डेयरी टुडे नेटवर्क,
देहरादून,30 सितंबर 2017,
उत्तराखंड में अब गाय शर्तिया तौर पर बछिया को ही जन्म देगी। राज्य सरकार अमेरिकी पेटेंट की एक तकनीक का इस्तेमाल करने जा रही है, जिसके प्रयोग से बछड़े के जन्म पर काफी हद तक रोक लग सकेगी। वहीं इस तकनीक से पैदा होने वाली गाय दूध भी ज्यादा देगी। किसानों की आय दोगुनी करने की केंद्र सरकार की योजना के तहत देश के तमाम राज्यों में यह तकनीक इस्तेमाल की जा रही है। सेक्स सॉर्टेड सीमेन के इस्तेमाल की इस तकनीक को सेक्स सपोर्टिव सीमेन स्कीम नाम दिया गया है। इस तकनीक से तैयार होने वाले विशेष सीमेन के इस्तेमाल (असिस्टेड रिप्रोडक्शन) से 90 फीसदी बछिया ही जन्म लेगी। बद्री गाय समेत अन्य प्रजाति के लिए यह सीमेन तैयार किया जा रहा है।
इसके लिए पशुपालन विभाग अलग-अलग स्थानों पर बछड़े तैयार कर रहा है। लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड में अभी तक सीमेन इंपोर्ट किया जाता था लेकिन अब स्थानीय स्तर पर सीमेन तैयार किया जाएगा। पशुपालन सचिव डा. आर मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि 2019-20 तक इस तकनीक के इस्तेमाल से ‘जेनेटिकली इंप्रूव्ड’ गाय की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, जिससे दूध उत्पादन भी बढ़ेगा।
सेक्स सपोर्टिव सीमेन स्कीम से कृत्रिम गर्भाधान (एआई) करवाना पशुपालकों के लिए कुछ महंगा पड़ेगा। अभी सरकारी और प्राइवेट एआई करने पर 50 से 100 रुपये शुल्क देना होता है। यह विशेष सीमेन लेने पर पशुपालकों को 650 रुपये तक खर्च करने पड़ेंगे। बछिया पैदा करने और दूध उत्पादन बढ़ाने के अलावा इससे पशु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उत्तराखंड की बद्री गाय का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए पशुलोक में बछड़े तैयार किए जा रहे हैं। अगले दो से तीन वर्ष में यह बछड़े तैयार हो जाएंगे। बद्री गाय के साथ इनकी ब्रिडिंग कराई जाएगी, जिससे पैदा होने वाली बछिया सामान्य गाय से ज्यादा दूध देगी। विदेशों में अपनाई गई तकनीक को आधार माना जाए तो दूध उत्पादन में दो से तीन गुना की बढ़ोत्तरी होगी। बद्री गाय सामान्य तौर पर एक से दो लीटर ही दूध देती है। इस तकनीक को अपनाने के बाद गाय पांच लीटर तक दूध देने लगेगी।
पशुपालन सचिव डॉ. आर मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि पहले चरण में हम बद्री समेत अन्य स्थानीय नस्लों पर फोकस कर रहे हैं। बद्री गाय के दूध की गुणवत्ता बहुत बेहतर होती है। राज्य में 75 फीसदी से अधिक स्थानीय नस्ल का पशुधन है जबकि उनका दुग्ध उत्पादन 20 से 30 फीसदी है। उनकी नस्ल में सुधार होने से दूध के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होगी, जिससे किसानों की आय भी बढ़ेगी।
(साभार-अमर उजाला)
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