डेयरी टुडे नेटवर्क,
रायपुर, 25 अक्टूबर 2017,
रायपुर जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर छोटा सा गांव है सिर्री (बागबाहरा)। यहां की बेटी वल्लरी चंद्राकर को अपनी धरती से इस कदर प्रेम हुआ कि वह राजधानी रायपुर के एक प्राख्यात कालेज से नौकरी छोड़कर आ अपने गांव आ गईं। धरती का कर्ज चुकाने और ‘स्वर्ग से सुंदर अपना गांव’ का नारा बुलंद करते हुए वल्लरी कहती है कि नौकरी कितनी भी बड़ी क्यों न हो, खेती से श्रेष्ठ नहीं हो सकती है। खेती में परिश्रम थोड़ा अधिक करना पड़ता है। किंतु, अन्नदाता होने का जो सुकून है, वो किसी भी नौकरी में आ ही नहीं सकता। हाईटेक तकनीक को अपनाकर खेती की जाए तो इसमें मुनाफा ही मुनाफा है।
वल्लरी के पिता जल मौसम विज्ञान विभाग रायपुर में उप अभियंता हैं। उनका पैतृक ग्राम सिर्री है। वल्लरी अपनी पुश्तैनी जमीन में खेती को देखने पिता के साथ कभी-कभी रायपुर से बागबाहरा के पास सिर्री गांव आती थी। अपनी धरती से वल्लरी को इस कदर लगाव हुआ कि वह रायपुर के दुर्गा कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर गांव आ गईं ।
बीई(आईटी) और एम टेक (कंप्यूटर साइंस) तक उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद सफ्टवेयर इंजीनियर इस बेटी ने खेती को अपना व्यवसाय बनाकर सबको चौंका दिया है। इतना ही नहीं वल्लरी खुद ट्रैक्टर चलाकर खेती कर लेती है । इन दिनों उनकी बाड़ी में मिर्ची, करेला, बरबट्टी और खीरा आदि की फसल लहलहा रही है। अपनी शिक्षा का सदुपयोग आधुनिक तकनीक से खेती में करने पर जोर देते हुए वल्लरी कहती हैं कि उनकी प्रतिभा को गांव वालों और समाज के लोगों ने प्रोत्साहित किया, इससे हौसला बढ़ता गया। अब तो जिस धरती पर जन्म लिया, वहां खेती करके उन्नतशील कृषक बनना ही उनका सपना है।
वल्लरी बताती हैं कि उनके दादा स्वर्गीय तेजनाथ चंद्राकर राजनांदगांव में प्राचार्य थे। शासकीय सेवा में होने से उनके घर में तीन पीढ़ियों से खेती किसी ने स्वयं नहीं किया । दादा और पिता नौकरीपेशा होने से खेती नौकर भरोसे होती रही । वल्लरी को खेती की प्रेरणा अपने नाना स्वर्गीय पंचराम चंद्राकर से मिली है। वह अपने ननिहाल सिरसा (भिलाई) जाती थी, तो वहां की खेती देखकर व भाव विभोर हो उठती थी । बचपन का उनका खेती के प्रति लगाव उन्हें अपनी धरती पर खेती करने खींच लाया । वल्लरी की छोटी बहन पल्लवी भिलाई के कालेज में सहायक प्राध्यापक हैं।
वल्लरी की मां युवल चंद्राकर गृहणी हैं। वे कहती हैं कि उनकी दो बेटियां हैं। दोनों ही इस कदर होनहार हैं कि उन्हें कभी बेटे की कमी महसूस नहीं हुई। हमें बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं करना चाहिए। अब जब बड़ी बेटी वल्लरी खुद खेती कर सिर्री के 26 एकड़ और घुंचापाली (तुसदा) के 12 एकड़ खेत में सब्जी-भाजी की बेहतरीन फसलें ले रही हैं, तब उन्हें और भी ज्यादा गर्व होता है। अब तो समाज में लोग उन्हें वल्लरी की मां के नाम से पहचानते हैं।
शहर से गांव आई वल्लरी कंप्यूटर की खास जानकार हैं। गांव के गरीब बच्चे आगे बढ़ सकें, सूचना क्रांति के क्षेत्र में उनका नाम हो। इसके लिए वह गांव के दर्जनभर बच्चों को नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा भी दे रही है। दिनभरखेत में कामकाज और प्रबंधन देखने के बाद देर शाम से रात तक बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।
युवा सोच और ड्रीप ऐरिगेशन (टपक पद्धति से सिंचाई) से सब्जी-भाजी की खेती को वल्लरी ने लाभदायक बनाया है। उनका कहना है कि शुरूआत में प्रति एकड़ करीब डेढ़ लाख स्र्पए खर्च करना पड़ा। इस तरह उनके दो फार्म हाउस में करीब 55 से 60 लाख स्र्पए खर्च हुआ । यह वन टाइम इन्वेस्टमेंट है । इससे फार्म हाउस खेती के लिए पूरी तरह विकसित हो चुका है। सालभर में सभी खर्च काटकर प्रति एकड़ करीब 50 हजार स्र्पए शुद्ध आय हुई। इस तरह उनकी खेती से वार्षिक आय 19 से 20 लाख स्र्पए हो रहा है। वल्लरी का कहना है कि खेती को व्यवसायिक और सामुदायिक सहभागिता से उन्नत बनाने की दिशा में वे प्रयास कर रही हैं।
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whatsapp sharing k liye option nahin aa raha hai sir
please do the same
It's truth you resign the job of as. Poff.