IT करियर छोड़ डेयरी फार्म उधोग खड़ा किया, बने करोड़पति

संतोष डी सिंह, जिन्होंने ने अच्छी –खासा आईटी करियर छोड़कर डेयरी फार्म उधोग खड़ा किया, आज उनके डेयरी फार्म उधोग का कुल टर्नओवर 1 करोड़ रुपए सालाना है।
कंपनी : अमृता डेयरी फार्म्स
संस्थापक : संतोष डी सिंह
क्या खास :

आईटी सेक्टर प्रोफेशनल द्वारा कम संसाधनों के साथ शुरू किया गया डेयरी फार्म उधोग समय के साथ कामयाब बिजनेस की शक्ल ले चुका है।
बेंगलुरु से तकनीकी शिक्षा में पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री लेने के बाद संतोष डी सिंह को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में एक अच्छी नौकरी मिल गई। डेल और अमेरिका ऑनलाइन जैसे आईटी सेक्टर के मल्टीनेशनल दिग्गजों के साथ करीब 10 साल तक संतोष ने काम किया। इन 10 सालों के अपने अनुभव को साझा करते हुए संतोष बताते हैं कि ‘उन दिनों भारत में आईटी इंडस्ट्री फल-फूल रही थी। मुझे अपने काम के दौरान दुनिया के कई देशों का सफर करने का मौका मिला। देश-विदेश की यात्रा के बीच मुझे ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले जहां अपने उद्योग के माध्यम से लोग अच्छा कमा रहे थे। यहीं से मुझे एक ऐसा उद्योग शुरू करने की प्रेरणा मिली जिसके जरिए मैं हमेशा प्रकृति के नजदीक रहकर काम कर सकूं। इसी बीच डेयरी फार्म उधोग का आइडिया मेरे जेहन में आया।’
संतोष को महसूस हुआ कि भारतीय कृषि की अनिश्चितता को देखते हुए डेयरी फार्म उधोग तुलनात्मक रूप से स्थिर और लाभदायक व्यवसाय है। इसी सोच के साथ अपने इस आइडिया को उद्यम में बदलने के लिए संतोष ने अपनी जॉब छोड़ने का फैसला कर लिया। कॉरपोरेट दुनिया की अपनी सुरक्षित नौकरी छोड़ने से पहले संतोष ने अपने परिवार की सहमति हासिल की और फिर अपने आइडिया को डेयरी फार्म उधोग की शक्ल देने में जी-जान से जुट गए। इस काम में संतोष को प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, प्रोसेस इम्प्रूवमेंट, बिजनेस इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स और रिसोर्स मैनेजमेंट के वे सभी गुर काम आए जो उन्होंने अपनी जॉब के दौरान सीखे थे।

ट्रेनिंग से हासिल की डेयरी फार्म उधोग की बुनियादी जानकारी

डेयरी फार्म उधोग की कोई पृष्ठभूमि होने के कारण संतोष को इस क्षेत्र का कोई तजुर्बा नहीं था। अनुभवहीनता को दूर करने के लिए उन्होंने डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग लेने का निर्णय लिया और नेशनल रिसर्च डेयरी इंस्टीट्यूट में फुल टाइम ट्रेनिंग के लिए एडमिशन ले लिया। इस ट्रेनिंग के दौरान संतोष को पशुओं के साथ रहकर उनकी देखभाल का व्यावहारिक प्रशिक्षण मिला। इस ट्रेनिंग के बारे में संतोष कहते हैं कि ‘एयर-कंडीशंड वर्कप्लेस की तुलना में डेयरी फार्म के खुले माहौल ने मुझे एनर्जी से भर दिया। खेतों में रहकर ट्रेनिंग पाकर मुझमें यह आत्मविश्वास गया था कि पशुपालन एक आकर्षक पेशा है जिसे मैं लंबे समय तक करना चाहूंगा।’

तीन गायों से हुई शुरुआत की डेयरी फार्म उधोग.

