यह काम कर सकता हूं तो मैंने इन्वेस्ट करने की सोची।” इसके बाद रविश ने मुर्रा प्रजाति की एक भैंस खरीदी और 2015 में दो भैंस के साथ अपना काम शुरू किया।
रविश ने अपने रूटीन के बारे में बताया, “मैं सुबह साढ़े चार-पांच बजे तक उठ जाता हूं। सुबह उठकर सबसे पहले मवेशी घर की साफ-सफाई करता हूं। फिर भैंसों को चारा दिया जाता है। इसके बाद उनका दूध निकाला जाता है। सुबह इस काम में मुझे लगभग दो घंटे लगते हैं। हमने पहले से ही भैंसों के लिए ऐसी व्यवस्था की हुई है कि किसी भी चीज के लिए परेशान न होना पड़े। जैसे उनके लिए चारा, पानी की व्यवस्था आसपास ही है। इसके बाद दिन के समय घरवाले उन्हें बीच-बीच में देख लेते हैं।”
स्कूल से आने के बाद रविश कुछ देर आराम करके शाम में फिर से अपने पशुओं को चारा देते हैं। उन्हें नहलाते हैं और पानी पिलाते हैं। उनका कहना है कि शाम के समय वह लगभग तीन घंटे अपने पशुओं के लिए देते हैं। इसमें वे उनके लिए पास ही एक खेत से चारा लेकर आते हैं और इसे काटते हैं। चारा हमेशा वह ज्यादा मात्रा में काटकर रखते हैं ताकि कभी भी कोई परेशानी हो तो पशुओं को समय पर चारा मिल सके। उनका कहना है, “अक्सर लोगों को लगता है कि पशुओं के होने से आप बंधन में होते हैं क्योंकि उन्हें बहुत देखभाल की जरूरत होती है। लेकिन यह तो किसी भी काम में होगा। मेरा अपना अनुभव है कि बंधन उतना ही होता है, जितना आप बनाते हैं। कोई भी बिज़नेस टीम में होता है और सबसे बड़ी टीम होती है आपका अपना परिवार।”
रविश का परिवार उनके इस काम में पूरा सहयोग कर रहा है। अगर रविश को कभी अपने स्कूल के काम से बाहर जाना पड़ता है तो उनके माता-पिता और पत्नी काम संभाल लेते हैं। या अगर उनके पूरे परिवार को कहीं बाहर जाना हो तो वह किसी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए जिम्मेदारी सौंप जाते हैं।
रविश कहते हैं कि शुरुआत में उन्होंने स्थानीय डेयरी को दूध सप्लाई किया था। फिर गांव में ही उनके नियमित ग्राहक बन गए, जो खुद उनके घर से आकर दूध लेकर जाते हैं। फिलहाल, उनकी दो भैंस दूध दे रही हैं और अन्य तीन भैंस जनवरी तक दूध देने लगेंगी। फिलहाल दो भैंस से उन्हें हर दिन 21 लीटर तक दूध मिल रहा है, जिसे वह 60 रुपए/लीटर के हिसाब से बेचते हैं। उनके दूध की गुणवत्ता काफी ज्यादा अच्छी है। जिस कारण उनके दूध की काफी मांग है। हर साल अपनी लागत और कमाई के बाद, उन्हें साढ़े तीन लाख रुपए तक की बचत हो रही है।
उन्होंने कहा, “मैं कभी भी अपनी भैंसों को अधिक दूध के लिए कोई इंजेक्शन नहीं देता हूं। क्योंकि यह पशुओं के लिए हानिकारक हैं और इससे दूध का पोषण कम होता है। मेरी कोशिश जितना हो सके अपने पशुओं को हरा और ताजा चारा खिलाने की रहती है। कम से कम मात्रा में मैं उन्हें सप्लीमेंट्स देता हूं।”
उनसे दूध लेने वाले सुदेश बताते हैं, “हम खास मौकों पर रविश जी के यहां से ही दूध मंगवाते हैं, क्योंकि उनके दूध की गुणवत्ता काफी ज्यादा अच्छी है। हमारे यहां से उनका गांव दूर पड़ता है नहीं तो हम रेग्यूलर उन्हीं से दूध खरीदते। लेकिन जब भी घर में कोई आयोजन होता है या मिठाइयां बनवानी हैं तो हम उन्हें पहले ही बता देते हैं और वह हमें दूध भिजवा देते हैं।”
रविश कहते हैं कि सबसे बड़ी बात है कि आप अपने पशुओं के रहने की जगह पर साफ़-सफाई रखें। उनके लिए आराम का माहौल बनाएं। उनपर भी मौसम का प्रभाव पड़ता है। इसलिए हर मौसम में उनकी देखभाल के लिए उचित व्यवस्था रखें। आपके पशुओं को जितनी कम बीमारी होगी, उतना ही आपके लिए अच्छा रहेगा।
दूसरों को सुझाव देते हुए रविश कहते हैं कि अगर कोई भी डेयरी फार्म शुरू करना चाहता है तो सबसे पहले इस काम को सीखे। क्योंकि केवल पशुओं को खरीद लाने से काम नहीं हो जाता है। आपको उनका व्यवहार समझना पड़ता है और आप जितने अच्छे से उनकी देखभाल करेंगे। उतना ही वे आपको फायदा देंगे। उनका कहना है कि हमेशा छोटे स्तर से शुरुआत करें और फिर धीरे-धीरे काम बढ़ाएं।
अगर आप मवेशी पालन को लेकर रविश से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 8901006702 पर मैसेज कर सकते हैं।
(साभार- द बेटर इंडिया)
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