नई दिल्ली, 30 जुलाई 2017,
ई-वे बिल प्रणाली के कार्यान्वयन में विलंब और कुछ राज्यों की तरफ से उठाये गए कदमों से उपजे असमंजस से ट्रांसपोर्ट व्यवसाय की पुरानी बुराइयां फिर से उभरने लगी हैं। ई-वे बिल की चिंता न होने से जहां व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों ने कर चोरी वाले माल की बुकिंग व ढुलाई का गोरखधंधा फिर शुरू कर दिया है। वहीं, प्रवर्तन एजेंसियों ने राजस्व के नुकसान के डर से ट्रकों पर छापेमारी तेज कर दी है। इससे जीएसटी लागू होने से ट्रकों के ट्रांजिट टाइम में जो कमी आई थी उसमें फिर से इजाफा होने लगा है। विशेषज्ञों ने इस प्रवृत्ति को जीएसटी के लिए खतरनाक बताते हुए सरकार से ई-वे बिल की अड़चनों को जल्द से जल्द दूर करने की अपील की है।
केंद्र सरकार ने भले ही ई वे बिल प्रणाली को दो महीने में लागू करने का भरोसा दिया हो। लेकिन इससे उन व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों की बांछें खिल गई हैं जो कच्चे पर्चे पर माल की बुकिंग करते हैं। जीएसटी से पहले ज्यादातर व्यापारी और ट्रांसपोर्टर (गुड्स बुकिंग एजेंट) कच्चे पर्चे वाले माल की बुकिंग और ढुलाई करने के आदी थे। इस प्रक्रिया में टैक्स की जमकर चोरी होती थी, जिसका लाभ दोनों पक्षों को मिलता था।
प्रवर्तन एजेंसियों के पास इस नापाक गठजोड़ को तोड़ने का कोई ठोस तंत्र नहीं था क्योंकि अधिकांश ट्रांसपोर्टर गैर-पंजीकृत थे और उनके लेनदेन में कोई पारदर्शिता नहीं थी। एक ट्रक में दोनों तरह का माल लादा जाता था। यानी ट्रक में कच्चे और पक्के पर्चे का माल एक साथ लादा जाता था। कच्चे पर्चे वाला माल टैक्स चोरी करके ले जाया जाता था। इस पर भाड़ा कई गुना ज्यादा लगता था। दूसरा वह माल जिसका पक्का पर्चा होता था, जिस पर टैक्स की पूरी अदायगी होती थी। इस पर सामान्य किराया लगता था। इस व्यवस्था में ट्रांसपोर्टरों और व्यापारियों के तो मजे थे। परंतु सरकार और उपभोक्ता दोनों को चूना लगता था।
जीएसटी से इस खेल के खत्म होने की उम्मीद पैदा हो गई थी। परंतु ईवे बिल की अड़चन ने इस पर फिलहाल पानी फेर दिया है। इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड टेनिंग के अनुसार एक जुलाई से 15 जुलाई के दौरान राजमार्गो पर ट्रकों की संख्या घटकर आधी रह गई थी तथा ट्रकों का ट्रांजिट टाइम 30 प्रतिशत घट गया था। सरकार ने इसे जीएसटी की कामयाबी मान लिया। जबकि वास्तविकता में ऐसा जीएसटी को लेकर व्याप्त अस्पष्टता तथा ई वे बिल की अनिश्चितता के कारण हुआ था।
फाउंडेशन के संयोजक एस. पी. सिंह के मुताबिक जीएसटी लागू होते ही कई राज्यों ने बॉर्डर चेक पोस्ट बंद कर दिए थे। परंतु अब प्रवर्तन एजेंसियों ने कर चोरी रोकने के लिए ट्रकों पर छापेमारी बढ़ा दी थी। फलत: व्यापारियों ने ट्रांसपोर्टरों ने माल बुक कराना ही बंद कर दिया था। 15 जुलाई तक ज्यादातर जगहों पर कमोबेश यही हालात थे। परंतु 15 जुलाई के बाद स्थिति बदल गई है। ट्रांसपोर्टरों व व्यापारियों ने फिर से बिना दस्तावेजी माल की बुकिंग व ढुलाई शुरू कर दी है।
उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने तो अपनी खुद की ई-वे बिल प्रणालियां भी लागू करने का प्रयास किया है। यह अलग बात है कि केंद्र के अनुरोध के बाद उन्हें इन्हें वापस लेना पड़ रहा हैं। यदि केंद्र सरकार ने ई-वे बिल को जल्द और कुशलतापूर्वक लागू नहीं किया तो भ्रष्ट लॉबियां इसका दोष जीएसटी पर मढ़ेंगी और उसे नाकाम करने का प्रयास करेंगी।
साभार-दैनिक जागरण
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