संतोष ने अपने डेयरी फार्म उधोग की शुरुआत तीन गायों के साथ अमृता डेयरी फार्म्स के नाम से की। करीब 20 लाख रुपए के इन्वेस्टमेंट के साथ इसकी स्थापना उन्होंने बेंगलुरु से 40 किमी दूर अपने तीन एकड़ के पुश्तैनी खेत में की, जहां नौकरी के दौरान वे वीकेंड बिताने जाते थे। शुरुआत में गायों को नहलाने, दूध निकालने और उनके छप्पर की साफ-सफाई संतोष खुद ही करते थे। धीरे-धीरे संतोष की योजना सफल होने लगी और शुरुआत के पहले ही साल में गायों की संख्या तीन से बढ़कर बीस तक पहुंच गई।
इसी के चलते संतोष ज्यादा गायों के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाने के प्रयास करने लगे। इसी दौरान संतोष को ट्रेनिंग देने वाले एनडीआरआई के एक ट्रेनर का उनके फार्म पर आना हुआ। उन्होंने संतोष को टेक्नोलॉजिकल सपोर्ट के लिए नाबार्ड से सहायता लेने की सलाह दी। इस सलाह पर अमल करते हुए संतोष ने प्रयास किए तो उन्हें नाबार्ड से पूरा सहयोग मिला। इससे अपने काम को और विस्तार देने का प्रोत्साहन मिला और उन्होंने गायों की संख्या बढ़ाकर 100 कर दी।

अकाल से नहीं मानी हार

अपने डेयरी फार्म उधोग के विस्तार की राह में संतोष को कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा। इनमें सबसे बड़ी चुनौती थी अकाल की स्थिति जिसकी वजह से 18 महीनों तक राज्य को सूखे का सामना करना पड़ा। इस दौरान हरे चारे की कीमतें 10 गुना तक बढ़ गई और प्रोडक्शन पर भी असर पड़ने लगा। इसी के चलते इलाके के कई डेयरी फार्म बंद हो गए। लेकिन संतोष ने हार नहीं मानी और डेयरी के सुचारू संचालन के साथ विपरीत स्थिति से निपटने के लिए अपनी बचत से भी खर्च किया।
समस्या का स्थाई समाधान खोजते हुए संतोष ने हरे चारे का उत्पादन करने का फैसला किया। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने हाइड्रोफोनिक्स की पहली यूनिट की स्थापना की और बाजार से कम कीमत पर हरा चारा उपलब्ध करने में कामयाबी हासिल की। ऐसे ही अथक प्रयासों की बदौलत संतोष का उद्योग तरक्की की राह पर चलने लगा है और अब वे जल्द ही पनीर, खोया और चीज की उत्पादन इकाइयां स्थापित करने की योजना भी बना रहे हैं।

नाबार्ड ने किया उत्साहित

अपने डेयरी फार्म उधोग के विस्तार के बारे में बताते हुए संतोष कहते हैं कि ‘डेयरी उत्पादों की कीमतों में दिनों-दिन हो रही वृद्धि से तो मेरे उद्योग को फल-फूलने का मौका मिला ही, साथ ही डेयरी फार्मिंग में मेरे योगदान के लिए नाबार्ड से मिले रजत पदक ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया। स्टेट बैंक ऑफ मैसूर से भी मेरे प्रोजेक्ट को फंडिंग मिली। अब मुझे 100 गायों की अपनी डेयरी को सभी जरूरी सुविधाएं मुहैया करवाने और अपने डेयरी फार्म उधोग को मजबूती प्रदान करने की वजह मिल गई थी। नतीजा यह हुआ कि दूध का उत्पादन 1500 लीटर प्रतिदिन पहुंच गया और डेयरी फार्म उधोग का वार्षिक टर्नओवर 1 करोड़ रुपए के स्तर के पार पहुंच गया।’

824total visits.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय खबरें