डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 1 जून 2024
World Milk Day 2024: डेयरी उद्योग को पहचानने और दूध से मिलने वाले लाभों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 1 जून को ‘विश्व दुग्ध दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 2001 में हुई थी, जब संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने विश्व दुग्ध दिवस की स्थापना की थी। ‘विश्व दुग्ध दिवस’ मौके पर, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक मीनेश शाह ने वैश्विक पोषण और खाद्य सुरक्षा में दूध की मौलिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। डेयरी फार्मिंग के महत्व और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर जोर देते हुए, उन्होंने बताया है कि एनडीडीबी और भारत सरकार डेयरी क्षेत्र में लचीलापन और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए कैसे प्रतिबद्ध हैं।
उन्होंने कहा, “बढ़ती जनसंख्या और प्रति व्यक्ति आय, बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताएं और उपभोग पैटर्न सदी के मध्य तक खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के लिए प्रेरक शक्तियां हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जनसंख्या 2020 में 1।38 बिलियन से बढ़कर 2030 तक लगभग 1।5 बिलियन हो जाएगी। पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ तरीके से भूख और कुपोषण से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए प्रति व्यक्ति भोजन का सेवन बढ़ाने की सख्त ज़रूरत है।”
उन्होंने आगे कहा, “जैसा कि हमने देखा है कि कृषि और डेयरी जैसे संबद्ध क्षेत्र, आजीविका, खाद्य और पोषण सुरक्षा और हमारे देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये क्षेत्र आने वाले दशक में लाभकारी रोजगार अवसरों के साथ एक स्थायी तरीके से समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वही, वर्तमान में दूध सबसे बड़ी कृषि वस्तु है जो 80 मिलियन से अधिक ग्रामीण परिवारों को सीधे रोजगार देती है।”
शाह ने आगे बताया कि भारत में दूध उत्पादन 2014-15 से 2023 तक लगभग 6% प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है, जबकि वैश्विक वृद्धि दर लगभग 2% है। अधिकांश दूध का उत्पादन उन पशुओं से होता है जिन्हें छोटे और सीमांत तथा भूमिहीन किसान पालते हैं जिनके झुंड में केवल 2-3 पशु होते हैं। उन्होंने कहा, “खाद्य सुरक्षा और पोषण में योगदान देने के अलावा, डेयरी उद्योग रोजगार और विभिन्न आय-सृजन गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण इलाकों के सीमांत किसान और महिला किसानों के लिए आजीविका को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।”
इसके बाद उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश में दूध उत्पादों का उत्पादन खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है। यह क्षेत्र कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में विकास को गति देने वाला क्षेत्र बनकर उभरा है। उन्होंने कहा, “यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो रहा है, जब सकल मूल्य-वर्धित में फसलों की हिस्सेदारी लगातार घट रही है जबकि पशुधन की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। दूध उत्पादन में इस बेहतर वृद्धि के परिणामस्वरूप, प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता बढ़कर लगभग 460 ग्राम प्रतिदिन हो गई है, जो अनुशंसित आहार भत्ते से भी अधिक है। इसलिए, डेयरी क्षेत्र ग्रामीण इलाकों में पोषण प्रदान करने में भी मदद करता है, क्योंकि कुल उत्पादित दूध का लगभग 40 प्रतिशत दूध उत्पादक परिवारों द्वारा खपत किया जाता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत में डेयरी ज्यादातर फसल उत्पादन प्रणाली से जुड़ी हुई है और इन दोनों के बीच की पूरकता इसे दुनिया की सबसे टिकाऊ प्रणालियों में से एक बनाती है, साथ ही यह गरीबों और महिलाओं के लिए भी लाभकारी है। यह अक्सर सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कठिन समय में बीमा के रूप में काम आता है। डेयरी क्षेत्र सुरक्षा में समानता लाने में मदद करता है क्योंकि पशुधन परिसंपत्तियों का वितरण कृषि भूमि की तुलना में कहीं अधिक न्यायसंगत है।
इसके अलावा, उन्होंने बताया, “कुल किसानों में से लगभग 85% छोटे और सीमांत हैं और सामूहिक रूप से वे लगभग 47% कृषि भूमि के मालिक हैं जिसके पास करीब 75% दुधारू पशु हैं। इसका मतलब यह है कि इस क्षेत्र में निवेश किया गया 1 रुपया भी ग्रामीण क्षेत्र की बहुआयामी चुनौतियों जैसे बेरोजगारी, खाद्य सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण को बहुत अधिक रिटर्न देता है। महिलाएं हमेशा से ही डेयरी गतिविधियों में सबसे आगे रही हैं। यह उन्हें लाभदायक रोजगार प्रदान करता है क्योंकि वे चारा और दूध निकालने जैसी प्रमुख पशुपालन गतिविधियां करती हैं।”
(साभार- कृषि जागरण)
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